इंदौर । हिन्दी भाषा की कई विधाएँ जिनमें या तो लेखन बंद ही हो गया या कम हो रहा है, जैसे रिपोतार्ज, संस्मरण, पत्र लेखन, लघु कथा, डायरी, आदि, ऐसी विधाओं को बचाने का ज़िम्मा उठाने के लिए, साथ ही नए रचनाकारों और विधा के स्थापित रचनाकारों के लेखन को संग्रहित कर पाठकों तक उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश के इंदौर से एक अंतरताना ‘मातृभाषा.कॉम’ वर्ष 2016 में आरम्भ हुआ था, जो वर्तमान में वृक्ष बन गया है। मातृभाषा उन्नयन संस्थान की इकाई के रूप में अंतरताना हिन्दी के प्रति जागरुकता फैलाने और रचनाकारों को मंच देने में भी अग्रणी बनता जा रहा है।
इंदौर के युवा पत्रकार और लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने हिन्दी साहित्य से जनता को आसानी से जोड़ने के उद्देश्य और हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु एक प्रकल्प शुरू किया, जिसमें हिन्दी के नवोदित एवं स्थापित रचनाकारों को मंच उपलब्ध करवाने के साथ-साथ हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए कार्य किया जा रहा है। डॉ. अर्पण जैन कहते हैं कि “मातृभाषा.कॉम ने एक पहल की है, जिसके माध्यम से हम रचनाकारों के लेखन को सहेज भी रहे हैं और उसे हिन्दी भाषा के प्रचार में उपलब्ध भी करवा रहे हैं। साथ ही, हम हिन्दी प्रचार हेतु मातृभाषा उन्नयन संस्थान के साथ हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए भी कार्य कर रहे हैं। इसके माध्यम से देशभर में साहित्य पत्रकारिता के उन्नयन, प्रशिक्षण व क्रियान्वन का कार्य भी किया जाएगा।’
इस प्रकल्प में डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ के साथ हैं इंदौर से श्रीमती शिखा जैन, दिल्ली से भावना शर्मा, आगरा से गणतंत्र ओजस्वी। इस अंतरजाल पर वर्तमान में 3000 से ज़्यादा नवोदित व स्थापित रचनाकार जुड़कर 22 से अधिक विधाओं में लेखन कर रहे हैं, जिसमें डॉ. वेद प्रताप वैदिक, डॉ. दिविक रमेश, फ़िल्म अभिनेता आशुतोष राणा, राजकुमार कुंभज, योगेन्द्र यादव, अमित शाह, गिरीश पंकज, सुभाष चन्दर सहित डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी, सईद अंसारी आदि कई नाम हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के साथ मातृभाषा.कॉम के माध्यम से हिन्दी के विस्तार और संरक्षण हेतु ‘हस्ताक्षर बदलो अभियान’ चलाया जा रहा है, जिसके तहत जनता के बीच पहुँचकर हिन्दी में हस्ताक्षर हेतु प्रेरणा देंगे। वर्तमान में 21 लाख से अधिक लोगों ने संस्थान के साथ जुड़कर अपने हस्ताक्षर हिन्दी में कर लिए हैं। अब मातृभाषा.कॉम के माध्यम से कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं, साथ ही साहित्य पत्रकारिता प्रशिक्षण कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं।
वेबजाल का पता है- www.matrubhashaa.com