भारत के नवीन संंसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर सेंगोल(तमिल भाषा में) अर्थात् राजदण्ड और उसके शीर्ष पर ऋषभ(नन्दी) को लेकर बहुत सी चर्चा की गयी।
आइये देखते हैं वेद इसके सम्बन्ध में क्या कहते हैं –
अथर्ववेद 18/2/29 में दण्ड का वर्णन है –
दण्डं हस्ता॑द॒ददा॑नो गृ॒तासः स॒ह श्रोत्रे॑ण॒ वर्च॑सा बलैन ।
अत्रैव त्वामह वयं सुवीरा॒ विश्वा॒ मृधो॑ अ॒भिमा॑त॒र्जयेम।।
इसका अर्थ करते हुये पं. क्षेमकरणदास त्रिवेदी लिखते हैं-
(गतासोः)प्राण छोड़े हुये मृतक समान निरुत्साही पुरुष के (हस्तात्)हाथ से (श्रोत्रेण)श्रवण सामर्थ्य विद्याबल (वर्चसा)तेज और(बलेन सह) बल के साथ (दण्डम्)दण्ड अर्थात् शासन पद को (आददानः)लेता हुआ (त्वम्)तू (अत्र एव)यहाँ पर और (वयम्)हम(इह) (सुवीराः)बड़े वीरों वाले होकर (विश्वाः)सब (मृधः)संग्रामो और (अभिमातीः)अभिमानी शत्रुओं को (जयेम)जीतें।
इस मन्त्र में #दण्ड को शासनपद के आधिकार के आदान-प्रदान रूप में वर्णित किया गया है । दण्ड अर्थात् डण्डा उसका प्रतीक बना लिया गया होगा।
#ऋषभ का वर्णन वेद में अनेक स्थानों पर है ।
यजुर्वेद 19/91 में आया है-
इन्द्रस्य रुपमृषभो बलाय ।
(ऋषभः) समस्त नरों में श्रेष्ठ पुरुष(बलाय) बलवान् कार्य के लिए नियुक्त किया जाता है वही (इन्द्रस्य रूपम्) शत्रुनाशक राजा के समान है।
[पं. जयदेव जी विद्यालंकार]
सामर्थ्य के लिये इन्द्र का रूप ऋषभ के समान हुआ।
[पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर]
उक्त मन्त्राँश में इन्द्र अर्थात् राजा को ऋषभ रूफ में वर्णित किया गया है।
अथर्ववेद का 9/4 सूक्त का देवता ऋषभ है । इसमें ऋषभ का अर्थ पं. क्षेमकरण जी ने ऋषभ का अर्थ परमेश्वर किया है और पं. सातवलेकर जी ने “बैल” किया है । ध्यान से पढ़ने और विचारने पर ईश्वर के ऋषभ से सम्बन्धित गुण राजा में होने चाहिए अतः ऋषभ को राजा कहना वा प्रतीक रूप में दण्ड पर उसकी आकृति बना देना वैदिक भावना का द्योतक है।
इसी प्रकार यदि ऋषभ को साँड भी माना जाये तो एक राजा को अपने राज्य में प्रजा को सुखी, निरोगी ,बलशाली बनाने के लिए ऋषभ की महती आवश्यकता होगी (पं. श्रीपाद सातवलेकर जी के सूक्त पर विशेष वक्तव्य सेस्पष्ट होता है ) इसकारण वैदिक काल में राजदण्ड पर ऋषभ की आकृति बनायी गयी होगी कालान्तर में उसे शिव का प्रतिनिधि मानकर व्यवहार होने लगा होगा।
जो भी रहा हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि सेंगोल रूपी राजदण्ड और उसपर ऋषभ की प्रतिमा व आकृति होना वेदानुमोदित है।