Friday, November 22, 2024
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मेरी माँ के राम

बचपन में मैं रामद्रोही था, राम द्रोही से चौंके नहीं न शाब्दिक अर्थ पर चले जाय, जैसे हर युवा को जवानी में अकल का अजीर्ण हो जाता हैं मुझे भी हो गया था, अर्थात् दुनिया भर का साहित्य पढ़ मार्क्स लेनिन ओशो रजनीश जिद्दु कृष्णमूर्ति पढ़ कर आपको सर्व ज्ञानी या ज्ञानी होने का भ्रम होता हैं तब आप लोक मानस में सहज सरल विराजमान ज्ञान के बड़े भारी आलोचक हो जाते हैं ज्ञान का यह भ्रम आपको अज्ञानी बना देता हैं, तो मैं भी कुछ कुछ वैसा आलोचक बचपन में रोज़ाना मेरी माँ के पाँव दबा कर उनसे कहानी सुनकर उनके पास ही सोता था, माँ नियमित रामायण महाभारत कालिदास रघुवंश दुष्यंत शकुंतला नल दमयंती सुनाती और सुनाने का उनका अन्दाज़ इतना रोचक होता की आप पाँव दबाना बंद ही नहीं करते क्योंकि रामानन्द सागर और बीआर चोपड़ा के रामायण महाभारत के दूरदर्शन पर जन्म से बहुत पहले वे कथा धारावाहिक रूप में सुनाती थी और बेहद रोचक रोमांचक क्षण में रोकती -बस! आज इतना ही!

जिस से कथा की रोचकता हमें दूसरे दिन फिर माँ के चरणों में ले आती! ऐसे ही एक दिन भवभूति की उत्तर रामचरित सुन कर मैंने कह दिया -माँ तुम भी किन राम की पूजा करती हो? वह राम जिसने अपनी गर्भवती स्त्री सीता माँ को जंगल छोड़ दिया? वह राम जिसने अपने छोटे छोटे बच्चे लव-कुश तक को कभी न खिलाया न उनकी चिंता की, किस राम की पूजा करती हो तुम? प्रायः ही अपने ज्ञान के अज्ञान में डूबा मैं ऐसे अहंकार जन्य प्रश्न उठा कर माँ को निरुत्तर कर सोचता मैं कितना बड़ा ज्ञानी हूँ, जानता न था राम भक्त माँ कितनी बड़ी अध्येता हैं या की वे विश्व विख्यात विद्वान पद्म भूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास की सहचरी हैं तो कोई अज्ञानी स्त्री तो न होगी!

पर जब राम कथा आती मैं राम विरोधी तब का राम द्रोही माँ पर सवाल के गोले दागता -बाली के वध को अम्बेडकर और ओशो रजनीश के शब्द में हत्या बताता कभी शम्बूक वध कभी घर का भेदी विभीषण की निंदा करता कहता -कहता की मान लो रावण लक्ष्मण को कहते -आओ अवध नरेश और उस से ही राम की मृत्यु या अयोध्या के रहस्य पूछते तो? माँ हमेशा मौन मूक हँस कर मुझे उत्तर न देती, एक दिन अति हो गयी! मैने राम सीता प्रसंग में राम को स्त्री विरोधी और पत्नी बच्चो का दोषी कहा सदा कि तरह! बस वह माँ की मर्यादा का अंतिम क्षण था उसने पहली बार ग़ुस्से में भरकर मुझ से कहा -बस! अब एक शब्द मेरे राम के ख़िलाफ़ बोला था मैं तुझे तज दूँगी तेरी सूरत भी न देखूँगी, दो पंक्ति बोली -जाके प्रिय न राम वैदेही / तजिए ताहे परम स्नेही / बस! अब एक शब्द न सुनूँगी क्या जानता हैं तू राम के बारे में? कौन से राम? किस राम के बारे में जानता हैं तू? भवभूति के राम कालिदास के राम बाल्मीकी के राम तुलसी के राम कम्बन के राम कृतिवास के राम? क्रोध में माँ का चेहरा रोष से रक्तिम हो गया था!

माँ बोली जिस राम को तू जानता हैं वह तो राजा राम हैं आज तुम अगर माधव राव सिंधिया या राजीव गांधी की पत्नी के ख़िलाफ़ एक शब्द भी सार्वजनिक बोल दो तो वे क्या करेंगे (मेरे युवा होने तक ये सत्ता में आने लगे लोकप्रिय युवा नेता थे) मैंने कहा -उठा कर बंद करवा देंगे! बस यही तो! माँ बोली मेरे राम और तुम्हारे युग के राम में फ़र्क़ हैं! मेरा राम भी चाहता तो उस धोबी को जिसने सीता के विरुद्ध अपशब्द बोला बंद नहीं करवा सकते थे? सारे परिवार को बंदी बना लेते पर तुम्हारे राजा और हमारे राजा में यही फ़र्क़ हैं तुम्हारा राजा अपनी ख़ुशी के लिये प्रजा को दुखी करने में कोई कसर न छोड़ेगा मेरा राजा प्रजा के सुख के लिए अपने सुख का त्याग कर ख़ुद दुःख भोगेगा!

कहते कहते माँ फफक पड़ी -तुझे पता हैं शेखर? मेरा राम जब दरबार से उठकर अपने अंत: पुर में जाता था और जब अपना मुकुट उतार कर सहज सरल राम होता था तब सीता को याद कर अपने दोनों बेटों को याद कर कितना रोता था, मैं भला कैसे जानता? मैने उस राम को देखा कब था? पर मैं अपनी माँ के चेहरे पर उसके आँसुओ में उस राम को देख रहा था! फ़िर माँ ने राम की मर्यादा पर उनकी करुणा पर बोलते हुए मुझे मानों शाप ही दे दिया -देखना शेखर जब तू अपनी सीता अपने लव कुश से विरह पायेगा उस दिन समझेगा मेरे राम को! मुझे नहीं मालूम था -भविष्य दर्शन के सर्वोच्च सूर्य की वह पतिव्रता स्त्री भी भविष्य दृष्टा थी, या पूज्य पिता ने उसे मेरा भविष्य बता दिया था, मैं नहीं जानता था वह अपने पति में मर्यादा पुरशोत्तम राम देखती हैं जिसने पिता के सुख के लिए अपना महल त्याग दिया! आज जब मैं अपनी सीता और मेरे लव कुश से दूर होता हूँ तब राम की विरह वेदना के एक सूक्ष्म आँसू में ही बह जाता हूँ।

(लेखक दूरदर्शन में सहायक निदेशकर रहे हैं और विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें लिखी है)

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