समय की दीवार पर लिखी इबारत बताती है कि मोदी मैजिक बस स्वाहा होना ही चाहता है। भाजपा का सूर्य आधा डूब चुका है। पूरा भी डूबने में अब बहुत देर नहीं है। नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए लगातार ख़तरे की घंटी बज रही है। 2024 के आम चुनाव ने भाजपा पर जो डेंट मारा है , विधानसभा के ताज़ा उपचुनाव के नतीज़ों ने उसे और गहरा किया है। बदरंग किया है। सारा विकास , सारी लोकल्याणकारी योजनाओं का असर जैसे किसी नदी की बाढ़ में डूब कर छिन्न-भिन्न हो तिरोहित हो गया है। जैसे किसी सुनामी ने लील लिया है। मोदी की गारंटी किसी पाताल लोक में समा गई है।
लेकिन मोदी और भाजपा को जैसे इस की परवाह ही नहीं है। विदेश नीति की सफलता में मगन हैं। सर्वोच्च सम्मान की श्रृंखला के सुरूर में हैं। सुरूर इतना कि सांस लेने की फुरसत नहीं। नहीं जानते घर का जोगी , जोगड़ा , आन गांव का सिद्ध ! गांव , घर और मुहावरे में ही फिट पड़ता है। राजनीति और चुनाव में इस का कोई मोल नहीं। रही बात गठबंधन दलों की , बैसाखियों की तो वह कब और किधर छिटक जाएं , उन्हें भी नहीं पता। कब दांव दे जाएं , वह भी नहीं जानते। जनता जनार्दन जैसे भाजपा से दूर-दूर , बहुत दूर हो चली है। फिर भी वह अपने पुराने जादू के नशे में चूर हैं। हुजूर होने के गुरुर में धुत्त हैं। हुजूर होने के आकाश से नीचे उतरने को जैसे तैयार ही नहीं हैं। ठोकर पर ठोकर मिलती जा रही है। पर वह पीता नहीं हूं , पिलाई गई है वाली ऐंठ में मगरूर हैं। जाने किस तमन्ना में तर-बतर हैं। हुजूरे आला होश में आइए।
भाजपा और उस के नीति-नियंता लोग मान कर बैठ गए हैं कि यह नतीज़े सिर्फ़ संविधान बदलने और आरक्षण ख़त्म करने की अफ़वाह का कुपरिणाम है। इसी लिए जवाब में 25 जून को संविधान की हत्या दिवस मनाने के बहाने कांग्रेस की काली करतूत की याद दिलाने का स्वांग करना चाहते हैं। सवाल है कि बीते पचास सालों में इमरजेंसी लगने की तारीख़ को संविधान की हत्या दिवस के रूप में सुधि क्यों नहीं आई कभी। न सही , बहुत पहले इन दस बरसों में भी क्यों नहीं आई यह सुधि। सुधि क्यों बिसरी रही। किस ने बिसराई। अब जब तगड़ी लात पड़ गई है , तभी क्यों यह सुधि आई है।
लोग तो मुग़लों समेत तमाम आक्रमणकारियों के लूट-खसोट , अत्याचार , ब्रिटिशर्स के अत्याचार भी भुला बैठे हैं। कांग्रेस के ज़ुल्मो-सितम , इमरजेंसी के काले और कठिन दिन भी भूल गए हैं। कोई पढ़वा देता है , सुना देता है , बता देता है तो जान लेते हैं। इन पचास बरसों में दो-दो जवान पीढ़ियां आ कर आगे की पीढ़ी लाने की तैयारी में है। आज की जवान पीढ़ी को किसी इतिहास में नहीं , वर्तमान में दिलचस्पी है। वर्तमान में युवा पीढ़ी को रोजगार और अपनी निजी तरक्की में दिलचस्पी है।
इस जवान पीढ़ी को जोड़ने में भाजपा बुरी तरह नाकाम रही है। यह पीढ़ी वोट डालने में भी बहुत दिलचस्पी नहीं रखती। जो लोग वोट डालने में दिलचस्पी रखते हैं , वह आरक्षण प्रेमी हैं , मुसलमान हैं। जो मोदी और भाजपा को वोट देने में अपनी तौहीन समझते हैं। नफ़रत करते हैं मोदी और भाजपा से। हां , जो कुछ लोग मोदी और भाजपा को वोट देने में दिलचस्पी रखते हैं , मोदी सरकार ने उन से उन का बहुत कुछ छीन लिया है।
अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन देने वाली मोदी सरकार ने रेलवे टिकट में सीनियर सिटीजन को दी जाने वाली छूट चुपचाप छीन ली। अकारण। अटल सरकार ने पुरानी पेंशन छीन ली थी। सेना में वन रैंक , वन पेंशन देने वाली मोदी सरकार ने लेकिन बहुत मिन्नतों के बावजूद पुरानी पेंशन बहाल नहीं की। उलटे सीनियर सिटीजन ने जो बैंक में अपनी जमा पूँजी , जमा किया कि जिस के इंट्रेस्ट से जीवन आसान करेंगे , उस इंट्रेस्ट पर भारी इनकम टैक्स लगा दिया। इनकम टैक्स में राहत छीन ली।
2014 और 2019 में लोगों ने मुस्लिम तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ वोट दिया था और मोदी मैजिक चल गया था। अनेक तथ्य गवाह हैं कि मोदी सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण को कांग्रेस से कहीं ज़्यादा बढ़ावा दिया है। एक पुराना लोकगीत है , घर में दियना बारि के मंदिर में दियना बार हो ! बीते दस सालों में मोदी की भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं की सिर्फ़ बलि दी है। लगातार बलि दी है। अपने वोटरों के साथ छल किया है। कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की गणित के फेर में तमाम दगे कारतूस टाइप कांग्रेसियों को भाजपा में न सिर्फ़ भर लिया बल्कि उन्हें सिर पर बिठा लिया। सोनिया , राहुल को चिढ़ाने की इस रणनीति ने मोदी का ईगो मसाज तो ख़ूब किया पर भाजपा कार्यकर्ताओं का अपमान भी भरपूर किया।
इतना कि 99 सीट लाने वाली कांग्रेस के राहुल गांधी ने अब मोदी को संसद में चिढ़ाने के ईगो मसाज का नया पाठ पढ़ना शुरू कर दिया है। मुहल्ले के लफंगे लौंडों की तरह ललकार कर चिढ़ाने का वार , काम भी ख़ूब कर रहा है। मोदी पूरे चुनाव में शहजादे कर टांट करते रहे जिस राहुल गांधी पर , उसी नामदार राहुल गांधी ने सारी संसदीय गरिमा बिसार कर मोदी को सचमुच कामदार की हैसियत में डाल कर कामदार होने की हैसियत भी उतार दी है। पश्चिम बंगाल , केरल , पंजाब आदि ही नहीं दिल्ली , उत्तर प्रदेश तक में भाजपा कार्यकर्ता सुरक्षित नहीं रह गए हैं।
मनोबल इतना गिर गया है भाजपा नेतृत्व का कि उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक बाबा जो 121 लोगों का हत्यारा सिद्ध हो चुका है समाज में लेकिन बुलडोजर बाबा के जे सी बी का डीजल इतना सूख गया है कि उस का नाम तक एफ आई आर में नहीं दर्ज हुआ है। क्या तो वह बाबा जाटव है। यानी दलित है। तो कहीं दलित वोटर न नाराज हो जाएं , इस खौफ में बुलडोजर बाबा थर-थर कांप रहे हैं। मोदी , अमित शाह चुप हैं। राजनाथ सिंह कड़ी निंदा भी नहीं कर पा रहे। अखिलेश यादव , राहुल गांधी उस हत्यारे बाबा का ईगो मसाज मक्खन लगा-लगा कर , कर रहे हैं। मीडिया को वह हत्यारा बाबा मिल जा रहा है , बाइट दे रहा है पर बुलडोजर बाबा की पुलिस की पहुंच से दूर है। दलित मायावती रह-रह कर इस हत्यारे के ख़िलाफ़ बोल रही हैं। लेकिन टोटी चोर यादव चूंकि इस हत्यारे बाबा का पैरोकार है इस लिए बुलडोजर बाबा की पुलिस असहाय है। टोटी टाइल में भी इन सात सालों में क्या कर लिया ?
वोट बैंक के डर से कहीं कोई सरकार और प्रशासन चलता है भला। इस से अच्छी तो 25 जून , 1975 को संविधान की हत्या करने वाली वह इंदिरा गांधी ही थीं। इंदिरा गांधी ने पंजाब में खालिस्तानी आतंक को कुचलने के लिए स्वर्ण मंदिर में सेना भेज कर भिंडरावाले और उस के आतंक को नेस्तनाबूद कर दिया था। बदले में उन की हत्या हो गई यह अलग बात है। तो क्या अपनी जान बचाने के लिए वह पंजाब से आतंक खत्म करने पर आंख मूंदे रहतीं। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दस्यु उन्मूलन अभियान चलाया था। बदले में फूलन देवी ने बेहमई कांड कर दिया। बच्चे , बूढ़े सभी 22 ठाकुरों को एक साथ मार दिया था। विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा था। पर दस्यु उन्मूलन का उन का ख्वाब पूरा हो गया था। यह और ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
जिस योगी मॉडल की दुनिया भर में चर्चा थी , एक हत्यारे दलित बाबा ने उस योगी मॉडल को चकनाचूर कर दिया है। उन्नाव में बलात्कारी कुलदीप सेंगर और चिन्मयानंद की हुई गिरफ़्तारी में देरी पर योगी आदित्य नाथ की बहुत भद पिटी थी। ठाकुरवाद का आरोप भी लगा था। अंतत: गिरफ़्तार करना पड़ा था। गिरफ़्तार तो देर-सवेर हाथरस में 121 लोगों का यह हत्यारा बाबा भी होगा , भले अदालती हस्तक्षेप पर ही हो। लेकिन तब तक इतनी देर हो जाएगी कि योगी के बुलडोजर राज की धमक और इकबाल ध्वस्त हो कर मिट्टी में मिल चुकी होगी। धूल-धूल हो कर हवा में उड़ कर तार-तार हो चुकी होगी।
लुंज-पुंज हो कर चलने वाली सरकारें मनमोहन सिंह सरकार की नपुंसक सरकार की तरह याद की जाती हैं। या फिर उत्तर प्रदेश में श्रीपति मिश्र की सरकार की तरह। जिस का स्लोगन ही था : नो वर्क , नो कंप्लेंड। लेकिन योगी सरकार ने तो सिर्फ़ सात साल लगातार सरकार चलाने का एक नया रिकार्ड बनाया है , जो पहले किसी ने नहीं बनाया उत्तर प्रदेश में बल्कि क़ानून व्यवस्था क़ायम रखने का एक नया व्याकरण रचा है। वही सरकार अब हत्यारे बाबा के ख़िलाफ़ इतनी लुंज-पुंज क्यों हो गई है।
याद आता है किसान आंदोलन के समय नोएडा में राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी की तैयारी का मंज़र। गिरफ़्तारी की सारी तैयारी कर उस रात योगी अचानक थम गए थे। राकेश टिकैत को गिरफ़्तार करने गई भारी फ़ोर्स दो-तीन घंटे की क़वायद के बाद अचानक लौट गई थी। टी वी पर यह सारा कुछ देख कर लोग अवाक रह गए थे। कि एक राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी के लिए गई हज़ारों की फ़ोर्स लौटने लगी। बाद के समय में जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने बताया था कि फ़ोन पर राकेश टिकैत बहुत रोने लगा था। तब अमित शाह को फ़ोन कर उन्हों ने राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी रुकवाई थी। सत्यपाल मलिक की इस बात का प्रतिवाद आज तक किसी ने नहीं किया। न राकेश टिकैत ने , न अमित शाह ने। न किसी और ने। जो किसान आंदोलन लालक़िले पर खालिस्तानी झंडा फहराने के बाद ध्वस्त हो गया था , टिकैत की गिरफ़्तारी न होने से नया जीवन पा गया था। यह और बुरा हुआ था। अलग बात है कि हरियाणा की सरहद पर बंद सड़क खुलने की करवट अब ले चुकी है। किसान आंदोलन की चिंगारी शोला बनने की सनक पर आतुर होना ही चाहती है।
हाथरस में 121 लोगों के हत्यारे इस दलित बाबा शिवहरि के ठिकानों पर बुलडोजर न चलने के पीछे भी क्या किसी अमित शाह , किसी मोदी का हाथ तो नहीं ? कि योगी का ख़ुद का यह कायराना फ़ैसला है। यह समय बताएगा। जो भी हो योगी सरकार और भाजपा को इस की भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। बर्बादी की राह पर चल रही भाजपा के लिए यह धरती में धंस जाने वाला निर्णय है। जो सरकार जनता का दुःख न समझे , हत्यारे की आड़ में वोट बैंक को महत्वपूर्ण समझे , ऐसी निकम्मी सरकार को उखाड़ ही फेकना चाहिए। ऐसी सरकार को कल जाना हो तो आज ही चली जाए। आख़िर हाथरस में कुचल कर मरने वाले भी दलित और निर्बल लोग ही थे। क्या वह लोग वोट बैंक का हिस्सा नहीं हैं। हत्यारा बाबा इस लिए बचा हुआ है कि वह अरबपति है। उस के साथ दलित वोट बैंक का वहम खड़ा है।
इसलिए ? इस लिए कि भाजपा बर्बादी की डगर पर ढोल-नगाड़े के साथ निकल पड़ी है।
इसलिए ?
कांग्रेस इसी तरह बर्बाद हुई थी। सपा-बसपा इसी तरह बर्बाद हुई थीं। मुस्लिम वोट बैंक के खौफ में कांग्रेस और सपा-बसपा जैसी पार्टियां आतंकियों को हाथ लगाने से थर-थर कांपती थीं। सपा ने यादव अपराधियों के साथ भी यही नरमी बरती। मुस्लिम अपराधी तो सपा के दामाद ही थे। कांग्रेस के भी। बसपा के भी। अतीक़ अहमद , मुख़्तार अंसारी जैसे अनेक खूंखार अपराधी ऐसे ही सत्ता के सिर पर बैठ कर आग मूतते थे। बिहार में शहाबुद्दीन जैसे लालू के सिर पर बैठ कर आग मूतता था। मुस्लिम वोट बैंक अफ़ीम बन चुका था , सेक्यूलरिज्म की आड़ में। इन्हीं सब से आजिज आ कर जनता ने 2014 में भाजपा को चुना था। भाजपा भी इसी कुमार्ग पर चल पड़ेगी , जनता कहां जानती थी। भाजपा के मोदी राज में भी रामनवमी पर , हनुमान जयंती पर , दुर्गा पूजा पर दिल्ली जैसी जगह पर मिनी दंगे होने लगे। पश्चिम बंगाल में तो नर्क ही हो गया है। देश के तमाम हिस्सों में भी यह इस्लामी हिंसा का नर्क और बढ़ा है। कर्नाटक , तमिलनाडु तक में।
सनातन को कैंसर , मलेरिया , डेंगू , एड्स जैसे ख़िताब भी मोदी राज में पेश किए गए हैं। यह और ऐसी फेहरिस्त बहुत लंबी है। और तो और बीते कर्नाटक विधान सभा चुनाव में जैसे जय हनुमान का रंग उतर गया था वैसे ही 2024 के लोकसभा चुनाव में जय श्री राम का रंग उतर कर भाजपा को चिढ़ाने लगा है। काशी में शर्मनाक जीत हुई , अयोध्या , चित्रकूट जैसी जगहों पर भाजपा को पराजय मिली। और जैसे करेला और नीम चढ़ा जो कहते हैं न , इस उपचुनाव में बद्रीनाथ में भी भाजपा चित्त हो चुकी है। सनातन की रखवाली का जो परसेप्शन था वह पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है।
गरज यह कि भाजपा के सारे चुनावी औजार अब भोथरे हो चुके हैं। सब में जंग लग चुके हैं। हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव में भी पलीता लग चुका है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और अब सबका प्रयास के जुमले से भाजपा के लोग ही आजिज हो चुके हैं। देश ऊब गया है , इस कोरी लफ़्फ़ाज़ी से। गगन बिहारी स्लोगन से राजनीति , चुनाव और सरकार ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकते। स्लोगन भी ओवरहालिंग मानते हैं। औज़ार भी। कई बार बदल भी। भाजपा को अब मोदी को भी बदलने की समय रहते सोचना चाहिए। कम से कम मोदी की ओवरहालिंग पर ही सोचना चाहिए। नहीं अगले चुनावों में भाजपा को कांग्रेस की तरह बर्बादी के पड़ाव पर देखने के लोग तैयार हो गए हैं। अग्निवीर जैसे तमाम मसले हैं जिन्हें सत्ता पक्ष देश को समझाने में बुरी तरह पराजित है।
मुकेश अंबानी जैसे पूंजीपति ने बेटे के विवाह के बहाने इंडिया गठबंधन के लोगों के लिए लाल कारपेट वैसे ही तो नहीं बिछा दी है। मोदी की गारंटी का गगन बिहारी रंग एक पूंजीपति ने भी समय रहते समझ लिया है। समझ लिया है कि मोदी मैजिक बस स्वाहा ही है। पर नहीं अगर कोई समझ पाया है तो वह भाजपा के सरगना नरेंद्र मोदी हैं। मोदी अकसर कहते रहे हैं और उन के सिपाहसालार भी कि जहां लोग सोचना बंद करते हैं , मोदी वहां से सोचना शुरू करता है। तो हुजुरेआला , जब भाजपा के पतन की पराकाष्ठा और दुर्दशा प्राप्त कर ही सोचेंगे क्या कि आख़िर मोदी मैजिक स्वाहा हो कैसे गया है !