स्वास्थ्य मंत्रालय ने पहल की तो भ्रष्टाचार की एक परंपरा टूटी। अब सारे देश में मेडिकल की भर्ती-परीक्षा एक-जैसी होगी। अभी तक चलन यह है कि अलग-अलग राज्यों और निजी कालेजों ने भर्ती के अपने-अपने नियम बना रखे थे। कहीं कोई एकरुपता नहीं थी। नतीजा यह होता था कि सैकड़ों-हजारों छात्र कई काॅलेजों में आवेदन करते थे। एक में नहीं तो किसी दूसरे में भर्ती हो जाएंगे, इसी जुगाड़ में सभी लगे रहते थे। यदि सारी जुगाड़ें काम न आए तो फिर ब्रह्मास्त्र काम करता था। यह ब्रह्मास्त्र है-लाखों रु. का बंडल! निजी मेडिकल काॅलेज जब करोड़ों की रिश्वत खा लेते हैं तो उनकी आंख पर इतनी चर्बी चढ़ जाती है कि वे आंखें योग्य-अयोग्य में भेद करने लायक नहीं रहतीं। इसीलिए डाॅक्टरी-जैसे नाजुक पेशे में नीम-हकीमों की भरमार हो जाती है। जो काबिल डाॅक्टर होते हैं, वे भी बाद में बदला निकालते हैं। अपने मरीजों का इलाज तो अच्छा करते हैं लेकिन उन्हें लूटने में जरा भी संकोच नहीं करते। कई डाॅक्टरों से मैंने पूछा कि आपका बर्ताव डाकुओं से भी अधिक निर्मम क्यों हो जाता है तो वे कहते हैं कि भर्ती के वक्त हमारे माता-पिता अपने जेवर, जमीन-जायदाद बेचते हैं और बरसों उधार चुकाते रहते हैं, क्या आपको वह दिखाई नहीं पड़ता है?
तो इस लूट-पाट का कारण डाॅक्टरों की भर्ती में चलनेवाली धांधली है। इस धांधली पर अब काफी रोक लगेगी। मोदी सरकार की यह उल्लेखनीय उपलब्धि है। स्वास्थ्य मंत्री जयप्रकाश नड्ढा ने जो हिम्मत दिखाई है, वह मोदी के अन्य मंत्रियों के लिए भी अनुकरणीय है। नड्ढा को चाहिए कि भर्ती-परीक्षा और मेडिकल की पढ़ाई में भी कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन करे। जब तक मेडिकल की भर्ती और पढ़ाई मातृभाषा में नहीं होती, हिंदी में नहीं होती, स्वभाषाओं में नहीं होती, वह जादू-टोना ही बनी रहेगी। यदि मेडिकल की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में होने लगे तो फेल होनेवाले छात्र-छात्राओं की संख्या काफी घट जाएगी। गरीब, ग्रामीण, पिछड़े और वंचित वर्गों के बच्चों को डाक्टर बनने में ज्यादा सुविधा रहेगी। वे सेवा ज्यादा करेंगे। अपनी भाषाओं में मौलिक अनुसंधान भी काफी आसान होंगे। दवाइयां सस्ती मिलेंगी और लूट-पाट भी कम हो जाएगी। क्या खुद नरेंद्र मोदी में हिम्मत है कि वह इस मामले में पहल करे?
मुख्यमंत्री शिवराज चैहान ने भोपाल में अटलबिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय कायम किया है। स्व. सरसंघचालक सुदर्शनजी और मेरे आग्रह पर यह कायम हुआ है। तीन-चार साल हो गए लेकिन अभी तक मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरु नहीं हुई है। मेडिकल कौंसिल हिम्मत नहीं दिखा पा रही है। मैं मोदी और नड्ढा से कहता हूं कि वे जरा हिम्मत दिखाएं तो साल भर में ही वह काम हो सकता है, जो पिछले 100 साल में भी नहीं हुआ है।
साभार-http://www.nayaindia.com/ से