टूटे हुए भरोसे को जोड़ने और आम नागरिकों के आत्मविश्वास की सरकार
नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल पूरे होने पर मीडिया में विमर्श, संवाद और विवाद निरंतर है। एक सरकार जिसने अपने एक साल पूरे किए हैं, वह स्वयं भी इन विमर्शों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है। यानि यह सरकार संवाद करती हुई सरकार है, उत्सवधर्मी सरकार है,लोगों से सरोकार रखने वाली सरकार है। यही तीन बातें मोदी सरकार की सबसे बड़ी विशेषताएं भी हैं।
पिछले 10 साल तक भारत में राज करने वाली खामोश सरकार के बजाए यह बोलने वाली सरकार है। यह ‘चुप्पा सरकार’ नहीं है। देश की जनता को यह सक्रियता और संवादप्रियता पसंद आती आ रही है। क्योंकि कोई भी सरकार कुछ भी बोल नहीं सकती, बोलने के बाद करने का दबाव उस पर अपने आप बनता है। मोदी की सरकार के लिए यह एक वर्ष इस मायने में उपलब्धि के हैं कि उन्होंने अवसादग्रस्त और दुखी हिंदुस्तानियों को भरोसा दिया है, आत्मविश्वास दिया है। राजनीति और सरकार की सक्रियता से भी कुछ बदल सकता है, यह भरोसा जगा दिया है। इसी कारण लोगों ने मोदी को बहुमत दिया, आज भी यह भरोसा हिला और दरका नहीं है, मोदी लोगों के चहेते बने हुए हैं। उन्हें चुनकर गलती हो गयी यह अहसास उनके विरोधियों को भले ही खाए जा रहा हो किंतु जनता का भरोसा उन पर कायम है। उनकी लोकप्रियता और जादू में कहीं से कोई दरार अभी नहीं दिख रही है। वे आज भी देश के भरोसेमंद नेता के नाते लोगों के दिलों में कायम हैं। भारत एक विशाल देश है, असीमित आकांक्षाओं और अनगिनत सपनों का देश है।
किंतु देशवासियों की साझा आकांक्षाएं यही हैं कि उनका देश भ्रष्ट, दब्बू, पिलपिले और अराजक देश के नाते न पहचाना जाए। उसकी पहचान एक आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था, बेहतर प्रशासन, अच्छी शिक्षा और सुरक्षा, सुप्रबंधन, युवाओं को बेहतर कार्य अवसरों वाले देश के रूप में हो। नरेंद्र मोदी ने यह भरोसा जताया है कि वे यह कर सकते है। आत्मविश्वास से लोगों को भरने का काम अपने चुनावी अभियान से उन्होंने प्रारंभ किया और मई में ऐतिहासिक जीत हासिल कर वे पांच साल के लिए सायलेंट मोड में नहीं बैठ गए,बल्कि इस सकारात्मक संवाद को निरंतर किया। आत्मविश्वास से भरी उनकी देहभाषा, उनके सपने, कुछ करने को आतुर दिखती उनकी भाषण शैली, सब कुछ मिलकर देश में सकारात्मक वातावरण तो बना ही रहे हैं, यह बता भी रहे हैं देश की जनता ने गलती नहीं की है। एक विशाल देश के सपने सामूहिकता को साधकर ही पूरे हो सकते हैं। मोदी ने कमोबेश इसे करने की कोशिश की है।
जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने से लेकर, लालू यादव-मुलायम सिंह से लेकर दिग्विजय सिंह के शादी समारोहों में शिरकत करने जैसे छोटे प्रसंग बताते हैं कि मोदी में सामान्य शिष्टाचार से आगे बढ़कर देश को साथ लेने की आकांक्षा है। वे देश के नेता सरीखा व्यवहार कर रहे हैं। उन्हें पता है कि राज्यों को अधिकार देकर, मुख्यमंत्रियों को टीम इंडिया का हिस्सा बनाकर ही इस देश के सपने पूरे हो सकते हैं। इसलिए वे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तारीफ कर सकते हैं, तो जयललिता को आरोप मुक्त होने पर बधाई दे सकते हैं। यह बड़ा दिल ही उनकी कार्यशैली से व्यक्त हो रहा है। मोदी को पता है उनकी असली परीक्षा तो चुनाव जीतने के बाद ही प्रारंभ हुयी है। वे दंभ से भरे होते तो एक बिल पास होने पर सोनिया जी को धन्यवाद देने उनकी मेज तक न पहुंचते। यह सामान्य प्रसंग बताते हैं कि उनके पास एक लोकतांत्रिक मन है। कई बार कोई कद्दावर नेता सामने हो तो यह छवि बनती है वह लोगों की सुनता नहीं होगा, डिक्टेटर होगा। आप देखें तो अकेले नरेंद्र मोदी क्यों ममता बनर्जी, जयललिता, अरविंद केजरीवाल जैसों के बारे में भी लगभग यही छवि प्रक्षेपित होती है। किंतु अपने लोगों की स्वीकृति, आम जनता के समर्थन के बिना आप यह कहां कर सकते हैं। इन नेताओं के पास जिस प्रकार का जनसमर्थन है, जितना प्यार है, उसे हासिल करना साधारण कहां है।
नरेंद्र मोदी की वैश्विक यात्राएं एक उठ खड़े हो रहे भारत की गवाही देती हैं। अपने देश से निराश भारतवंशियों के मन में आस्था जगाती हैं। ये भारतवंशी ही आज दुनिया में भारत के सबसे बड़े ब्रांड अंबेस्डर हैं। सही मायने में मोदी की यह यात्राएं एक अवसर हैं दुनिया में भारतीय होने का गर्व जगाने का। राजनीति भी कुछ बदलती है, मोदी लगातार यह अहसास कराते हैं। खासकर अन्ना आंदोलन के दिनों में जैसा वातावरण आम जनता में बनाया गया कि सारे राजनेता भ्रष्ट हैं और राजनीति से कुछ नहीं बदलेगा। मोदी ने अपने चुनावी अभियानों के दौरान ही इस सारे मिथक को तोड़ा और सत्ता पाकर राजनीति की ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की धारा को आगे बढ़ाया। देश के टूटे मन को जोड़ने का यह बड़ा प्रयास था। मोदी स्वयं इस विचार को नहीं मानते की सत्ता से सब कुछ हो सकता है। वे एक ऐसी धारा से आते हैं जो समाज की सामूहिक शक्ति और चेतना में विश्वास करती है। समाज की सामूहिक शक्ति को साधना, उसे जागृत करना, उसे दिशा देना और परिणाम हासिल करना। हां, सरकारें और हर समय के नायक इसके लिए अपेक्षित वातावरण जरूर बनाते हैं। भारत की विशालता और उसका आकार व जनसंख्या हर असंभव काम को कर सकती है। बस उचित वातावरण की जरूरत है। नरेंद्र मोदी जानते हैं कि सरकारों की शक्ति की सीमा सीमित है। एक जागृत और चेतनावान समाज ही अपने संकटों से लड़ सकता है। नरेंद्र मोदी के सत्ता में होने के मायने यह भी हैं कि लोग मानते हैं अब भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, सत्ता अराजक न होगी, वह काम करती दिखेगी, नेतृत्व का शासन-प्रशासन पर प्रभाव होगा और वे सही दिशा में चीजों को ले जाने के यत्न करेगें।
भारत का समाज पुरूषार्थी समाज है ।वह सत्ता पर निर्भर समाज नहीं है। उसने हर समय में अपने परिश्रम, योग्यता और ज्ञान से देश के हर अभाव की पूर्ति की है। भारतीय समाज की इसी विशेषता ने दुनिया की वैश्विक मंदी के बीच भी हमारी ताकत को संभाले रखा। हम लड़खड़ाए पर गिरे नहीं। यह भारतीयों के श्रम,कौशल और पुरूषार्थ के चलते ही संभव हो पाया था। देश और दुनिया में अपने परिश्रम और ज्ञान से यही युवा अपने देश को कमाकर धन भेजते हैं, इससे देश की अर्थव्यवस्था को शक्ति मिलती है। यही शक्ति हमारी ताकत है। इसी को सूत्र में बांधने और संगठित करने का काम राजनीति करती है। लोगों की बिखरी हुई ताकत उचित वातावरण पाकर एक होती है और बड़े परिणाम देती है। नरेंद्र मोदी की सरकार आज यह करती हुयी दिख रही है। वे सिर्फ भारतवंशियों को जोड़ नहीं रहे बल्कि उनको भारत समर्थक शक्ति के रूप में विश्व मंच पर एकजुट भी कर रहे हैं। यह भारत की वैश्विक छवि निर्माण का भी समय है। आज भारत अपने हितों को लिए दुनिया भर से समर्थन जुटा पाने में सफल होता दिखता है। इस मोदी समय का मूल्यांकन करने का वक्त दरअसल अभी नहीं आया है। हमारे प्रशासन तंत्र की मंथर गति, कार्य को रोकने और यथास्थिति बनाए रखने की शैली इसका बड़ा कारण है। किंतु दुनिया बदल रही है, जो न बदले वे रूक जाएंगें। मोदी चल चुके हैं, देश साथ चल चुका है। इस ‘मोदी समय’ की वास्तविक छवियां तीसरे साल आकार लेती दिखेंगी, उसमें देश अपने भविष्य को आकार लेता हुआ देखेगा। एक नया समय भारत की जनशक्ति को एकजुट होकर सपनों में रंग भरने के लिए प्रेरित कर रहा है। ‘मोदी समय’ ने हम सबको यह अवसर दिया है। इसी भरोसे और आत्मविश्वास से हम वह सब कुछ हासिल कर सकते हैं, जिससे भारत वास्तव में अपनी शक्ति को साकार होता हुआ देखेगा।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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– संजय द्विवेदी,
अध्यक्षः जनसंचार विभाग,
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय,
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