नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके टॉप तीन मंत्रियों वित्त मंत्री अरुण जेटली, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक-दूसरे से काफी अलग तरीके से अपने निजी रिश्ते बनाए हैं। मोदी कैबिनेट के तीन दिग्गजों की कामकाज की शैली पर देखिये ये खास रिपोर्ट इकॉनामिक टाईम्स से
मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, दोनों का भरोसा अरुण जेटली को हासिल है। कई अहम नियुक्तियां जेटली की सिफारिश पर की गई हैं, लेकिन बीजेपी में कई लोगों का मानना है कि जेटली की असल परीक्षा इकॉनमी के मोर्चे पर होनी है। जेटली के करीबियों का कहना है कि जब मोदी को पीएम कैंडिडेट बनाने की बात उठी थी तो कई दिग्गजों ने इसका विरोध किया था, लेकिन जेटली ने इस आइडिया का 'पुरजोर समर्थन' किया था।
जेटली ने मोदी और अमित शाह के कानूनी मसले भी संभाले हैं। पार्टी के एक लीडर ने कहा कि जब शाह के गुजरात में घुसने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई थी, तो वह सबसे पहले जेटली के घर ही गए थे। अब बीजेपी प्रेजिडेंट के रूप में शाह जेटली पर काफी भरोसा करते हैं। एक अन्य बीजेपी नेता ने कहा, 'शाह के साथ मिलकर अब काम कर रहे लोगों में ज्यादातर जेटली के करीबी हैं। लोगों के बारे में शाह जो राय बनाते हैं, वह जेटली की राय पर आधारित होती है और मोदी भी उस पर सहमति जताते हैं।'
इस बीजेपी नेता ने कहा कि देखिए जेटली के करीबी पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण और धर्मेंद्र प्रधान को अहम मंत्रालय मिले हैं। यही बात लॉ ऑफिसर्स की नियुक्ति में भी सही बैठी। जेटली के एक मित्र ने कहा, 'जेटली के अच्छे दोस्त मुकुल रोहतगी की नियुक्ति में यही पहलू काम आया। तब शाह ने मोदी से बात की और मामला क्लियर कराया।'
मोदी, जेटली और शाह के करीबी रिश्ते कुछ लोगों के लिए ईर्ष्या की वजह भी हैं। कुछ पार्टी नेताओं का कहना है कि इनमें निशाना साधने के लिए सबसे कमजोर कड़ी जेटली हैं। एक बीजेपी लीडर ने कहा, 'जेटली सबसे आसान निशाना हैं। मोदी पर हमला किया ही नहीं जा सकता है। शाह पर निशाने तभी साधे जा सकेंगे, जब पार्टी बिहार में अच्छा प्रदर्शन न कर सके।'
हालांकि एक सीनियर बीजेपी लीडर ने कहा, 'जेटली का कोई रिप्लेसमेंट भी नहीं है। फाइनैंस मिनिस्टर होने के अलावा वह मोदी के संकटमोचक भी तो हैं।' हालांकि अगर मोदी सरकार का प्रदर्शन इकॉनमी के आधार पर आंका जाए तो जेटली का ही सबसे पहले इम्तिहान होना है। एक बीजेपी लीडर ने कहा, 'उनकी जरूरत है, लेकिन आखिरकार उन्हें खुद को साबित भी करना होगा।'
राजनाथ सिंहः आखिर सीख ही लिया मोदी को पसंद करना
बीजेपी चीफ के रूप में अपने पहले कार्यकाल में मोदी के साथ राजनाथ सिंह का रिश्ता मधुर नहीं था, लेकिन दूसरे कार्यकाल में दोनों नेताओं ने मिलकर काम किया और अब कैबिनेट में आधिकारिक रूप से सिंह नंबर दो की पोजिशन पर हैं। एक सरकारी नोटिफिकेशन में स्पष्ट किया गया था कि जब पीएम देश में न हों तो कैबिनेट मीटिंग्स की अध्यक्षता सिंह ही करेंगे। संघ के पसंदीदा नेताओं में शामिल सिंह का कद ऐसा है कि शाह और मोदी एहतियात रखते हैं कि उनसे टकराव की स्थिति न बने।
सिंह के बेटे के बारे में कथित तौर पर कैबिनेट के ही किसी सदस्य की ओर से जब अफवाह उड़ा दी गई थी और सिंह ने नाराजगी जताई थी तो उन्हें शांत करने के लिए मोदी और शाह आगे आए थे। बीजेपी अध्यक्ष के अपने पहले कार्यकाल में मोदी और जेटली के साथ सिंह के रिश्ते असहज थे।
उन्होंने पार्टी के केंद्रीय संसदीय बोर्ड से मोदी को और मुख्य प्रवक्ता के पद से जेटली को हटा दिया था। हालांकि दूसरे कार्यकाल में मोदी के साथ उनके रिश्ते नाटकीय ढंग से सुधरे। सिंह ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज के खिलाफ मोदी के लिए जोर लगाया। सिंह जब बीजेपी अध्यक्ष थे, तब एक सीनियर कांग्रेस लीडर भी उनके घर गए थे, ताकि उन्हें मोदी को पीएम कैंडिडेट न बनाने के लिए मनाया जा सके। हालांकि सिंह ने गोवा में यह ऐलान किया।
एक बीजेपी लीडर ने कहा, 'चुनाव से पहले मोदी की सार्वजनिक आलोचना करने वालों को उन्होंने ऐसा न करने के लिए भी कहा था।' एक वक्त सिंह ने यशवंत सिन्हा से कहा कि वह शत्रुघ्न सिन्हा से कहें कि वह मोदी के बारे में तीखी बयानबाजी बंद करें। बताया जाता है कि पीएम के प्रिंसिपल सेक्रटरी के रूप में नृपेंद्र मिश्र की नियुक्ति तब हुई, जब सिंह ने इसकी सिफारिश की। यूपी के सीएम के रूप में सिंह ने मिश्रा के साथ काम किया था।
बीजेपी नेताओं का कहना है कि जब शाह ने पिछले साल विधानसभा की कुछ सीटों पर उप चुनाव के दौरान स्टार कैंपेनर के रूप में योगी आदित्यनाथ को उतारा तो पार्टी में लोगों को लगा कि एक और ठाकुर नेता को प्रमोट किया जा रहा है, लेकिन बाइपोल में बीजेपी चित हो गई और अब सिंह के लिए योगी चिंता की बात नहीं रह गए हैं।
हालांकि सिंह और मोदी के रिश्ते भले ही बेहतर दिख रहे हों, फाइनैंस और होम मिनिस्ट्रीज के बीच तनातनी से पता चलता है कि पीएम के लिए यह दिक्कत का सामान हो सकता है। एक सीनियर बीजेपी लीडर ने कहा, 'यूपीए 2 की पस्तहाली प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम में टकराव के साथ शुरू हुई थी। सिंह बनाम जेटली का दूसरा दौर अगर तेज हुआ तो पीएम को दिक्कत हो सकती है।'
सुषमा स्वराजः कैबिनेट में फिट होने के लिए मद्धम पड़े आलोचना के स्वर
मोदी को जनादेश मिलने तक सुषमा बीजेपी के सीनियर लीडर लालकृष्ण आडवाणी के खेमे में थीं, लेकिन बतौर विदेश मंत्री वह पीएम के साथ काम कर रही हैं और मोदी ने भी उन्हें अहम जिम्मेदारियां दे रखी हैं। एक बीजेपी लीडर ने कहा, 'सुषमाजी का मामला तो जबर्दस्त बदलाव का है।' मोदी की आलोचक रहीं सुषमा सरकार बनने के बाद खुद को लो-प्रोफाइल रखना सीख गईं। एक सीनियर बीजेपी लीडर ने कहा, 'अपना काम वह बखूबी करती हैं, भले ही लोग उनके बारे में बात न करें।'
जैसे दूसरे कई प्रधानमंत्री विदेश नीति के मामले में काम करते रहे हैं, उसी तरह कमोबेश मोदी भी कर रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि मोदी तो बल्कि ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। इससे सुषमा को दिक्कत होनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है। एक बीजेपी लीडर ने कहा, 'सुषमाजी ने बहुत गरिमामय ढंग से काम किया है।' अधिकारियों का कहना है कि मोदी हमेशा अपने अहम आइडिया और कदमों के बारे में सुषमा को जानकारी देते हैं।
पीएम की तरह सुषमा भी विदेश यात्राएं करती रहती हैं। हालांकि एक बीजेपी लीडर ने कहा, 'वह इसका ढोल नहीं पीटती हैं।' एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने कहा, 'सुषमा स्वराज जानती हैं कि मंत्री के रूप में उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है।'
कई लोगों को लगा था कि मोदी कैबिनेट में असंतोष की एक मुखर आवाज सुषमा की रहा करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सियासत के रंग देखिए कि पीएम के रूप में मोदी की उम्मीदवारी का विरोध करने वालीं सुषमा उनकी कैबिनेट में अब सबसे संजीदा मंत्री हैं।
साभार- इकॉनामिक टाईम्स से