नए न्यूक्लियर कॉम्प्लेक्स पर मोदी को सुझाव देकर हैदराबाद में काम करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक पशुपति राव बुरे फंस गए हैं। उन्होंने राजस्थान के कोटा में एक न्यूक्लियर फसिलिटी बनाने के बारे में पीएम के ऑफिशल पोर्टल (pmindia.gov.in) पर सुझाव दिए थे। पीएमओ के तहत काम करने वाला डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी (डीएई) अब उनके पीछे पड़ गया है। पीएमओ ने इस मामले में ई-मेल किए गए प्रश्नों का जवाब नहीं दिया। राव ने भी इस बारे में कुछ नहीं कहा।
क्या है मामला? राव ने 28 सितंबर, 2014 को pmindia.gov.in पर सुझाव भेजे थे। यह पोर्टल अपने आइडिया शेयर करने और पीएम से अपनी बात कहने के लिए बनाया गया है। राव ने नए न्यूक्लियर कॉम्प्लेक्स से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर अपनी राय भेजी थी, लेकिन पीएमओ ने उसे राव के एम्प्लॉयर डीएई के पास 'शिकायत' के रूप में भेज दिया और फिर इस वर्ष 21 जनवरी को राव को ईमेल से बताया कि उनकी शिकायत का निपटारा कर दिया गया है।
डीएई को भेजे गए पत्र में पीएमओ ने राव का नाम और पद भी बता दिया था। इससे उनकी पूरी पहचान उनके सीनियर्स को पता चल गई।
बाद में डीएई ने राव से स्पष्टीकरण मांगने शुरू किए। डीएई के कुछ अधिकारियों ने बताया है कि राव को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। कुछ वर्ष पहले डिफेंस रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन में भ्रष्टाचार का खुलासा करने का दावा करने वाले विसलब्लोअर प्रभु डंडरियाल ने इस वर्ष 27 जनवरी को पीएमओ में राव के मामले को लेकर एक आरटीआई दाखिल की थी।
डंडरियाल ने पीएमओ से उन गाइडलाइंस के बारे में पूछा था, जिनका पालन वह सरकारी अधिकारियों से 'संवेदनशील' कम्युनिकेशन के बारे में करता है।
कोटा प्रॉजेक्ट के बारे में राव ने लागत घटाने के लिए तकनीकी ब्योरे के अलावा यह प्रस्ताव भी दिया था कि प्रॉजेक्ट की समीक्षा के लिए एक स्वतंत्र टीम बनाई जाए। एनएफसी के डेप्युटी चीफ ऐग्जिक्युटिव एस. गोवर्द्धन राव ने कहा है कि वह (राव) स्टाफ मेंबर हैं। इसे स्टाफ की शिकायत के रूप में देखा जा रहा है।
साभार- इकॉनामिक टाईम्स से