Sunday, November 24, 2024
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मातृभाषा हमारी अभिव्यक्ति को सशक्त और संवेदनशील बनाती है

“भाषानिबद्धमति मञ्जुल मातनोति ..!” समस्त भाषाएं आदरणीय हैं, किन्तु मातृभाषा में संवाद हमारी अभिव्यक्ति को प्रभावी व संवेदनशील बनाता है। भाषा की वैज्ञानिकता व अतिविशाल शब्दकोश हिन्दी का वैशिष्ट्य है, सरलता, बोधगम्यता और शैली की दृष्टि से विश्व की भाषाओं में हिन्दी महानतम स्थान रखती है। हिन्दी जितनी समर्थ होगी भारत उतना ही सशक्त और गौरवशाली होगा ! मातृभाषा का अर्थ आत्माभिव्यक्ति से है। ऐसी भाषा जिसमें स्वयं की संस्कृति, संस्कार और व्यवहार को सही अर्थों में अभिव्यक्त किया जा सके। हिन्दी मात्र एक भाषा नहीं, सम्पूर्ण राष्ट्र की अभिव्यक्ति है। अपितु सनातन वाक् सत्ता एवं भारतीय अस्मिता की सुषुम्ना है, जिसमें भारत की संस्कृति सभ्यता और संस्कारों के स्वर समाहित हैं। भाषा की विविधताओं में वैखरी के सभी सारस्वत स्वरूप आदरणीय हैं।

हिन्दी भाषा विश्वस्तर पर सनातन वैदिक संस्कृति की सहज-सरल, सरस-समर्थ एवं दिव्य अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। यह भाषा सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय को आकर्षित करती है। विश्व हिन्दी दिवस का उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित करना, हिन्दी के प्रति अनुराग एवं जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है। हमें अपनी मातृभाषा और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। हिन्दी एकमात्र ऐसी भाषा है, जो देश को एकसूत्र में बांधकर रखने का कार्य करती है। भाषा को राष्ट्रभाषा बनने के लिए उसमें सर्वव्यापकता, प्रचुर साहित्य रचना, धर्मिता बनावट की दृष्टि से सरलता और वैज्ञानिकता, सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामर्थ्य आदि गुण होने अनिवार्य होते हैं। और, यह सभी गुण हिन्दी भाषा में हैं। भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से प्रत्येक प्राणी अपने विचारों को दूसरों पर अभिव्यक्त करता है। यह ऐसी दैवीय शक्ति है, जो मनुष्य को मानवता प्रदान करती है और उसका सम्मान तथा यश बढ़ाती है। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा कि बिना हिन्दी के हम अपने विकास की कल्पना नही कर
सकते हैं …।

मूल भाषा ही सभी उन्नतियों का मूलाधार है और मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण सम्भव नहीं है। हमें विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान सभी देशों से अवश्य लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार-प्रसार मातृभाषा में ही करना चाहिये। हिन्दी आज विश्व की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। बी.बी.सी. की एक खबर के अनुसार इस समय विश्व में 54.5 करोड़ हिन्दी बोलने वाले हैं। गैर हिन्दी भाषी देशों के लोग भी हिन्दी सीख रहे हैं। हिन्दी पूरे भारत और दुनिया के कई देशों जैसे मॉरीशस, सूरीनाम, फिज़ी, गुयाना, मलेशिया, त्रिनिनाड एवं टोबैगो, नेपाल आदि में बोली और समझी जाने वाली भाषा है। प्रयोग की दृष्टि से भी हिन्दी इतनी समृद्ध है कि इसकी पाँच उपभाषाएँ और कम से कम सोलह बोलियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से कई बोलियों और उपभाषाओं में भी प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। हिन्दी बहुत सरल और लचीली भाषा है जिसे सीखने में कोई कठिनाई नहीं होती। हिन्दी भाषा में जो लिखा जाता है वही पढ़ा भी जाता है। अतः इसके लेखन और उच्चारण में स्पष्टता है। हिन्दी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है। सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने भी हिन्दी को अब अपनी सभी सेवाओं में एक माध्यम के रूप में शामिल किया है। कंप्यूटर और इंटरनेट पर भी हिन्दी का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। आज प्रायः हर विषय पर सामग्री हिन्दी में प्राप्त की जा सकती है। ऐसे समय में जबकि भारत तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर है और सम्पूर्ण विश्व की दृष्टि भारत की ओर लगी है, भारत के विकास के साथ ही दुनिया में हिन्दी का महत्व बढ़ना भी निश्चित है। देश को पुन: विश्वगुरु बनाने के साथ ही हिन्दी को भी विश्वभाषा बनाने का संकल्प लें। इसलिए “कृपया मातृभाषा का प्रयोग करें; हिन्दी का प्रयोग करें …।”
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