Saturday, November 23, 2024
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म.प्र. के आदिवासी बहुत जिले की छात्राओं के हौसले के आगे झुका मुंबई का आईआईटी

मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल खरगोन जिले की पांच छात्राओं की शिक्षा के प्रति लगन को दुनिया देखेगी। इनकी जिद के आगे न तो संसाधनों की कमी रोड़े डाल सकी, न ही क्षेत्र का पिछड़ापन। क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहीं इन छात्राओं की इसी जिद पर आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर ने डॉक्यूमेंट्री बनाई है, नाम रखा है ‘पंच कन्या’।

अपना एक प्रोजेक्ट स्वीकृत न किए जाने पर इन छात्राओं ने हार नहीं मानी, बल्कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई को ई-मेल भेज कर उसे इसके लिए सहमत करने में सफल रहीं। ई-मेल पर लिखे इनके आवेदन को पढ़कर आईआईटी इन्हें अनुमति से इनकार न कर सका। प्रोजेक्ट का सपना तो पूरा हुआ ही, साथ ही इनकी इस लगन और इस जिद को भी आईआईटी मुंबई ने दुनिया के सामने रखने का फैसला किया। उसके प्रोफेसर ने यहां आकर उन छात्राओं पर डॉक्यूमेंट्री बनाई, नाम दिया पंचकन्या।

आठ मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री को हाल ही रिलीज किया गया है। डॉक्यूमेंट्री की भूमिका आईआईटी मुंबई के कम्प्यूटर साइंस विभाग से सेवानिवृत्त मानद प्रोफेसर डॉ. डीबी फाटक ने लिखी। खरगोन जिले की यह पंचकन्याएं हैं अदिति रावल, अनुजा खेड़े, पूनम चौहान, लक्ष्मी पाटीदार व शिवानी वर्मा।

चार साल पहले जेई मेन्स की परीक्षा देकर इन्होंने खरगोन जिला मुख्यालय से 21 किमी दूर बोरांवा स्थित जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के कम्प्यूटर साइंस संकाय में प्रवेश लिया था। संघर्ष यहीं खत्म नहीं होता। सामान्य परिवारों की ये सभी छात्राएं महेश्र्वर और आसपास के गांव से रोजाना 25 किमी का सफर तक कर कॉलेज पहुंचती थीं।

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आईआईटी मुंबई द्वारा दूरदराज के इलाकों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को साइंस एंड टेक्नोलॉजी में हो रहे नए-नए शोध से परिचित करवाने के लिए नि:शुल्क ऑनलाइन पाठ्यक्रम चलाया जाता है। इसका फायदा इस कॉलेज के विद्यार्थियों को भी मिल सके, इसके लिए कॉलेज के प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर ने पहल की। प्रोजेक्ट थ्री डी एनीमेशन से संबंधित था, जिसमें ये पांच छात्राएं शामिल थीं। सालभर चले इस पाठ्यक्रम के बाद जब प्रैक्टिकल की बारी आई तो बाधा आ खड़ी हुई। आईआईटी के नियमानुसार एक प्रोजेक्ट पर तीन छात्राएं ही काम कर सकती थीं। अब परेशाानी यह थी कि इनमें से तीन छात्राएं लक्ष्मी, पूनम और शिवानी के पास न तो कंप्यूटर सिस्टम था, न ही लैपटॉप। अदिति और अनुजा को लगा कि उनकी टीम के तीन साथी इस प्रोजेक्ट से वंचित रह जाएंगे। पर मायूस होना उन्हें मंजूर नहीं था।हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के बजाय अदिति ने आईआआईटी ने इस प्रोजेक्ट के हेड और सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट डॉ. समीर सहस्त्रबुद्धे को ई-मेल किया कि पांचों को एक साथ प्रोजेक्ट करने की अनुमति दी जाए क्योंकि अन्य तीनों छात्राओं के पास संसाधन नहीं हैं। वे इस प्रोजेक्ट से वंचित रह जाएंगी।

इस पर डॉ. सहस्त्रबुद्धे ने उन्हें जवाब भी दिया कि इस प्रोजेक्ट में अंकों का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए छात्राएं इस प्रोजेक्ट को छोड़ सकती हैं। इस जवाब पर अदिति और उनके साथियों ने मिलकर फिर से एक ई-मेल किया कि उन्हें अंकों की जरूरत नहीं है। वे सीखना चाहती हैं और आईआईटी मुंबई को अपना प्रोजेक्ट बनाकर देना चाहती हैं। इस जवाब को पढ़कर डॉ. सहस्त्रबुद्धे ने पहले इंटरनेट पर यह तलाशा कि बोरावां कहां पर है और फिर प्राचार्य से संपर्क कर छात्राओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की। संतुष्ट होने पर प्रोजेक्ट की अनुमति दे दी गई। यही नहीं, छात्राओं के जवाब से अभिभूत होकर डॉ. सहस्त्रबुद्धे खरगोन पहुंचे। इन छात्राओं और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर डॉक्यूमेंट्री बनाई।

इन छात्राओं का मेल भावुक कर देने वाला था। यहां आकर छात्राओं और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और एकाग्रता देख अभिभूत हुआ। तभी इन पर डॉक्यूमेंट्री बनाने का फैसला लिया गया ताकि अन्य विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जा सके। इससे साधन संपन्न परिवारों के बच्चे समझ सकेंगे किकुछ कर गुजरने के लिए संसाधान नहीं जज्बा, जुनून चाहिए।

-डॉ. समीर सहस्त्रबुद्धे, सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट. आईआईटी मुंबई

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साभार – https://naidunia.jagran.com से

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