Saturday, December 28, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेश्री मोहन भागवत ने गलत क्या कहा?

श्री मोहन भागवत ने गलत क्या कहा?

‘भागवत ने यह तो नहीं कहा कि मदर टेरेसा सेवा नहीं करती थीं या उनकी सेवा ढोंग थी। उन्होंने सिर्फ यही कहा कि उनकी सेवा के पीछे मुख्य भाव अभावग्रस्त लोगों को ईसाई बनाना था। इसमें भागवत ने गलत क्या कहा है?’ हिंदी दैनिक अखबार नया इंडिया में छपे अपने आलेख के जरिए ये कहना है वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक का। उनका पूरा आलेख आप यहां पढ़ सकते हैं:
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत के बयान पर हमारे कुछ सेक्युलरिस्ट बंधु काफी उखड़ गए हैं। मोहन भागवत ने ऐसा क्या कह दिया है? क्या उन्होंने मदर टेरेसा पर कोई आरोप लगाया है? क्या उनके बारे में कोई ओछी बात कही है? क्या उन्होंने कोई गलतबयानी की है? क्या उन्होंने तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा है? क्या उन्होंने मदर टेरेसा का चरित्र-हनन किया है? उन्होंने तो ऐसा कुछ नहीं किया है। उन्होंने सिर्फ एक तथ्यात्मक बयान दिया है, जिसे मैं 100 टंच की चांदी कह सकता हूं या 24 कैरेट का सोना कह सकता हूं। उसमें रत्तीभर भी मिलावट नहीं है। यदि मदर टेरेसा जीवित होती तो वे भी इस बयान से पूर्ण सहमत होतीं।
 
भागवत ने यह तो नहीं कहा कि मदर टेरेसा सेवा नहीं करती थीं या उनकी सेवा ढोंग थी। उन्होंने सिर्फ यही कहा कि उनकी सेवा के पीछे मुख्य भाव अभावग्रस्त लोगों को ईसाई बनाना था। इसमें भागवत ने गलत क्या कहा है? क्या वे लोगों को ईसाई बनने के लिए प्रेरित नहीं करती थीं? वे अपनी सेवाएं देने के लिए भारत ही क्यों आई? अमेरिका क्यों नहीं गईं? वे यूरोप में पैदा हुई थीं। यूरोप के ही किसी देश में क्यों नहीं गईं? स्वयं उनका अपना देश अल्बानिया यूरोप के पिछड़े हुए देशों में था। वे वहीं रहकर गरीबों की सेवा क्यों नहीं कर सकती थीं? उनका लक्ष्य गरीबों की सेवा नहीं था। उनका लक्ष्य गरीबों को ईसाई बनाना था। सेवा तो उस लक्ष्य को प्राप्त करने का एक साधन-भर थी। ये अलग बात है कि वह सेवा वे दिल लगाकर करती थीं।
 
यदि शुद्ध न्याय की दृष्टि से देखा जाए तो इस तरह की सेवा एक प्रकार की आध्यात्मिक रिश्वत है। आपने किसी की सेवा की याने आपने उसे अपनी सेवा दी और बदले में उसका धर्म ले लिया। इससे बड़ा सौदा क्या हो सकता है? मैं कहता हूं कि इससे बड़ी अनैतिकता क्या हो सकती है? जो धर्म आप पर लाद दिया गया है, उससे बड़ा अधर्म क्या है? पैसे या तलवार के जोर पर जो धर्म-परिवर्तन किया जाता है, उससे बढ़कर पाप-कर्म क्या हो सकता है? स्वयं इस धर्म-परिवर्तन को यदि ईसा मसीह देख लेते तो अपना माथा ठोक लेते। यदि कोई ईसा के व्यक्तित्व पर मुग्ध हो जाए, बाइबिल के पर्वतीय उपदेश से प्रेरित हो जाए, बाइबिल के दृष्टांतों से प्रभावित हो जाए और इसी कारण ईसाई बन जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है। ऐसे धर्म-परिवर्तन का मैं विरोध नहीं करुंगा। लेकिन विदेशी पादरी भारत क्यों आते हैं? सिर्फ इसलिए आते हैं कि यह उनकी सुरक्षित शिकार-भूमि है। मदर टेरेसा इसकी अपवाद नहीं थीं।
 
उन्हें आप नोबेल पुरस्कार दे दें या भारत रत्न दे दें या विश्व-रत्न दे दें, उससे क्या फर्क पड़ता है? किसी भी पुरस्कार या पद के कारण कोई झूठ, सच नहीं बन जाता। सच के सामने सभी पुरस्कार फीके पड़ जाते हैं। एक से एक अयोग्य लोगों को नोबेल पुरस्कार और भारत-रत्न पुरस्कार मिले हैं। इन पुरस्कारों को कवच बनाकर आप दिन को रात और रात को दिन नहीं बना सकते।
 
 (लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)
 
(साभार: नया इंडिया)

.

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार