Monday, November 18, 2024
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प्रबंधन के अद्भुत सूत्र हैं सुंदर कांड मेः श्री वीरेंद्र याज्ञिक

तुलसीकृत रामचरित मानस की एक-एक पंक्ति ऐसे तो जीवन जीने की कला सिखाती है, लेकिन रामचरित मानस के सुंदर कांड की 60 चौपाईयों में प्रबंधन का पूरा शास्त्र समाया हुआ है। सुंदर कांड की व्याख्या करते हुए श्री याज्ञिक ने कहा कि किसी भी समस्या का समाधान हमारे अंदर ही मौजूद होता है, लेकिन हमें अपने अंदर की शक्तियों को ऐसे ही जगाना पड़ता है जैसे हनुमान ने अपनी शक्तियों को जगाया था।

श्री वीरेंद्र याज्ञिक के सुंदर कांड पाठ एवँ चर्चा का आयोजन मुंबई के धर्मनिष्ठ श्री महावीर प्रसाद नेवटिया ने मुंबई के मड आईलैंड में प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित और समुद्र के किनारे स्थित अपने आवास पर किया था।

श्री याज्ञिक ने कहा कि सुंदर कांड जीवन को सुंदर बनाने का संदेश देता है और संदेश ही नहीं देता है इसे पूरे प्रमाण के साथ हमारे सामने रखता है। जब कोई समस्या आती है तो हमारे अपने ही किस तरह असहाय हो जाते हैं और हम कोई रास्ता नहीं खोज पाते हैं। जब समुद्र लांघने की बात आती है तो जामवंत कहते हैं कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ इसलिए मेरा जाना संभव नहीं। दूसरी ओर अंगद कहता है मैं जा तो सकता हूँ लेकिन मेरे अंदर इतनी परिपक्वता नहीं है कि मैं वापस आ सकूँ॒; संभव है मैं लंका के सौंदर्य और सुखों में भटक जाऊँ। मुझे यह भी डर है कि मैं रावण के पुत्र अक्षय कुमार से नहीं जीत सकूँ। उन्होंने कहा कि गीता में भी अर्जुन की स्थिति ठीक ऐसी ही होती है। वह युध्द के पहले विषाद से घिर जाता है। सुंदर कांड भी जीवन के संशय को दूर करता है और गीता भी हमारे संशयों से मुक्त करती है।

सुंदर कांड के इस उध्दरण की आज की स्थिति से तुलना करते हुए श्री याज्ञिक ने कहा कि आज हमारा समाज भी इसी स्थिति से गुज़र रहा है। माता-पिता अपनी संतानों को पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाते हैं और वे गाँव से मुंबई या किसी पराये देश में जा बसते हैं और वहीं के मोहपाश या सुक-सुविधाओं में खोकर अपने माता-पिता, गाँव सबको भूल जाते हैं।

युध्द या संकट के समय हमारी रणनीति क्या होना चाहिए, सुंदर कांड इसका श्रेष्ठतम उदाहरण है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को ये समझ लेना चाहिए कि उसका जन्म मात्र जीवन जीने के लिए नहीं बल्कि जीवन में कुछ नया, विलक्षण और कोई निश्चित कार्य करने के लिए हुआ है। जिस दिन हम ये समझ लेते हैं, हमारे अंदर आत्मविश्वास पैदा होने लगता है और हमारी सोच और व्यक्तित्व उसी के अनुरूप बदलने लगता है।

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य शब्द को हमने बहुत गलत ढंग से परिभाषित कर लिया है, स्वास्थ्य का मतलब मात्र स्वस्थ होना नहीं बल्कि ‘स्व’ में ‘स्थित’ होना है।

श्री याज्ञिक ने कहा कि प्रबंधन और जीवन दोनों में ही सफलता के लिए तुलसी ने चार बातों को महत्वपूर्ण बताया है। सुनत, कहत, गरवत और समुझत यानी सबसे पहले सबसे अच्छे श्रोता बनें, सुनी हुई बात को हजम करना सीखें, अपनी बात को समझकर कहन सीखें।

उन्होंने कहा कि हनुमानजी ने लंका जाने के लिए समुद्र लांघने के पूर्व अपने सभी साथियों से कहा कि आप मेरा यहीँ इंतज़ार करना, मैं लंका से जब लौटकर आउंगा तो हम सब प्रभु श्री राम के पास जाकर मेरी लंका यात्रा की जानकारी देंगे। हनुमानजी का ये कथन टीम मैनेजमेंट का श्रेष्ठ उदाहरण है, हनुमानजी चाहते थे कि लंका से आने के बाद उसका पूरा श्रेय उनको अकेले को नहीं उनके सभी साथियों को मिले। श्री याज्ञिक ने कहा कि ऐसे ही किसी भी संस्थान सीईओ को अपनी पूरी टीम को विश्वास में लेकर काम करना चाहिए ताकि सभी उसके साथ सहयोग की भावना से काम करें।

उन्होंने कहा कि सफलता हासिल करने और उसका आनंद प्राप्त करने के लिए हमारे अंदर सात्विक शक्तियों का होना बहुत ज़रुरी है। अगर हमारे अंदर तामसिक शक्तियाँ जाग्रत हो गई तो हम सफलता के असली आनंद से वंचित हो जाएंगे। हमारे अंदर जैसे ही सात्लिक शक्तियाँ जाग्रत होती है तामसिक शक्तियाँ अपने आप बेअसर हो जाती है। इसलिए हमें अपनी जीवन यात्रा में सात्विक शक्तियों को शामिल करना चाहिए।

श्री याज्ञिक ने कहा कि श्री हनुमानजी लंका जाकर अपने उद्देश्य में सफल होंगे कि नहीं, इसके लिए देवताओं ने उनके बल, बुध्दि और ज्ञान तीनों की परीक्षा ली। देवताओं के आव्हान पर सुरसा ने उनके बल और बुध्दि की परीक्षा ली, हनुमानजी भी सुरसा के मुँह में प्रवेश कर कान से बाहर निकल आए। इसके बाद उनका संघर्ष तामसिक शक्तियों से हुआ और वे विजयी हुए। उन्होंने कहा कि लंका की सुरक्षा व्यवस्था ऐसी थी कि कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता था, किसी भी देश की सुरक्षा व्यवस्था ऐसी ही होनी चाहिए।

हनुमानजी ने लंका जाकर वही किया जो हमारी सेना ने पाकिस्तान में आतंकवादियों के शिविर ध्वस्त करके किया है। इस तरह हनुमानजी इस दुनिया के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राईक की थी।

सीता के सामने हनुमानजी के छोटे रूप में जाने की व्याख्या करते हुए याज्ञिकजी ने कहा कि अगर हम अपने से किसी बड़े व्यक्ति से मिलें तो अपने आपको छोटा समझें और अहंकार से मुक्त हो जाएँ ।

उन्होंने कहा कि जीवन में सभी शक्तियों के साथ ही विवेक और चैतन्य होना भी जरुरी है। अगर विवेक नहीं है जो रावण जैसे सर्वशक्तिमान का भी सर्वनाश तय है और अपने चैतन्य की शक्ति से विवेकानंद जैसा व्यक्ति भी जिनके पास कोई साधन और सुविधा नहीं थी ; पूरे विश्व मे भारतीयता और हिन्दू धर्म का परचम फहरा सका।

हमारा कर्म ही यज्ञ हैः श्री वीरेंद्र याज्ञिक

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