कश्मीरी भाषा,साहित्य और संस्कृति पर अब तक मेरी पंद्रह पुस्तकाकार रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। इन में अनुवादित पुस्तकें भी शामिल हैं।ये सभी पुस्तकें देश के प्रसिद्ध प्रकाशकों ने छापी हैं और खूब चर्चित हुई हैं। कुछेक पुस्तकें पुरस्कृत भी हुई हैं।कश्मीरी की प्रसिद्ध रामायण ‘रामावतारचरित’ के सानुवाद लिप्यंतरण के लिए राजभाषा विभाग,बिहार सरकार ने मुझे 1983 में पटना में ताम्रपत्र से विभूषित किया था।डॉ. कर्णसिंह ने मेरे इस श्रम साध्य कार्य की सुंदर भूमिका लिखी है।
इधर,अपनी लेखन-यात्रा के दौरान कश्मीर के साहित्य,जीवन और संस्कृति पर मेरे अनेक लेख,निबंध,शोधपत्र आदि भी खूब छपे। कई रेडियो-वार्ताएँ भी प्रसारित हुईं। इन सब की संख्या सौ के ऊपर होनी चाहिए। इस सभी रचनाओं को अलग से एक संग्रह में प्रकाशित कराने की इच्छा मेरे दिल में कई दिनों से थी। पिछले दिनों अपने दुबई-प्रवास के दौरान इलाहाबाद/प्रयागराज स्थित एक साहित्यानुरागी प्रकाशक से पत्राचार द्वारा संपर्क हुआ।फोन पर भी बात हुई और मेल/व्हाट्सअप्प पर भी। ये महानुभाव हिन्दी-प्रकाशन-संसार से विगत साठ वर्षों से जुड़े हुए हैं।
हिन्दी प्रकाशन की दुनिया के ज्ञान-कोश! फ़िराक गोरखपुरी,यशपाल,महादेवी वर्मा,सुमित्रानंद पंत,रामनरेश त्रिपाठी,भारतेन्दु हरिश्चंद्र,गोविंदचन्द्र पांडेय, विष्णुकांत शास्त्री,कमलेश्वर आदि हिन्दी के सुविख्यात रचनाकारों की अनेकानेक पुस्तकें इन्होंने छापी हैं।उनको मेरा प्रकाशन-प्रस्ताव जँच गया और पुस्तक को छापने की हामी भरी।अपने निबंधों को मैं ने पुनः संशोधित-परिवर्धित किया और पांडुलिपि को अंतिम स्वरूप प्रदान किया। आजकल के कंप्यूटर के युग में लेखन से जुड़ा कोई भी कार्य कठिन नहीँ है। टाइपिंग से लेकर एडिटिंग तक तथा डॉक्युमेंट्स के संग्रह से लेकर उनके सम्प्रेषण तक सारे काम कंप्यूटर ने आसान कर दिया है।
मेरा अभीष्ट यह रहा कि इस संग्रह में ऐसे निबंधों को दिया जाए जो सारगर्भित ही न हों अपितु पाठकों को कश्मीर के प्राचीन और अर्वाचीन जीवन,इतिहास,संस्कृति और विविधायामी साहित्यिक ‘रस-रंग’ से रू-ब-रू करा सकें। पिछले तीन दशकों से कश्मीर सामाजिक-राजनीतिक कारणों से अशांत भी रहा है।इन कारणों और उनसे जनित दुष्परिणामों का भी इस पुस्तक में यहाँ-वहाँ उल्लेख किया गया है।मेरी यह पुस्तक विश्व-पुस्तक मेले में रिलीज़ होने वाली थी। कोविड की बढ़ती चुनौती के मद्देनज़र चूंकि ‘मेला’ स्थगित हुआ है, अतः अब सीधे प्रकाशक/अमेज़न से उपलब्ध होगी।
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डॉ. शिबन कृष्ण रैणा
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