कृपया 21 – 12 – 2015 के निम्नलिखित ईमेल का सन्दर्भ ग्रहण करें जो “माईगव” वेबसाइट से मिला है पिछड़े एक साल में इस तरह के दर्जनों ईमेल भारत की आम जनता को भारत सरकार की ओर से प्राप्त हो रहे हैं। राजभाषा अधिनियम १९६३ एवं राजभाषा नियम १९७६ के अनुसार इस तरह का पत्राचार अनिवार्य रूप से द्विभाषी रूप में भेजा जाना चाहिए क्योंकि भारत की राजभाषा हिंदी है पर प्रधानमन्त्री कार्यालय एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों ने ऐसे ईमेल भेजने के लिए जिस ‘जनसंपर्क’ एजेंसी को ठेका दिया है, उसमें शर्त रखी है कि ईमेल सिर्फ अंग्रेजी में भेजे जाएँ।
इसी तरह प्रधानमंत्री के हिंदी भाषणों का लेखन करने वाले अधिकारी जानबूझकर उसमें प्रचलित हिंदी शब्दों के स्थान पर अंग्रेजी शब्दों को डाल रहे हैं, अंग्रेजी शब्दों का मिश्रण अत्यधिक है और वह आम प्रचलित हिंदी शब्दों के स्थान पर किया जा रहा है और हिंग्लिश को बढ़ावा दिया जा रहा है यदि सरकार को हिंदी से इतनी ही कोफ़्त है तो संविधान में संशोधन करके अंग्रेजी को राजभाषा घोषित कर देना चाहिए, विपक्ष और मीडिया उनका भरपूर साथ भी देंगे।
साथ ही ऐसे हिंग्लिश भाषणों का पाठ प्रेस में जारी किया जाता है उसमें अंग्रेजी के शब्दों को रोमन लिपि में ही लिखा जाता है जो कि संविधान के अनुच्छेद 343 का उल्लंघन है, हिन्दी रोमन में नहीं,देवनागरी में लिखी जाती है। प्रमं के इन हिंग्लिश भाषणों को रोमन में पढ़ना और समझना आम जनता के लिए कठिन है। वस्तुतः हिंगलिश हिन्दी के लिए एक धीमा ज़हर है जिसके दुष्परिणाम दिखेंगे नहीं पर पर वह हिंदी को ख़त्म कर देगा, यह एक बड़ा षड्यंत्र है। हिंदी में रोमन और अंग्रेजी शब्दावली ठूँसना हिंदी को सरल बनाना नहीं है क्योंकि हिंदी हमेशा से सरल रही है उसे कठिन कहना निरी मूर्खता है। ( प्रमं के पिछले 4 हिंग्लिश भाषण संलग्न हैं)
प्रधानमन्त्री कार्यालय के अधिकारियों ने निविदा सूचना, प्रेस विज्ञप्ति और पत्रकारों आदि को कार्यक्रमों के ईमेल आमंत्रण आदि हिंदी में न भेजने का अघोषित नियम बना रखा है।
मेरे शिकायती पत्र में उठाए गए प्रत्येक बिन्दु पर मैं आपके द्वारा ठोस कार्यवाही और सकारात्मक उत्तर की प्रतीक्षा कर रही हूँ क्या मुझे भारत की आम नागरिक होने के नाते जवाब भी नहीं मिलना चाहिए.
भवदीय
विधि जैन
१०३ ए, आदीश्वर सोसाइटी
सेक्टर-९ए, वाशी, नवी मुंबई ४००७०३