Thursday, December 26, 2024
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नकारा अफसरों ने एक बुजुर्ग महिला का जीवन नर्क बना दिया

मीठाबाई कुंभाफले
केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए 25 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन लगाया था। इस समय लोगों को बेवजह घरों से बाहर निकलने के लिए मना किया गया था। लॉकडाउन के कारण सभी उद्योग धंधे बंद हो गए थे। रोजी-राटी न होने के कारण प्रवासी मजदूर भी अपने घरों की तरफ लौटने लगे थे। इसी दौरान एक गहलफहमी के चलते 60 वर्ष की मीठाबाई कुंभाफले महाराष्ट्र के औरंगाबाद के बजाय बिहार के औरंगाबाद पहुंच गई। अब करीब वह आठ महीनों के बाद अपने घर लौटीं हैं। आइए जानते हैं कि वह अपने कैसे लौटीं।

यह है पूरा मामला
मीठाबाई कुंभाफले औरंगाबाद से करीब 40 किमी दूर कोलाघर गांव में अपने परिवार के साथ रहती हैं। वह अपनी मां के स्वास्थ्य को लेकर बेहद परेशान थी और उनसे मिलने के लिए कहा करती थी। लेकिन लॉकडाउन के कारण उनके परिवार के लोग उन्हें अपनी मां के पास नहीं ले जाने के लिए तैयार नहीं थे। उनके पति का कहना था कि लॉकडाउन के बाद वह उन्हें मां से मिलवाने के लिए ले जाएंगे। लेकिन एक दिन जब पति और बच्चे खेत का काम करके लौटे तो उन्होंने देखा कि मीठाबाई घर में नहीं थी। उनके परिवार ने उनको आस-पास के गांव में ढूंढा, लेकिन वह मिली नहीं। परिवार ने पुलिस स्टेशन में उनके लापता होने की शिकायत दर्ज की। उन्हें लगा कि उन्होंने परिवार का एक सदस्य़ खो दिया है।

झारखंड में दिखी मिठाबाई
मीठाबाई के परिवार को करीब आठ महीने बाद कलेक्टर का फोन आया। उन्होंने बताया कि मीठाबाई जीवित हैं और जल्द ही वह घर वापस आएंगी। मीठाबाई को उनके गांव से 1600 किमी दूर झारखंड में देखा गया। यह उनके सबसे लम्बी दूरी की यात्रा थी। मीठाबाई 24 नवंबर को अपने गांव पहुंची। वहां के स्थानीय लोगों ने उनका स्वागत किया। जब वह लौटी, तो उनके चेहरे पर मुस्कान बनी हुई थी, क्योंकि करीब आठ महीने बाद वह अपने परिवार से मिल रही थीं।
जिला अधिकारियों ने मीठाबाई को जबरदस्ती गाड़ी में बैठाया
मीठाबाई ने मुंबई मिरर को बताया कि वह पैदल यात्रा करने के लिए अपने घर से निकलीं थी। लेकिन रास्ते में जिला अधिकारियों ने उन्हें कोविड टेस्ट के लिए जबरदस्ती गाड़ी में बैठा लिया। जब वह जांच केंद्र पर पहुंची तो अधिकारियों की टीम उनसे अलग हो गई और वह भटक गई।

उनके परिवार ने बताया कि मीठाबाई प्रवासी मजदूरों के साथ चल पड़ीं, जो लॉकडाउन के कारण अपने घरों को लौट रहे थे। जब मजदूरों ने उनसे पूछा कि उन्हें कहां जाना है तो मीठाबाई ने औरंगाबाद बताया। वे सभी मजदूर बिहार जा रहे थे। सभी बिहार की ट्रेन में बैठ गए।

रास्ता गलत लगा तो झारखंड में उतरी मीठाबाई
मीठाबाई जब औरंगाबाद पहुंचने वाली थी, तो उनको लगा कि वह गलत रास्ते पर जा रही हैं। झारखंड के लातेहार स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो मीठाबाई वहीं उतर गईं। स्टेशन पर कई प्रवासी मजदूर भी उतरे। रेलवे स्टेशन पर मौजूद अधिकारयों ने मीठाबाई सहित सभी लोगों को क्वारंटीन के लिए भेज दिया। इतनी समस्याओं का सामना करने के बाद एक बात अच्छी रही कि उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई।

गुरुकुल अनाथालय में किया गया शिफ्ट
वहां की मजिस्ट्रेट फ्रीति सिन्हा ने बताया कि क्वारंटीन सेंटर से जब लोगों को घर भेजने की तैयारी हो रही थी तो अधिकारियों ने उन्हें एक महिला के बारे में बताया जो सिर्फ मराठी बोलती हैं, और कहीं जाना नहीं चाहती हैं। इसलिए उन्हें गुरुकुल अनाथालय में भेज दिया गया, यहां 22 लड़कियां भी रह रही थीं।

भाषा समझने में आई मुश्किल
अनाथालय में मीठाबाई को दो स्थानीय निवासी मिले, जिनको थोड़ी बहुत मराठी समझ में आती थी। पर उनको भी बातचीत करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। गुरुकुल के सुपरिटेंडेंट सुरेंद्र कुमार ने बताया वह हमेशा परेशान रहती थी। उन्हें दो बार अनाथालय से भागने की कोशिश करते हुए भी पकड़ा गया।

अनाथालय के अधिकारियों ने बताया कि उन्हें दाल चावल नहीं पसंद था, लेकिन उन्हें फल, सब्जियां और चापाती खाना पसंद था। वह रोती रहती थीं और अधिकारियों से उन्हें घर छोड़ने के लिए कहा करती थी। समय बीतने के साथ उनकी तबीयत भी बिगड़ने लगी।

जब मजिस्ट्रेट प्रीति को उनकी हालत के बारे में पता चला तो उन्होंने लातेहार के जिला कलेक्टर अबू इमरान से बात की। इमरान कहते हैं कि उन्होंने मीठाबाई से बात करने की कोशिश की, गूगल ट्रांसलेट का इस्तेमाल करने पर भी यह नहीं पता चल सका कि वह कहां से आईं हैं।

मराठी जानने वालों को बुलाया
मीठाबाई की बात को समझने के लिए कलेक्टर इमरान ने महाराष्ट्र से अपने दोस्तों को बुलाया। उके साथी आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े और आजम शेख ने मीठाबाई से बात की। इसके बाद पता चला कि वह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले की हैं। औरंगाबाद के कलेक्टर से बात की गई। उन्होंने सभी अधिकारियों को आदेश दिए कि मीठाबाई के परिवार को खोज की जाए। पुलिस अधिकारियों ने जब रिकॉर्ड खंगाले तो परिवार की तरफ से दर्ज मीठाबाई के लापता होने की रिपोर्ट मिली। तब जाकर उनके परिवार का पता चला। इसके बाद कलेक्टर ने मीठाबाई को उनके परिवार से बात कराई।

मीठाबाई को वापस लाने गांव वालों ने जमा किए 400 रुपए
औरंगाबाद के जिला कलेक्टर ने गांव के सरपंच से पूछा कि क्या वह मीठाबई को वापस लाने के लिए गाड़ी का इंतजाम कर सकते हैं। तो उन्होंने वित्तीय स्थिति ठीक न होने कारण मना कर दिया। जिसके बाज कलेक्टर ने अपनी तरफ से गाड़ी भेजी। ग्रामीणों ने पेट्रोल और अन्य खर्चों के लिए 400 रुपए जमा किए। जिसके बाद मीठाबाई के बेटे, सरपंच और पुलिस की एक टीम उनको लेने के लिए झारखंड निकले और उन्हें वापस ले आए।

साभार- https://www.amarujala.com/ से

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