पीटीआई द्वारा जारी खबर में दावा किया गया है कि नई दिल्ली पूर्व थल सेनाध्यक्ष वी. के. सिंह ने अपनी किताब में दावा किया है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सैन्य तख्तापलट का 'खौफ' था और उन्हें सीमा पर चीनियों की मौजूदगी से अधिक तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल थिमैया की लोकप्रियता की चिंता ज्यादा सताती रहती थी।
सिंह ने अपनी आत्मकथा 'करेज ऐंड कन्विक्शन' में लिखा है, 'आजादी के बाद से देश में शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व सैन्य तख्तापलट की आशंका से डरा-सहमा रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है कि नेहरू के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग सैन्य तख्तापलट के प्रति उनके खौफ का फायदा उठाते थे और असैन्य-सैन्य रिश्ते विकसित होते वक्त उन लोगों ने इस रिश्ते में सेंध लगाना शुरू कर दिया।' सिंह ने अपनी आत्मकथा लेखक और फिल्मकार कुणाल वर्मा के साथ लिखी है।
उन्होंने कहा कि भारत के पहले रक्षामंत्री के रूप में सरदार बलदेव सिंह के चुनाव ने भविष्य के लिए भारत की योजनाएं निश्चित कीं। सिंह ने कहा कि सरदार बलदेव सिंह अपनी पॉलिटिकल महारत के लिए ज्यादा जाने जाते थे ना कि सैन्य महारत के लिए। पूर्व सेनाध्यक्ष ने यह भी कहा कि अगर सिर्फ नेहरू की चली होती तो फील्ड मार्शल के एम करिअप्पा कभी भी आर्मी चीफ नहीं बन पाते। उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी को अपने पिता से न सिर्फ देश की सत्ता मिली थी, बल्कि वह भी अपने उपर किसी को देख नहीं सकती थीं।
पूर्व आर्मी चीफ ने लिखा है, 'एक व्यक्ति के तौर पर जनरल थिमैया की लोकप्रियता की वजह से प्रधानमंत्री को सीमा पर चीनियों की मौजूदगी से ज्यादा बुरे सपने आते थे। अक्टूबर 1962 में जब हमला हुआ तो भारतीय थलसेना 'ऑपरेशन अमर' में शामिल थी जहां वे मकान बनाने का काम कर रहे थे जबकि हमारे हथियारों के कारखाने कॉफी बनाने की मशीन बना रहे थे।'