Saturday, November 23, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोबहुमुखी प्रतिभा के धनी नेमीचंद मावरी ने बनाई साहित्य जगत में पहचान

बहुमुखी प्रतिभा के धनी नेमीचंद मावरी ने बनाई साहित्य जगत में पहचान

“तन्हाइयों के मौन से ये आवाज किसलिए?
पर कटे हैं आज फिर ये परवाज किसलिए?
लुट गए हैं चैन- ओ- सुकूँ आज के इंसान के,
फिर बेसुरा सा अपनियत का साज किसलिए?”

जीवट के धनी, काव्य शिल्प के शिल्पी और हाड़ोती साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले देश के राजस्थान में बूंदी निवासी नेमीचंद मावरी की कक्षा 8 में लिखी गई इस प्रथम काव्य रचना के अंश का आगाज़ उनके आने वाले कल के स्वर्णिम साहित्यिक भविष्य का संकेत देने के लिए पर्याप्त है। बस यहीं से काव्य सृजन की धारा का उद्गम हुआ और 60 काव्य रचनाएं लिख कर कक्षा 12 वीं उत्तीर्ण कर किशोर वय में 2011 में पहली काव्य पुस्तक “काव्य के फूल ” 60 कविताओं का संग्रह प्रकाशित हुआ, जो इनकी काव्य के प्रति अगाध निष्ठा को दर्शाता है। विज्ञान का छात्र और साहित्य का सृजन एक अद्भुत संयोग है।

युवा कवि काव्य की हर विधा मुक्त छंद, छंद बद्ध कविताएं, ग़ज़ल, हाइकु, मुक्तक, शायरी, प्रेमगीत तथा गद्य की निबंध , कहानी लिखने में सिद्धहस्त हैं। आपने प्रेम, करुणा वात्सल्य, नारी चित्रण, पारिवारिक विछोह, देशभक्ति से ओतप्रोत गीत,आधुनिक समाज का चित्रण, आध्यात्म से जुड़ाव,अलगाव तथा छात्रों को विज्ञान के जुड़ाव वाली कविताएं व अनगिनत आलेख तथा प्रेरणास्पद लेख लिखे हैं । इनकी रचनाएं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं और सोशल मीडिया यूट्यूब पर बड़े पैमाने पर उपलब्ध करा कर साहित्य सृजन की अमिट छाप छोड़ी हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हिन्दी शोध पत्रिकाओं में तथा विभिन्न काव्य संस्थाओं में भी आपकी कविताओं का प्रकाशन हुआ है।
कई साहित्यिक मंचों पर अपनी प्रतिभागिता दर्ज़ कराई है।

सृजन यात्रा के पड़ाव पर 2020 में प्रकाशित पुस्तक “अनुरागिनी – एक प्रेमकाव्य ” में बखूबी पाठकों से रूबरू करवाने की कोशिश की। वर्ष 2020 में ही “स्वप्नमंजरी” चालीस राष्ट्रीय कवियों की की विभिन्न कविताओं का काव्य संग्रह की संपादन कृति आई। इसी वर्ष चौथी कृति 80 काविताओं के काव्य संग्रह के रूप में “कोहरे की आगोशी में” प्रकाशित हुई।

नेमीचंद मावरी ने हमेशा सीखने की ललक और जो सीखा उसे आत्मसात करने की उत्कंठा की वजह से हाइकु विधा (जापानी कविता) में भी करीब 200 हाइकु लिखे हैं। जो साहित्यप्रेमियों को स्वतः उनके काव्य लेखन की ओर आकर्षित करता है। इनके 1100 से अधिक मुक्तक और शायरियां सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर, 400 से अधिक कविताएं और लेख फेसबुक पेज पर उपलब्ध है तथा करीब 50 ब्लॉग, ब्लॉगर साइट पर प्रकाशित हैं।

अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया मंच पर भी करीब 50 कविताएं प्रकाशित हो चुकी है तथा राष्ट्रीय अमर उजाला में भी लगातार कविताओं का प्रकाशन होता रहा है । आपकी रचनाएं मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान से प्रकाशित पत्रिका “मालवीय प्रकाश” में भी लगातार प्रकाशित होती रही है। महाविद्यालय स्तर पर भी आपने काव्य प्रतियोगिताओं में 2011 से 2015 तक लगातार प्रथम स्थान प्राप्त किए तथा अनवरत काव्य साधना में लगे रहे हैं।

आपके लेखन की अलग-अलग विधाओं में एक मुक्तक प्रेम और रसायन विज्ञान के सामंजस्य के साथ, बानगी देखिए………..
होठों से चूमता हूं पिपेट को,
चस्का ये सॉलिड हो गया है,
जब से मैंने तेरी रसायन समझी,
मेरा रोम रोम एल्कोहोलिक हो गया है।

कवि ने अध्यात्म के साथ भी अपनी काव्य प्रतिभा को जोड़ा है…
यहां वहां मैं भटका जग में, मन भटका अविराम,
जब पहुंचा अपने अंतर में तो मन में मिल गए राम।

कवि ने अपने समकालीन समाज की दुर्दशा देख ओज से भरी हुई कई कविताएं भी लिखी जिन्हें काव्य मंचों और गोष्ठियों में काफी दाद भी मिली, उनमें से कुछ अंश……..
काल का कृपाण ले, बीज ले उन्माद का,
तीक्ष्ण कटु बाणों से आघात करने निकला हूं,
विध्वंस करने पापियों का
मैं महाकाल बनके निकला हूं।
त्राहिमाम त्राहिमाम अबला की पुकार है,
हर रोज कूड़ेदानों में भ्रूणों की चीत्कार है,
हवस की भेंट चढ़ती नित भारत की ललना है,
हिंद में अस्तित्व बचाने का जिनका सपना है,
ऐसे अनैतिक सूत्रों का
मैं सूत्रधार बनने निकला हूं,
विध्वंस करने पापियों का
मैं महाकाल बनने निकला हूं।

कवि निमय ने मुक्त छंद कविताओं के माध्यम से जीवन की सच्चाई और गहनता को भी बहुत अच्छे से उकेरा है जो उनकी “चुप्पी” कविता में नजर आता है –
चुप्पी का भी वजूद सार्थकता लिए हुए है
क्योंकि भावों का ठहराव लाता है
संयम, सहनशीलता और एकाग्रता।
जिस तरह तालाब का ठहरा पानी
अपने अंतस में ठंडे, गर्म, लवणीय, मृदु
और क्षारीय पानी को
पाचित कर उसे
काम लेने योग्य बना देने में सार्थक होता है।
मगर बेहद न
क्योंकि ठहराव विनाश को केवल
रोक सकता है,
उसे निस्तेज नहीं कर सकता,
जिस तरह हवा की चुप्पी
एक विनाशकारी तूफान के आने का
संकेत देती है
सम रहना चिर कालिक स्थायित्व का
परिचायक है।

कहते हैं परिस्थिति के अनुकूल रहकर तथा समाज को जैसा समझ आए वैसा लिखना एक साहित्यकार का धर्म होता है। इसी यथार्थ को ध्यान में रखकर कवि ने राजस्थानी, हाड़ौती भाषा में भी अपनी दो दर्जन से अधिक लघु और वृहत कविताएं लिखी हैं । इनकी ” उंधालो” कविता के दो पद की बानगी देखिए ………
गयो स्यालो आयो उंधालो
अपास्यां म अब छायो उंधालो,
छ्याच राबड़ी चोखा लाग
कांदा रोटी म छायो उंधालो।
शीत भगा द्यो जल्दी इन्
झक्करां न ले आयो उंधालो,
फाग म्हीना खेलंगा धूली होली
धूला की बोरयां भर लायो उंधालो।

कवि ने अपनी मातृभाषा के अलावा आंग्लभाषा में भी अपनी कई कविताएं लिखी है। कवि ने हर विषय में अपनी लेखनी चलाई है जो उनकी चहुंमुखी जिज्ञासा को दर्शाती है जिनमें ” तेरी कमी है” ” रो रहा तिरंगा है” “कौन” “तुम” “आत्ममंथन” ” रास नहीं आती जवानी” ” पचपन का बचपन” ” चित्रकार” “आलू” “सड़क किनारे जिंदगी” “सैनानी का दर्द” “अलगाव” “देवी के नवरात्र” और दर्जन भर गजलों ने मंचों से खूब दाद बटोरी है।

पुरस्कार : आपको तुलसीदास साहित्य सम्मान, जालंधर, पंजाब, अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति सम्मान, जालंधर, पंजाब, साहित्य रत्न सम्मान, हिंदी साहित्य समिति, बूंदी से सम्मानित किया गया। इन्होंने रसायन शास्त्र में अनेक शोध कर अनेक वैज्ञानिक संस्थानों से राष्ट्रीय सम्मान भी प्राप्त किए हैं।

परिचय : नेमीचंद मावरी ” निमय” का जन्म 1 जुलाई 1993 को एक साधारण परिवार परंतु असाधारण प्रतिभा के धनी एक निजी शिक्षक हुकमचंद मावरी और गृहिणी निर्मला देवी के आंगन में कोटा में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा पुश्तैनी कस्बे किशनगंज जिला बारां में लेकर पांचवीं कक्षा के बाद बूंदी में स्थानांतरण करवाया। आप अनेक गतिविधियों में भाग ले कर हमेशा उत्कृष्ट परीक्षा परिणाम प्राप्त करते रहे हैं। आपने विज्ञान विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। पिताजी के संस्कारों और भाषा विषयों में रुचि को भी अपने अंदर समाहित कर हिंदी लेखन में एक नया आयाम दिया । वर्तमान में कवि ऊर्जा विभाग, राजस्थान सरकार में कनिष्ठ रसायनज्ञ के रूप में कार्यरत हैं और काव्य सृजन में लीन रहते हैं।

संपर्क सूत्र – 9694676110
———
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

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