है न बिल्कुल अटपटा काम, विचित्र-सा। सैकड़ों लोगों के निधन की खबरें लिखने वाला अदद पत्रकार आज के दौर में क्यों भयाक्रांत है, या कहें पत्रकारिता क्यों अपना स्तर खोते जा रही है, इन सभी सवालों के मूल में समाज तत्व से सरोकार की भावना और चिंतन का गौण होना है। मैं विगत १० वर्षों से लगातार हर वर्ष अपनी मृत्यु की खबर लिखता आ रहा हूँ। वर्ष २००८ का शीर्षक था ‘अर्पण जैन का निधन’, वर्ष २००९ में ‘अभियांत्रिकी छात्र अर्पण जैन नहीं रहे’, वर्ष २०१० में युवा अभियंता अर्पण जैन का निधन’ वर्ष २०११ में ‘सेन्स टेक्नोलॉजिस के संस्थापक नहीं रहें’, वर्ष २०१२ में पत्रकार अर्पण जैन का अवसान’, ऐसे ही वर्ष २०१३ में ‘सेन्स समूह के संस्थापक अर्पण जैन का निधन, शौक व्याप्त’, वर्ष २०१५ में ‘पत्रकारों के हक़ की लड़ाई लड़ने वाला चला गया, अर्पण जैन से छोड़ा शरीर’, वर्ष २०१६ में ‘पत्रकार संचार परिषद् के अध्यक्ष अर्पण जैन ‘अविचल’ ने कहा जिंदगी को अलविदा, कल होगा अंतिम संस्कार’ फिर २०१७ का शीर्षक था ‘मातृभाषा.कॉम के संस्थापक का अवसान, साहित्य जगत ने व्यक्त किया शौक’ और जब २०१८ की खबर लिखी तब शीर्षक दिया ‘हिंदी के लिए लड़ने वाले डॉ अर्पण जैन नहीं रहे, हिंदी जगत में शोक की लहर’।
इन दस वर्षों में मेरे ही द्वारा लिखी मेरी ही मृत्यु की ख़बरों में प्रदर्शित विभिन्नता इस बात की ओर इशारा करती है कि हमने उस वर्ष क्या किया जिसके कारण हमें पहचाना जाएगा। स्वभावतः मनुष्य ही सृष्टि पर एक ऐसा प्राणी है जो अपना आत्मावलोकन स्वयं करके उसे भाषा के माध्यम से व्यक्त कर सकता है।
हर वर्ष आई विभिन्नता से एक चिंतन पैदा होता है कि हम किस गली जा रहे हैं?, हमारा ठिकाना क्या है?, हमारी पहचान क्या है?, हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? संसार में करोड़ों छात्रों का निधन होता है, लाखो पत्रकार काल का ग्रास बन जाते है, हजारों कंपनियों के निदेशक देह छोड़ जाते है, सैकड़ों पत्रकारों के रहनुमा अलविदा कह जाते है, दसियों हिंदी के योद्धाओं का महाप्रयाण हो चुका है परन्तु आप आपके जाने के बाद भी समाज में कैसे जिन्दा रहोगे ये तय यदि आज ही आप करने लग गए तो यकीन मानिए आपसे जीवन में कोई अभद्रता,अनैतिकत या नियत में खोट, दुष्टता व दुर्जनता आदि कभी नहीं होगी। और तब निश्चित तौर पर आप सरोकार का पत्रकारिता धर्म निभाएंगे या यही कार्य किसी भी क्षेत्र में रहने वाला व्यक्ति करेगा तो वह कभी अनीति की तरफ बढ़ ही नहीं पाएगा।
वर्तमान दौर में समाज में पत्रकारिता का जो चेहरा सामने आता है जिसमें भाषा की अभद्रता के अतिरिक्त पीत पत्रकारिता भी शामिल है उसका एक मात्र कारण संस्कार विहीनता है। कुछ दिनों पूर्व मेरे एक सम्मानीय गुरुदेव से चर्चा हुई थी, उन्होंने बताया कि वे विद्यालय से एक रैली निकाल रहे थे, रैली के उपरांत किसी प्रसिद्द नेता का दौरा था, तो बच्चों ने जिद्द की कि हम उन्हें देखने जायेंगे, बच्चों की जिद के आगे उन्होंने नतमस्तक होते हुए जाने की इजाजत तो दे दी पर ये भी कहा की हम भी वही रहेंगे ताकि कोई परेशानी न हो। इसी बीच सूर्य देव थोड़े रुष्ट होने से धुप बढ़ने लगी। इसी दौरान एक पत्रकार वहां पहुंचा और बच्चों से पूछने लगा कि क्या तुम्हे कोई लाया है ? बच्चों ने कहा, नहीं हम तो हमारी मर्जी से उन्हें देखने आये है। पत्रकार ने शिक्षकों को देखा और कैमरा घुमा का फुटेज बनाने लगा, जो भी कारण रहा हो पर उसके बाद जब उसने राष्ट्रनिर्माता शिक्षक से कहा कि बच्चों को धुप से हटा दो वरना तुम्हारी पिच्चर बिगाड़ दूंगा !!!
अहो, इतनी अभद्र भाषा और संस्कारविहीनता यदि समाज का जागरूक कुनबा पत्रकार करे तो लगता है कि कुनबे की रीढ़ की हड्डी जो संस्कार और शिक्षा टूट से गए है। क्या हम इस तरह समाज में कार्य करते है? मेरे गुरुदेव ने चर्चा के दौरान ही पत्रकारिता के इस चेहरे के कारण सम्पूर्ण पत्रकारिता जगत में व्याप्त संस्कारों की मृत्यु की विवेचना कर दी। वाकई ऐसे अभद्र लोगो के कारण पूरा कुनबा कटघरे में खड़ा होता है।
इस देश में लाखों पत्रकार है, हजारों का निधन हो जाता है, सैकड़ों की पत्रकारिता भी अंत समय तक छूट जाती है पर याद केवल दसियो भी रखे जाए तो समझों उन्होंने बहुत कुछ अनोखा या बेहतर किया है। इसीलिए मैंने अपनी मृत्यु की खबर लिखने की आदत डालने का निवेदन किया है। यदि आप अपनी मृत्यु की खबर लिखेंगे तो आपको यह आंकलन हो जायेगा कि आप समाज के लिए क्या कर रहे है, मरने के बाद आपको किस लिए और कितने दिन तक याद रखा जाएगा। और जब यह आत्मावलोकन आप कर लेंगे तो निश्चित तौर पर आप समाज में अभद्र होने, भ्रष्ट होने, अनैतिक होने की कल्पना भी नहीं कर पाएंगे। फिर जब आप स्वस्थ और स्वच्छ सरोकार आधारित पत्रकारिता करेंगे तो आपके कारण पत्रकारिता जगत भी शुद्ध होने लगेगा क्योंकि युग निर्माण के प्रवर्तक आचार्य श्रीराम शर्मा जी कहते थे ‘हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा’। आरम्भ आपसे हो, इसीलिए मैंने अपने ही वृतांत को लिखा क्योंकि वर्ष २०१० से मैं अपनी मृत्यु की खबर हर वर्ष लिखता हूँ और आंकलन करता हूँ कि मैंने क्या खोया-क्या पाया, किस नाम से इस वर्ष मुझे पहचाना जाएगा और किन कारको के कारण समाज मुझे मृत्यु के उपरांत कितने दिन याद रखेगा।
डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं स्तंभकार
संपर्क: ०७०६७४५५४५५
अणुडाक: arpan455@gmail.com
अंतरताना:www.arpanjain.com
[लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान,भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं ]