निदा फ़ाज़ली (12 अक्टूबर 1938 – 8 फरवरी 2016 )
1.अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले
2.अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
3.एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
4.ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है
जिस जगह रहिए वहाँ मिलते-मिलाते रहिए
5.इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही
6.कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
7.कहता है कोई कुछ तो समझता है कोई कुछ
लफ़्ज़ों से जुदा हो गए लफ़्ज़ों के मआनी
8.ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख
9.किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो
10.कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं
हर एक से अपनी भी तबीअ’त नहीं मिलती
11.कुछ तबीअत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके जो मिला उस से मोहब्बत न हुई
12.बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया
13.बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे
14.बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
15.दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
16.नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई
17.हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए
18.यक़ीन चाँद पे सूरज में ए’तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख
19.ये काटे से नहीं कटते ये बाँटे से नहीं बँटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या
20.ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला
(निदा फ़ाज़ली का असल नाम मुक़तिदा हसन था। )