मुंबई: नौ साल के व्योम बग्रेचा को अपनी उम्र के ही दूसरे बच्चों की तरह पढ़ना, ड्रॉइंग बनाना और कंप्यूटर पर गेम खेलना पसंद है. इसके अलावा उन्हें एक और चीज पसंद है, जो उन्हें बाकी बच्चों से अलग करती हैं. व्योम सॉफ्टवेयर कोडिंग करता है और वो हेल्थ ऐप भी बना चुका है, जिसे एंड्रॉयड यूजर्स गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं. मुंबई के नाहर इंटरनेशनल स्कूल में चौथी क्लास में पढ़ने वाले व्योम, फिलहाल पार्किंग से जुड़े एक ऐप्लिकेशन पर काम कर रहे हैं. बड़े होकर उसको रोबोट की कोडिंग करना है, जिससे पर्यावरण को बचाया जा सके.
व्योम कि शुरुआत से ही यह दिलचस्पी जानने में थी कि कंप्यूटर आखिर काम कैसे करते है. इसलिए उनकी मां ने व्हाईट हैट जुनियर में एक ऑनलाइन कोडिंग प्रोग्रॅम में उनका एडमिशन करा दिया. व्हाईट हैट जुनियर छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर बनाया गया एक कोडिंग प्लॅटफॉर्म है. व्हाईट हैट जुनियर के सीईओ करण बजाज ने बताया, ‘औद्योगिक क्रांती के दौरान बहुत ही कम स्कूलों में गणित पढ़ाया जाता था और जब तक स्कूलों ने अपने पाठ्यक्रम में इसे शामिल नहीं किया, तब तक काफी बेरोज़गारी थी. मैं कोडिंग के साथ भी यही होते देख रहा हूं. मुझे लगता है कि यह पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए.
व्योम का हेल्थ ऐप एक सामान्य हेल्थ टूल है, जिसमें एक लिटर में कितने ग्लास पानी आएगा और इस तरह के दूसरे फीचर्स मौजूद है. बच्चे हर तरह की चीजों को ऑनलाइन बना रहे हैं. व्हाईट हैट जुनियर की वेबसाइट को देखने से पता चलता है कि 10 साल तक के छोटे बच्चों ने सामान्य ड्रॉइंग से लेकर गेम्स तक विकसित किए है. 12 साल की सान्वी इस प्लॅटफॉर्म पर 12 ऑनलाइन सेशन को पुरा कर चुकी हैं. उन्होंने बताया की वह ऐप और गेम डेवलप करना सिखना चाहती है क्योंकि ये हमारी जिंदगी का अब अहम हिस्सा बन चुके है.
स्कूलों ने भी अब पारंपरिक कंप्यूटर प्रोग्राम की जगह बच्चों को कोडिंग स्किल सिखाना शुरू कर दिया है. स्कूलों को एजुकेशनल टेक्नोलॉजी सॉल्यूशन मुहैया करने वाले विभिन्न स्कूलों के सीईओ अब अपने-अपने स्कूलों में बच्चों के लिए कोडिंग का स्पेशल सेशन करना शुरू दिया किया है. क्योंकि बच्चों को अभी से कोडिंग या फिर अन्य टेक्नोलॉजी बचपन से ही आना जरूरी बन गया है. इससे सिर्फ नॉलेज ही नही बल्कि एक उद्योजक बनने के लिए भी मदद हो सकती है. कम उम्र में भी खुद का स्टार्टअप खोलने में यह बहुत मददगार साबित हो रहा है. शुरुआत के दिनों में ही अगर हम अपने बच्चों को टेक्नोलॉजी से अवगत कराते हैं, तो आगे जाकर बड़ी स्पर्धा में बच्चों को दिक्कत नही होगी, यही इस कोडिंग का मूल उद्दिष्ट है.