आज एक विशेष दिन है. सब भारतीयों को यह दिन अवश्य याद रखना चाहिए. आज से 700 साल पहले एक इतनी दुखद दुर्घटना घटी थी जिसका अनुमान लगाना भी असंभव है. धरती पर वह कोहराम मचा था जिसको अनुभव तो दूर सोच कर भी तन मन काँप जाता है.
विक्रमी 1360 भाद्रपद की अमावस्या (26 अगस्त 1303) को चित्तोड़ में जौहर व्रत अपना कर हमारी हजारो माताएं अपने हाथो से अपनी चिता बना कर जिन्दा ही कूद गई थी. यदि हमारी अंगुली भी जल जाए तो हम चिल्ला उठते हैं परन्तु उन्होंने ने तो अपने आप को ही जलती आग में झोंक दिया था. कितनी पीड़ा हुई होगी?
गंधर्वसेन व् चम्पावती की पुत्री माता पद्मिनी जी का विवाह चित्तोड़ के राजा रतन सिंह जी से हुआ था. इस विवाह के लिए राजा रतन सिंह ने मलखान सिंह को हराया.
रानी पद्मिनी को हथियाने के लिए अलाऊदीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया. वास्तव में यहाँ पर भी एक जयचन्द था. जिसका नाम राघव चेतन था. वह वह राजा रतन सिंह का दरबारी संगीतकार था. राजा रतन सिंह ने उसकी किसी बात से नाराज होकर दरबार से निकाल दिया. (अलाऊद्दीन खिलजी के इतिहासकारों द्वारा लिखे गए विवरण के अनुसार )
वहां से वह दिल्ली गया और अलाऊद्दीन खिलजी को पद्मिनी की सुन्दरता का वर्णन करके उसे चित्तौड़ पर हमले के लिए उकसाया. खिलजी ने पद्मिनी को अपने हरम की शोभा बनाने के लिए चित्तौड़ कि और कूच किया.
राघव चेतन के बताए तरीके से उसने राजा रतन सिंह से मित्रता कि पेशकश करी. जब राजा रतन सिंह उससे मिलने पहुंचा तो उस दुष्ट सुल्तान ने उससे धोखे से कैद कर लिया और बदले में रानी पद्मिनी की मांग की। दो महापराक्रमी बलिदानी चौहान राजपूत गोरा व बादल ने सुलतान खिलजी की चालबाजी का उत्तर युक्ति से देने की तैयारी कर ली. उन्होंने खिलजी से कहलवा भेजा कि कल सुबह रानी पद्मिनी अपनी दासियों के साथ पालकी में बैठ कर तुम्हारे शिविर में आएगी.
सुबह बड़ी संख्या में राजपूत सैनिक केसरिया बाणा पहन कर पालकियों में बैठ कर खिलजी के शिविर में पहुँच गए. वहां पर जाकर गोरा बादल ने जबरदस्त युद्ध करके राजा रतन सिंह को तो छुडा लिया परन्तु इस सब में महापराक्रमी देशभक्त बलिदानी गोरा वीरगति को प्राप्त हो गया.
इसके बाद खिलजी गुस्से से पागल हो गया. उसने किले पर आक्रमण कर दिया. जब किले के अन्दर भोजन समाप्त होने लगा तब राजा रतन सिंह ने फैंसला लिया कि कल सभी सैनिक किले का मुख्य द्वार खोल कर लड़ेंगे.
राजा रतन सिंह व उसकी सेना बहुत वीरता से लडे परन्तु भूखे व बीमार होने के कारण मारे गए. जैसे ही हारने की सूचना आई रानी पद्मावती सभी स्त्रियों के साथ चिता में कूद गई. खिलजी को केवल चिता कि राख ही मिली.