Sunday, December 29, 2024
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अब अनुकंपा नियुक्ति के लिए बेटे बाप की हत्या करने लगे हैं

‘केंद्र सरकार कौशल विकास योजना के अंतर्गत रोजगार का अवसर बढ़ाने की कोशिश कर रही है, लेकिन बेरोजगारों की बढ़ती भारी संख्या देश और सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है, जब इंजीनियरिंग की डिग्री को सम्मान से देखा जाता था। इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए होड़ मची रहती थी। अच्छे कॉलेजों में अब भी प्रतिस्पर्धा है, लेकिन नौकरियों की कमी के कारण बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज बंद भी हो रहे हैं।’ हिंदी दैनिक ‘प्रभात खबर’ में छपे अपने संपादकीय के जरिए ये कहना है वरिष्ठ पत्रकार व अखबार के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी का। उनका पूरा लेख आप यहां पढ़ सकते हैं-

बेरोजगारी की गंभीर चुनौती

कुछ दिन पहले बिहार के मुंगेर जिले से एक चौंकाने वाली खबर आई कि रेलवे में नौकरी के लिए बेटे ने अपने पिता की हत्या की सुपारी दे दी। खबर बहुत सुर्खियों में नहीं आ सकी, इसलिए बहुत लोगों का ध्यान इस ओर नहीं गया। रेलवे कर्मचारी को गोली मारकर हत्या के प्रयास में एक दिन बाद पुलिस ने आरोपी बेटे को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के अनुसार बेटे ने ही अपने पिता की हत्या की योजना बनाई थी। बेटा पिता की जगह रेलवे में नौकरी पाना चाहता था।

वह कई वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पा रही थी। उसके पिता 30 अप्रैल को रिटायर हो रहे थे, इसलिए उसने पिता की हत्या की योजना बनाई, ताकि अनुकंपा के आधार पर उसे रेलवे में नौकरी मिल सके। इसके लिए उसने दो लाख की सुपारी दी। मालूम ही होगा कि हाल में रेलवे ने बहुत दिनों बाद 90 हजार पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकला है। 90 हजार नौकरियों के लिए लगभग 3 करोड़ 80 लाख लोगों ने आवेदन किया है।

यह घटना दो बातों की ओर इशारा करती है। एक तो यह कि बेरोजगारी की स्थिति इतनी भयावह है कि नौकरी के लिए युवा कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। दूसरी कि वे संघर्ष कर अवसर का लाभ लेने में सक्षम नहीं हैं तथा बच्चों की परवरिश में हम और आप असफल साबित हो रहे हैं।

कैसे कोई नवयुवक पिता की हत्या करने के बारे में सोच भी सकता है! यह घटना बेहद चिंताजनक हैं और युवाओं की मनोस्थिति को भी उजागर करती हैं। यह इस बात को भी विचार करने को मजबूर करती है कि अभिभावक नवयुवकों की पढ़ाई पर तो इतना ध्यान देते हैं, लेकिन उनकी क्या मनोदशा है, उसको लेकर कोई चिंता नहीं करते। नवयुवकों में क्या परिवर्तन हो रहा है, हम उसके आकलन में नाकामयाब साबित हो रहे हैं। अक्सर ऐसा देखा गया है कि माता-पिता केवल पढ़ाई पर ही ध्यान देते हैं, बच्चों के अन्य कार्यकलापों की अनदेखी कर देते हैं।

जहां तक बेरोजगारी की बात है, तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का भी कहना है कि भारत में बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती है। हालांकि आइएमएफ ने उम्मीद जताई है कि पिछले कुछ वर्षों के आर्थिक सुधारों से नयी नौकरियां उत्पन्न होंगी।

श्रम सुधारों से भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। हालांकि उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि अवसर रातोंरात नहीं बढ़ेंगे, इसमें समय लगेगा। दूसरी ओर लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया का सबसे अधिक बेरोजगारों वाला देश बन गया है।

भारत तेजी से तो बढ़ रहा है, लेकिन आर्थिक असमानता और बढ़ती बेरोजगारी उसकी दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। बेरोजगारी का आलम यह है कि पिछले दिनों महाराष्ट्र में सिपाही की भर्ती के लिए एलएलबी, इंजीनियरिंग, एमएड और बीएड डिग्री धारकों ने भी बड़ी संख्या में आवेदन कर सबको हैरान कर दिया।

कुल 4833 पदों के लिए साढ़े सात लाख से अधिक आवेदन आये। समाचारपत्रों के मुताबिक आवेदन करने वालों में 38 एलएलबी, 1061 इंजीनियरिंग ग्रेजुएट, 87 एमएड, 158 बीएड, 13698 मास्टर डिग्री धारी और डेढ़ लाख से ज्यादा ग्रेजुएट थे, जबकि इस पद के लिए न्यूनतम योग्यता 12 वीं पास थी। बेरोजगारी की गंभीर होती स्थिति का इससे अंदाज लगाया जा सकता है। देश में हर साल तकरीबन एक करोड़ नये बेरोजगार जुड़ जाते हैं। चिंता की बात यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली रोजगारोन्मुखी नहीं है।

केंद्र सरकार कौशल विकास योजना के अंतर्गत रोजगार का अवसर बढ़ाने की कोशिश कर रही है, लेकिन बेरोजगारों की बढ़ती भारी संख्या देश और सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है, जब इंजीनियरिंग की डिग्री को सम्मान से देखा जाता था। इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए होड़ मची रहती थी। अच्छे कॉलेजों में अब भी प्रतिस्पर्धा है, लेकिन नौकरियों की कमी के कारण बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज बंद भी हो रहे हैं।

हर साल 15 लाख से ज्यादा छात्र इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला लेते हैं, लेकिन उनमें से नौकरी सिर्फ साढ़े तीन लाख को ही मिल पाती है। लगभग 60 फीसदी इंजीनियर बेरोजगार रहते हैं, उन्हें उपयुक्त काम नहीं मिल पाता।

शिक्षा को लेकर सर्वे करने वाली संस्था ‘प्रथम एजुकेशन फांडेशन’ ने कुछ समय पहले अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘असर’ यानी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट जारी की थी। यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है।

इस रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक स्कूलों की हालत तो पहले से ही खराब थी और अब जूनियर स्तर का भी हाल कुछ ऐसा होता नजर आ रहा है। ‘असर’ की टीमों ने देश के 24 राज्यों के 28 जिलों में सर्वे किया। इसमें 1641 से ज्यादा गांवों के 30 हजार से ज्यादा युवाओं ने हिस्सा लिया। सर्वे के लिए देश के करीब 35 संस्थानों के दो हजार स्वयंसेवकों की भी मदद ली गई।

‘असर’ ने इस बार 14 से 18 वर्ष के बच्चों पर ध्यान केंद्रित किया। सर्वे में पाया गया कि पढ़ाई की कमजोरी अब बड़े बच्चों में भी देखी जा रही है। सर्वे के अनुसार 76 फीसदी बच्चे पैसे तक नहीं गिन पाते। 57 फीसदी को साधारण गुणा भाग नहीं आता। भाषा के मोर्चे पर स्थिति बेहद चिंताजनक है। अंग्रेजी तो छोड़िए, 25 फीसदी अपनी भाषा धाराप्रवाह बिना अटके नहीं पढ़ पाते। सामान्य ज्ञान और भूगोल के बारे में बच्चों की जानकारी बेहद कमजोर पाई गई।

58 फीसदी अपने राज्य का नक्शा नहीं पहचान पाये और 14 फीसदी को देश के नक्शे के बारे में जानकारी नहीं थी। सर्वे में करीब 28 फीसदी युवा देश की राजधानी का नाम नहीं बता पाये। देश को डिजिटल बनाने का जोर-शोर से प्रयास चल रहा है, लेकिन 59 फीसदी युवाओं को कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है। इंटरनेट के इस्तेमाल की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है।

लगभग 64 फीसदी युवाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल ही नहीं किया है। प्राथमिक की तरह यदि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थी भी बुनियादी बातें नहीं सीख रहे हैं, तो यह बात गंभीर होती स्थिति की ओर इशारा करती है। दरअसल, 14 से 18 आयु वर्ग के बच्चे कामगारों की श्रेणी में आने की तैयारी कर रहे होते हैं, यानी इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।

यदि इन युवाओं को समय रहते तैयार नहीं किया गया, तो जान लीजिए, इसका असर भविष्य में देश के विकास पर पड़ेगा। इनकी संख्या अच्छी खासी है। देश में मौजूदा समय में 14 से 18 साल के बीच के युवाओं की संख्या 10 करोड़ से ज्यादा है। सरकार को बिना वक्त गंवाये इन सभी पहलुओं पर गौर करना होगा अन्यथा स्थिति विकट हो सकती है।

(लेखक प्रभात खबर के प्रधान संपादक हैं और ये विचार उन्होंने अपने संपादकीय में व्यक्त किये हैं)

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