प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर को लेकर किए गए ऐतिहासिक, साहसिक एवं निर्णायक बदलावों पर राष्ट्र के नाम संबोधित करके आम-जनता की अनेक शंकाओं एवं दुश्चिताओं का निवारण करते हुए जम्मू-कश्मीर और साथ ही लद्दाख में एक नई शुरुआत होने की बात कही। निश्चित ही अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने का केन्द्र सरकार का निर्णय एक नये एवं परिपूर्ण भारत के निर्माण की दिशा में एक सार्थक पहल है। असल में देश को एक नयी आजादी का स्वाद मिला है। भारत के मस्तक एवं धरती के स्वर्ग को अशांत, आतंकग्रस्त एवं अविकसित रखने की कोशिश न केवल पाकिस्तान के द्वारा बल्कि हमारे अपने स्वार्थी राजनीतिज्ञों के द्वारा होती रही है। इस अशांति एवं धुंधलके को दूर करना समय की मांग थी। चूंकि यह भारत के भाग्य का एक अनूठा एवं विलक्षण बदलाव है, इसलिए खुद प्रधानमंत्री जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के साथ-साथ देश के लोगों से सीधे अपनी बात कहे, यह अपेक्षा महसूस की जा रही थी। यह अच्छा हुआ कि उन्होंने वक्त की यह मांग पूरी की।
जम्मू-कश्मीर में जो हम चाहते थे और जो था, उनके बीच एक बहुत बड़ी खाई थी, और यह खाई पाटना कोई नहीं चाहता था, क्योंकि इसी खाई को कायम रखकर अनेक राजनेताओं एवं राजनीतिक दलों के स्वार्थों की रोटियां सीकती रही है। वहां सम्पूर्ण व्यवस्था बदलाव चाहती थी और बदलाव का प्रयास कोई नहीं कर रहा था। वहां जो व्यवस्था, सोच एवं राजनीतिक स्थितियां थी और जो पनप रही थी, वह न्याय, लोकतंत्र एवं राष्ट्रीयता के घेरे से बाहर थी। सब चाहते थे, उपदेश देते थे कि अन्याय न हो, शोषण न हो, हिंसा न हो, अशांति न हो। अगर अन्याय, हिंसा, अशांति एवं अराष्ट्रीयता को दूर करने का कोई भी प्रयास होता तो विरोध के स्वर खड़े हो जाते। लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार ने जो चैंकाने वाले परिदृश्य उपस्थित किये, उससे एक सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ होगी। राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में उन्होंने यह सही कहा कि एक सपने को पूरा करके एक नई शुरुआत होने जा रही है। इस क्रम में उन्होंने यह रेखांकित करके बिल्कुल सही किया कि यह प्रश्न दशकों से अनुत्तरित ही था कि आखिर अनुच्छेद 370 से जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को क्या लाभ मिल रहा था? इस सवाल का जवाब कम से कम उन्हें अवश्य देना चाहिए जो अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य के पुनर्गठन का विरोध कर रहे हैं?
उन्हें बताना चाहिए कि वे भेदभाव भरे और अलगाव को बल देने वाले उस प्रावधान की वकालत क्यों कर रहे हैं जो इस राज्य के दलितों और आदिवासियों के अधिकारों पर कुठाराघात करने के साथ ही राज्य के बाहर के लोगों से विवाह करने वाली युवतियों के अधिकारों का हनन करता था? प्रधानमंत्री की ओर लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करने में बाधा खड़ी करने वाले लोगों से यह भी कहना चाहिए था कि उनके चलते राज्य के तमाम लोगों को विभिन्न चुनावों में वोट देने का अधिकार नहीं था। आखिर कश्मीर की राजनीति से आजादी के बाद से जुड़े लोगों से पूछना चाहिए कि उन्होंने हिंसा, आतंक, तनाव के अलावा कश्मीर के लोगों को क्या दिया? क्यों नहीं वहां विकास के रास्ते खुलने दिये, क्योंकि नहीं पयर्टन को प्रोत्साहन दिया गया, क्यों नहीं शिक्षा एवं चिकित्सा की समुचित व्यवस्था होने दी, क्यों नहीं व्यापार एवं उद्योग पनपने दिया? ये और ऐसे अनेक ज्वलंत प्रश्न है, जो सरकार के नये निर्णयों की अपेक्षाओं पर मोहर लगाते हैं और इन निर्णयों पर थोथा, भ्रामक, बेबुनियाद विरोध करने वालों को मोदी ने करारा जबाव दिया। उन्होंने देशवासियों को बल और संबल देने वाले अपने संबोधन में यह स्पष्ट करके तमाम अंदेशों को खत्म करने का ही काम किया कि जम्मू-कश्मीर को केवल कुछ कालखंड के लिए केंद्र के अधीन रखने का फैसला वहां के हालात सुधारने, भ्रष्टाचार एवं आतंकवाद पर लगाम लगाने, विकास और रोजगार निर्माण को गति देने के इरादे से किया गया है।
उन्होंने यह जो भरोसा जताया कि जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए रखने की जरूरत लंबे समय तक नहीं पड़ेगी। उन्होंने यह विश्वास भी व्यक्त किया कि नये जम्मू, कश्मीर और लद्दाख की अगवानी में करणीय महत्वपूर्ण कार्यों की शुरुआत अभी से होगी। हिंसा एवं आतंक में डूबी कश्मीरी पीढ़ियां, आतंक की स्वीकृत मानसिकता, आपसी संवादहीनता, दायित्व एवं कत्र्तव्य की सिमटती सीमाएं, राजनीतिक स्वार्थों की ऊंची दीवारें अनेक ऐसे मुद्दे हैं जिन पर प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैं, हमें बड़ी तत्परता से इन प्रश्नों के उत्तर तलाशने होंगे। स्वयं समाधान बनकर भगीरक्ष प्रयत्न करने होंगे, नई जमीन खोदकर, नये बीजों को बोकर पुनः कश्मीर के अनुकूल फसल उगाने एवं उसे भारत का मस्तक बनाने का।
अनुच्छेद 370 का देश के खिलाफ, कुछ लोगों की भावनाएं भड़काने के लिए पाकिस्तान द्वारा एक शस्त्र के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था। इसकी वजह से पिछले तीन दशक में लगभग 42 हजार निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का विकास उस गति से नहीं हो पाया, जिसका वो हकदार था। अब व्यवस्था की ये कमी दूर होने से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों का वर्तमान तो सुधरेगा ही, उनका भविष्य भी सुरक्षित होगा। लम्बे समय से चला आ रहा आतंकवाद भी समाप्त होगा। शांति, अमन एवं भाइचारे की नई फिजाएं एवं घटाएं आकार लेगी। कश्मीर फिर से धरती का स्वर्ग बन सकेगा।
मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के अभ्युदय का रास्ता खोल दिया है, अब वहां की जनता को इसकी सकारात्मकता को समझते हुए आगे आना होगा। कश्मीर में नये राजनीतिक ताकत को खड़ा करना होगा, क्योंकि सुधार तब तक प्रभावी नहीं होतेे, जब तक उपदेश देने वाले स्वयं व्यवहार में नहीं लाते। सुधार के नाम पर अब तक लोग अपनी नेतागिरी, अपना वर्चस्व व जनाधार को भ्रमित एवं गुमराह करने में लगे रहे, उनकी कथनी-करनी में अन्तर था, वे सबकी नहीं, केवल अपने हितों की सोचते रहे, इसलिये अब तक लक्ष्य की सफलता संदिग्ध बनी रही। भाषण और कलम घिसने से सुधार नहीं होता। सुधार भी दान की भांति घर से शुरू होता है, यह स्वीकृत सत्य है। उम्मीद है कि कश्मीर के लोग एवं राजनीति करने वाले अपनी इस भूमिका के महत्व को समझेंगे। वे इसकी अनदेखी नहीं कर सकते और प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर यह कहा भी है कि वह अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले से असहमत लोगों के विचारों को सुनने-समझने को तैयार हैं। चूंकि प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के हालात ठीक करने में देश के लोगों से भी सहयोग की अपेक्षा की कि समूचे राष्ट्र में यही संदेश उभरना चाहिए कि कश्मीर के साथ कश्मीरी भी हमारे हैं। अब हम एक अखण्ड भारत एवं सशक्त भारत की ओर आगे बढ़ रहे हैं तो इसमें कश्मीरी लोगों को सीने से लगाना समूचे राष्ट्र का दायित्व भी है और जिम्मेदारी भी। अब देश के सभी नागरिकों के हक भी समान हैं, दायित्व भी समान हैं। सरकार एवं समाज को पूरे विश्वास, दृढ़ संकल्प के साथ उन गलत धारणाओं को बेनकाब करना चाहिए, जिनके सहारे साम्प्रदायिक-तुष्टीकरण की घातक एवं राष्ट्र-विरोधी राजनीति चलती रही। सच्चाई एवं सद्भाव के साथ ऐसा करने पर कश्मीरी मुसलमान वास्तविकता एवं अपने हितों को समझकर देश की गति के साथ अपने आपको जोड़ेंगे तभी आज तक जो नहीं हुआ, वह अब हो सकेगा।
(ललित गर्ग)
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