Friday, November 22, 2024
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अब टीवी पर जनता की अदालतों में चलेंगे मुकदमे

देश के मुख्य न्यायाधीश के आँसू और मोदीजी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण पर उनकी मार्मिक प्रतिक्रिया पर भारत सरकार में गंभीर प्रतिक्रिया हुई है। सरकार ने इस संबंध में कुछ विधि विशेषज्ञों और आए दिन सरकार को सलाह देने वाले टीवी चैनल छाप विद्वानों की बैठक आयोजित कर इस समस्या पर गंभीरता से विचार किया कि देश में अदालतों में जो मुकदमे बढ़ रहे हैं उनका निपटारा कैसे हो।

काफी विचार-विमर्श के बाद ये सुझाव आया कि टीवी पर चलने वाली जनता की अदालतों की तर्ज पर सभी मुकदमें टीवी चैनलों पर चलाए जाने चाहिए, ताकि लोगों को त्वरित न्याय भी मिल सके और इसमें सरकार से लेकर मुकदमा चलाने वाले पर कोई खर्च भी नहीं आए।

इसके बाद सरकार ने एक नोट तैयार कर सभी विभागों को भेजा है। नोट में कहा गया है कि अभी प्रायोगिक तौर पर कुछ चैनलों पर ये मुकदमें शुरु किए जाएँगे और ये प्रयोग सफल होने के बाद देश भर की अदालतों में जितने भी मुकदमें चल रहे हैं उनको टीवी चैनलों पर ही चलाया जाएगा। जब अदालतों का कोई काम नहीं रहेगा तो जिन भवनो में अदालतें चल रही है वहाँ टीवी स्टुडिओ खोल दिए जाएंगे ताकि हर शहर, हर गाँव में टीवी स्टुडिओ भी हो जाए और अदालत का काम भी चलता रहे।

नोट में कहा गया है कि टीवी पर मुकदमा चलाने का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि किसी भी बड़े से बड़े मुकदमें का चाहे वो कितने ही साल से अदालतों में चल रहा हो उका निपटारा एक या आधे घंटे की अदालत में हो जाएगा और बीच में कॉमर्शियल ब्रेक से अदालती कार्रवाई का खर्चा भी निकल जाएगा। मुकदमें के लिए जज से लेकर वकील सब आसानी से मिल जाएँगे।

सरकार द्वारा टीवी पर मुकदमें चलाए जाने पर बनाई गई रिपोर्ट पर विधि विभाग ने सवाल उठाया कि इस तरह से मुकदमें चलने से देश के हजारों लाखों वकील बेरोज़गार हो जाएंगे तो वो काम धंधा क्या करेंगे। इस पर सरकार ने जवाब दिया है कि इनको टीवी चैनलों पर प्रवक्ताओं के रूप में बिठाकर मुकदमें के फैसले पर समीक्षा करवाई जाएगी ताकि लोगों का मनोरंजन भी होता रहे।

इस संबध में किए गए एक अध्यययन में ये बात सामने आई है कि जबसे यूपीए की सरकार गई है कई सरकारी पत्रकार, लेखक, बुध्दिजीवी, साहित्यकार और पुरस्कार वापसी में अपने पुरस्कार गँवा चुके लेखक आदि बेरोज़गार हो चुके हैं, उनको सरकारी दाना-पानी नहीं मिलने से वे हैरान-परेशान और बावले हो रहे हैं। आए दिन टीवी पर आकर सरकार के खिलाफ अनाप-शनाप बोलते हैं। इन लोगों को टीवी पर जनता की अदालत में जज बनाकर इनको रोज़गार भी दिया जा सकेगा और विरोधी पक्ष के नेता इनके फैसले के खिलाफ आवाज़ भी नहीं उठाएँगे।

देश के जाने माने पत्रकार और ऐसी अदालतों के मास्टर माईँड भगत बेशर्मा ने कहा कि इस तरह की अदालतों से चैनलों की टीआरपी भी बढ़ेगी और मुकदमों का निपटारा भी तत्काल हो जाएगा।

टीवी चैनलों पर बहसों में भाग लेने का रिकॉर्ड बना चुके एक विशेषज्ञ ने कहा कि बेशक टीवी चैनलों पर जनता की अदालत लगाकर मुकदमों की सुनवाई की जाए लेकिन बलात्कार, लूट, घोटाला, चोरी चकारी, अपहरण जैसे मुकदमों के लिए उनके विशेषज्ञों को ही जज बनाकर बिठाया जाना चाहिए ताकि वो सही फैसला दे सके। अगर बलात्कार के मुकदमें में अपहरण करने वाले को, और लूट के मुकदमें में घोटाला करने वाले को जज बना दिया तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा।

एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि टीवी पर जनता की अदालत में तो जो मुकदमा चलाया जाता है वो एकदम फर्जी होता है। एक ही आदमी अखबारों की कतरनों और टीवी की खबरों पर आरोपी से सवाल पूछता है और जज आखरी में इस आरोपी को बाइज्जत बरी कर देता है आज तक इस मुकदमें में किसी को सजा तो क्या दो रु. की पैनल्टी तक नहीं हुई। ऐसा इसलिए होता है कि जिसे जज बनाया जाता है उसे पता ही नहीं होता है कि जिस आदमी पर मुकदमा चल रहा है उसका कैरेक्टर क्या है। दूसरी ओर मुकदमें में जो जनता बैठी होती है वो भी अजीब होती है, वो आरोपी पर आरोप लगाने पर भी ताली बजाती है और उसे उसी आरोप में कोई सजा नहीं देने पर भी ताली बजाती है। इस विशेषज्ञ ने कहा कि मुकदमें की सुनवाई में जो जनता बैठी हो उसे भी सही प्रतिक्रिया देने का अधिकार मिलना चाहिए, इनके हाथ में आलू, टमाटर, अंडे और फूल दिए जाने चाहिए अगर कोई जज मुकदमें का गलत फैसला दे तो ये आलू टमाटर और अंडे फेंक कर अपना विरोध प्रदर्शन करे और सही फैसला दे तो फूल बरसाकर उसका स्वागत करे।

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