ओडिशा प्रदेश को संसार के स्वामी और जगत के नाथ श्री जगन्नाथ भगवान का देश कहा जाता है जहां के पुरी धाम के श्रीमंदिर में सतयुग से विराजमान हैं अपने चतुर्धा देवविग्रह रूप में भगवान जगन्नाथ जो अपने दर्शन मात्र से शांति, मैत्री और एकता का पावन संदेश देते हैं। प्रति वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को पुरी में अनुष्ठित होनेवाली उनकी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा एक तरफ जहां विश्व शांति, मैत्री और एकता की संदेशवाहिका है वहीं यह ओड़िया संस्कार और संस्कृति की वास्तविक पहचान भी है। शताब्दियों से ओडिशा के गांव गांव में बच्चों द्वारा हर्षोल्लास रथयात्रा आयोजित करने की परंपरा प्रत्यक्ष रूप में देखी जाती रही है और जिसे देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ओडिशा के घर घर और गांव गांव में जगन्नाथ संस्कृति सुरक्षित हैं।
ओडिशा की पाठ्य पुस्तकों में जगन्नाथ संस्कृति शामिल हैं।पुरी धाम के लगभग 173 मठों में भी बच्चों को जगन्नाथ संस्कृति की जानकारी दी जाती है। पुरी के गोवर्धन मठ से लेकर सभी वेद पाठशालाओं में तथा यहां के संस्कृत विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में जगन्नाथ संस्कृति पढ़ाया जाता है। गौरतलब है कि पिछले लगभग पांच दशकों से ओडिशा में संस्कृत भाषा के माध्यम से जगन्नाथ संस्कृति का पाठ पढ़ाया जाता है।स्वयं पुरी गोवर्धन पीठ के 145 वें पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग जगन्नाथ संस्कृति को बचाए रखने के लिए 1996 से कार्यरत हैं।
उनका यह मानना है कि जब तक ओडिशा की भावी पीढ़ी और श्रीमंदिर के समस्त सेवायतों के बच्चों को जगन्नाथ संस्कृति की सही और वास्तविक जानकारी नहीं दी जाएगी तबतक जगन्नाथ संस्कृति को भविष्य में बचाए रखना संभव नहीं है।सच कहा जाय तो जगन्नाथ भगवान की ओडिशा के गांव गांव में रथयात्रा बच्चों तथा युवाओं द्वारा प्रतिवर्ष अनुष्ठित करना और रथ खींचना जगन्नाथ संस्कृति को बचाए रखने की दिशा में एक सफल प्रयास है।अब तो ओडिशा के प्रत्येक स्कूल और कॉलेज में भी भगवान जगन्नाथ का चतुर्धा देवविग्रह देखने को मिल रहा है।अब तो नवरत्न नालको से लेकर जिंदल स्टील एंड माइंस आदि में रथयात्रा अनुष्ठित होने लगी है। अनुगुल में उद्योगपति तथा कुरुक्षेत्र, हरियाणा के बीजेपी सांसद श्री नवीन जिंदल पिछले तीन सालों से अपने देवभूमि जगन्नाथ मंदिर में पुरी धाम जगन्नाथ मंदिर के सभी रीति नीति का अक्षरशः अनुपालन करते हुए जगन्नाथ जी की रथयात्रा अनुष्ठित करते हैं जिसका यूट्यूब पर सीधा प्रसारण होता है।जगन्नाथ संस्कृति को बचाए रखने की दिशा में यह भी एक सफल प्रयास है।
(लेखक ओड़िशा की साहित्यिक सांस्कृतिक व धार्मिक गतिविधियों पर नियमित लेखन करते हैं और राष्ट्रपति से पुरस्कृत हो चुके हैं)