Sunday, November 24, 2024
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के. विश्‍वनाथः भारतीय सिनेमा को भारतीयता का गौरव दिया

जाने-माने तेलुगू निर्देशक कासीनाधुनी विश्‍वनाथ को भारतीय सिनेमा में उनके विशिष्‍ट योगदान के लिए वर्ष 2016 के लिए प्रतिष्ठित दादासाहेब फाल्‍के पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जायेगा। 48वें दादासाहेब फाल्‍के पुरस्‍कार से संबद्ध समिति ने इस पुरस्‍कार के लिए विश्‍वनाथ का चयन किया, जिसे सूचना और प्रसारण मंत्री श्री एम. वेंकैया नायडू ने अनुमोदित कर दिया, जो निश्चित रूप से एक बड़ा और सराहनीय निर्णय है।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक ब्‍यान में कहा है कि “शास्‍त्रीय और परम्‍परागत कला के प्रस्‍तुतकर्ता, श्री के. विश्‍वनाथ भारतीय फिल्‍म उद्योग में एक मार्गदर्शक शक्ति रहे हैं। एक निर्देशक के रूप में 1965 से अभी तक वे 50 फिल्‍मों का निर्देशन कर चुके हैं। उनकी फिल्‍में सुदृढ़ विषय वस्‍तु, दिलचस्‍प वर्णन, ईमानदारी निर्वाह और सांस्‍कृतिक प्रामाणिकता की दृष्टि से जानी जाती हैं।”

के. विश्‍वनाथ को दादासाहेब फाल्‍के पुरस्‍कार के रूप में एक स्‍वर्ण कमल, 10 लाख रुपये नक़द और एक शाल से सम्‍मानित किया जाएगा। यह पुरस्‍कार भारतीय सिनेमा में सर्वोच्‍च सम्‍मान समझा जाता है। राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी 3 मई को नई दिल्‍ली में विज्ञान भवन में, 64वें राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार समारोह के दौरान उन्‍हें यह पुरस्‍कार प्रदान करेंगे।

विश्‍वनाथ ने कला, संगीत और नृत्‍य के विभिन्‍न विषयों पर आधारित अनेक फिल्‍मों का निर्माण किया है। उनकी फिल्‍मों की कथा के विकास में संस्‍कृति के साथ संगीत और नृत्‍य हमेशा प्रमुख भूमिका अदा करते हैं। विश्‍वनाथ की फिल्‍में जाति प्रणाली, दहेज, अस्‍पृश्‍यता और हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने में योगदान के लिए जानी जाती हैं। सप्तपदी, स्‍वयं क्रुशी, शुभलेखा और सूत्रधारूलू जैसी उनकी फिल्‍में ऐसी बुराइयों पर गहरी चोट करती हैं। सारदा और श्रीवेनेला जैसी अपनी फिल्‍मों के माध्‍यम से उन्‍होंने शारीरिक और मानसिक अक्षमता के मानवीय मुद्दों को भी सफलतापूर्वक चित्रित किया है।

इन विषयों के प्रति संवेदनशील होने के वावजूद उन्‍होंने बड़ी रचनात्‍मकता के साथ मुद्दों को उठाया है ताकि वांछित संदेश पर सही मात्रा में बल दिया जा सके। फिर भी विश्‍वनाथ की फिल्‍मों को कभी थकाऊ सिनेमा नहीं समझा गया, बल्कि दर्शकों के लिए मनोरंजन के एक पूर्ण पैकेज के रूप में देखा गया। एक निर्देशक के नाते वे यह मानते हैं कि सिनेमा समाज में वांछित परिवर्तन ला सकता है, बशर्ते उसे सौंदर्यपरकता से प्रस्‍तुत किया जाये। वे बेहद खास और व्‍यापक रूप में स्‍वीकार्य तरीके से समानांतर सिनेमा को मुख्‍यधारा सिनेमा के साथ सम्मिश्रित करने के लिए विख्‍यात हैं।

19 फरवरी 1930 को आंध्रप्रदेश में जन्‍में विश्‍वनाथ ने अपने को एक साउंड डिजाइनर से निर्देशक और चरित्र अभिनेता के रूप में विकसित किया, जो तेलुगू, तमिल और हिन्‍दी सिनेमा में योगदान के लिए जाने जाते हैं। वे अपने 60 वर्षों के व्‍यावसायिक जीवन में साउंड रिकॉर्डर, स्‍क्रीन प्‍ले और पटकथा लेखन, अभिनेता, सहायक निर्देशक या निर्देशक के रूप में लगभग 60 फिल्‍मों के साथ जुड़े रहे हैं।

फिल्‍म निर्माण की उत्‍कृष्‍ट कला के लिए उन्‍हें अनेक पुरस्‍कारों से नवाजा गया, जो स्‍वयं उनकी सफलता की कहानी और उनके कार्यों की गुणवत्‍ता को प्रभावित करते हैं। उनके द्वारा निर्मित्‍त फिल्‍मों को न केवल भारतीय फिल्‍म उद्योग में सराहा गया बल्कि विश्‍व में उनका जबरदस्‍त प्रभाव देखा गया। इन वर्षों के दौरान उन्‍हें 5 राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों (संकरभारणम्, सप्‍तपदी, स्‍वाति मुत्‍यम, सूत्रधारूलू, और स्‍वराभिषेकम के लिए), 20 नंदी पुरस्‍कारों (श्रुति लायालू, शुभ संकल्‍पम् और कलीसुंदम् रा जैसी उनकी फिल्‍मों के लिए आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान किए गए), लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्‍कार सहित 10 फिल्‍मफेयर पुरस्‍कारों (जो उन्‍हें ओ सीता कथा, जीवन ज्‍योति, सागर संगमम, सुभलेखा और अन्‍य फिल्‍मों के लिए मिले) और प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया।

स्‍वयं क्रुसी, स्‍वाति किरणम् और स्‍वर्णकमलम् जैसी उनकी फिल्‍में भारतीय अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह, ताशकंद फिल्‍म समारोह, मास्‍को इंटरनेशनल फिल्‍म फेस्टिवल, बीसैन्कोन फिल्‍म फेस्टिवल ऑफ फ्रांस और एशिया पैसिफिक फिल्‍म फेस्टिवल जैसे अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोहों में प्रदर्शित हुईं और उन्‍हें सराहा गया। उनकी फिल्‍म स्‍वाति मुत्‍यम ने सर्वोत्‍कृष्‍ट विदेशी फिल्‍म वर्ग में 59वें अकेडमी अवार्ड्स में भारत का प्रतिनिधित्‍व किया।

1965 में विश्‍वनाथ ने तेलुगू फिल्‍म आत्‍मगोरवम् के साथ एक निर्देशक के रूप में अपने कॅरियर की शुरुआत की। इस फिल्‍म को वर्ष की सर्वश्रेष्‍ठ फिल्‍म का नंदी पुरस्‍कार प्राप्‍त हुआ। उसके बाद से उनकी अधिकतर फिल्‍मों ने समीक्षकों का ध्‍यान आकर्षित किया और वे बॉक्स ऑफिस पर भी सफल रहीं। उन्‍होंने जाने-माने फिल्‍म अभिनेताओं-अभिनेत्रियों के साथ काम किया, जिनमें कमल हासन, जयाप्रदा, ऋषि कपूर, अनिल कपूर, राकेश रोशन, माधुरी दीक्षित, श्रीदेवी, मिथुन चक्रवर्ती, वाणीश्री, एनटी रामाराव, शोभन बाबू और चिरंजीवी शामिल हैं और वे अनेक फिल्‍मकारों के लिए गुरु और संरक्षक बन गए।

1995 में विश्‍वनाथ ने तेलुगू फिल्‍म शुभ संकल्‍पम् में अभिनय के साथ एक अभिनेता के रूप में अपने कॅरियर की शुरुआत की। बाद में वे एक चरित्र अभिनेता के रूप में विख्‍यात हो गए और उन्‍होंने तेलुगू-तमिल फिल्‍मों जैसे काक्‍कई सिरागिनिलाए (2000), नरसिम्‍ह नाडू (2001), भगवती (2002), पुधिया गीताई (2003), टैगोर (2003), स्‍वराभिशेकम (2004), पंडुरंगाडू (2008) और ऐसी ही अन्‍य कई फिल्‍मों में भाग लिया। उन्‍होंने कुछ टीवी धारावाहिकों में भी हिस्‍सा लिया और कुछ कंपनियों के लिए भी काम किया।

हम यहां उनकी कुछ श्रेष्‍ठ फिल्‍मों का ब्‍यौरा दे रहे हैं, जो अलग-अलग कारणों से एक-दूसरी से श्रेष्‍ठ हैं।

संकराभारनम्- यह फिल्‍म शास्‍त्रीय और पश्चिमी संगीत के बीच अंतर को दशार्ती है, जो अलग-अलग पीढि़यों के दो व्‍यक्तियों पर आधारित है। फिल्‍म यह संदेश देती है कि कला जाति, वर्ग या धर्म का भेद नहीं करती है।

सप्‍तपदी- यह फिल्‍म रूढि़वादिता पर चोट करती है और एक ऐसे व्‍यक्ति की जीवन यात्रा को रेखांकित करती है, जो एक विवेकशील, समावेशी और आलोकित मार्ग की तलाश में सभी रूढि़यों को तोड़ता है। यह विवाह के रिवाज़ों और व्‍यक्ति के जीवन में उनकी उपयोगिता पर भी ध्‍यान केन्द्रित करती है। स्‍वाति मुत्‍यम : यह फिल्‍म एक स्‍वलीन (ऑटिस्टिक) (ऑटिस्टिक) व्‍यक्ति के बारे में है, जो एक विधवा के प्रेम में पड़ जाता है। यह फिल्‍म एक विधवा के पुनर्विवाह की आवश्‍यकता को रेखांकित करती है और ऑटिज्‍म तथा मानसिक रोग के बीच अंतर दर्शाती है।

स्‍वयंक्रुसी : इस फिल्‍म का संदेश यह है कि सफलता प्राप्‍त करने का कोई शॉर्ट कट रास्‍ता नहीं है। इसकी कथा एक ऐसे व्‍यक्ति पर आधारित है जो अपनी प्रतिबद्धता के साथ अमीर हो गया। फिल्‍म माता-पिता और बच्‍चों के बीच विशुद्ध संबंधों पर भी ध्‍यान केन्द्रित करती है।

के विश्‍वनाथ भारतीय फिल्‍म उद्योग के लिए एक सही लेजन्‍डरी आइकन हैं और उनका विशिष्‍ट और अनुकरणीय योगदान नि:संदेह अनेक लोगों को प्रभावित करता रहेगा। उन्‍होंने फिल्‍म निर्माण की कला के लिए खास मानक तय कर दिए हैं, जो अन्‍य लोगों के लिए प्राप्‍त करना अत्‍यन्‍त कठिन होंगे।

साभार- http://pib.nic.in से

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