Tuesday, November 26, 2024
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उस छठ को मुझसे महापाप हो गया…

आज से 25 बरस पहले एक दूरस्थ स्थान पर मैं स्कूलटीचर बनकर गया। नया नया स्कूल था। केवल हम दो टीचर और दो ही कक्षाएं थीं।
तब मैं 20-22 साल का बिल्कुल नौसिखिया और ज्ञान के दम्भ से भरा, गुस्सेल और अधीर सा शिक्षक था।
वहीं पड़ोस में किराए के मकान में एक फौजी परिवार रहता था उनके दो बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ते थे।
वे शायद बिहार के थे, दुबले पतले और रंग साँवला। बहिन बड़ी थी, 7वर्ष की और भैया 5वर्ष का।
दोनों भाई बहिन में बहुत स्नेह था।

स्थानीय माहौल के अनुसार वे बाहरी थे और भाषा की भी दिक्कत थी तो उस समय की स्थिति के अनुसार वे बच्चे कक्षा के सबसे कमजोर बच्चों की श्रेणी में आते थे।
एक तो वैसे भी अपना प्रदेश छोड़कर दूर देश में आ बसे, ऊपर से हरेक उन फौजी साहब को मिलता तो लालू यादव और बिहार के समाचार पूछता, फिर रंग के भी सांवले, बोली में भी भोजपुरिया अंदाज और हजारों किलोमीटर दूर यहाँ बॉर्डर पर कम साधनों के गांव में एक कमरे में रह रहे थे, तो स्वाभाविक है कि सबके चेहरों से एक दैन्यता सी प्रकट होती थी।
तिस पर, बच्चे पढ़ाई में कमजोर…. हम जैसे लोगों की नजर में वे बिल्कुल महत्वहीन जैसे थे, उन्हें देखकर दया आती थी।
लेकिन उस दम्पत्ति के हाव भाव और धीरज को जब आज याद करता हूँ, उनके सामने नतमस्तक हो जाता हूँ।
पति ड्यूटी से आते और कुछ निश्चित क्रियाकलापों में व्यस्त रहते या बच्चों के साथ खेलते।
उन्होंने बिहारी या दुमका सम्बोधन पर कभी बुरा नहीं माना।

और पत्नी, साक्षात सीता थी। एकदम भोली और अल्हड़ मुग्धा। अपनी रौ में मैथिली में गुनगुनाती रहती। जो भी पूछो, कहो श्रद्धा से जवाब देती या स्वीकार कर लेती।
फिर एक दिन उनके यहाँ कोई उत्सव आया। आज तो समझ गया कि वह छठ महापर्व था लेकिन उस समय वहाँ कोई इसका नाम भी नहीं जानता था।
उन बच्चों ने कहा कि आज आपका भोजन हमारे घर हैं।

सुबह से ही वे लोग काफी तैयारियां कर रहे थे और मुझ सहित अन्य लोग वैसे ही उनका मजाक उड़ा रहे थे। उनके वे लंबे तिलक, सिर पर टोकरी उठाना, खरना, खिचड़ी, फल, सजावट, पैरों में महावर रचाना, मुझे ठीक से याद नहीं क्या क्रम रहा होगा, लेकिन वह हरेक क्रियाकलाप हमारे लिए किसी फालतू चीज जैसा था जबकि वे बहुत श्रद्धाभाव से यह सब कर रहे थे।
फिर दोपहर को हमें भोजन के लिए बुलाया गया।

उस छोटे से कमरे में खाट, बिस्तर वगैरह व्यवस्थित कर हम दोनों के लिए बैठने की व्यवस्था की गई। भोजन आया, थाली में कुछ अलग प्रकार के व्यंजन और फल वगैरह बिल्कुल अनगढ़ तरीके से रखे गए और उन #पढ़ाई_में_कमजोर बच्चों की माँ की काली काली उंगलियों से हमें बार बार आग्रह करके एक एक चीज का वर्णन कर परोसना ….. और सही बताता हूँ, हमने उस दिन बहुत कम खाया। कुछ फल लिए थोड़ा बहुत खिचड़ी जैसा कोई पदार्थ, बाजार की मिठाई का एक पीस और बस….!

यह सब हमारे स्थानीय परिवेश और मनोविज्ञान के बिल्कुल भी अनुकूल नहीं था। वे लोग इसे ताड भी गये थे। बच्ची ने आग्रह करके कुछ परोसा हम वह भी नहीं खा सके, फिर जो 5 वर्ष का बच्चा था वह भी अपनी तरफ से हमें कुछ खिलाना चाहता था लेकिन हमने मना कर दिया और वह लगभग रुंआसा हो गया।
वे पति पत्नी, #चुपचाप_अपराध_भाव से “हमारी” सेवा कर रहे थे जबकि हम दोनों मन ही मन उनकी इस अनोखी परम्परा पर हँस रहे थे।

बहुत जल्दी उनका ट्रांसफर हो गया तो वे चले गए, हमने भी वह स्थान छोड़ दिया और उस घटना को कई वर्ष बीत गए। आज जब सोशल मीडिया पर छठ पर्व की सारी गहमा गहमी देखता सुनता हूँ तो उस घटना को याद कर उदास हो जाता हूँ।
बहुत पश्चाताप होता है। उन अबोध बच्चों को याद कर आंखें भर आती हैं।
बिहारियों के विस्थापन, पलायन, अपरिचित स्थानों पर अपनी संस्कृति को थामे रखना और वहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा व्यंग्य से लालू राबड़ी की पूछताछ से विचलित न होकर ठीक से स्थापित होने की सारी कहानी समझ लेता हूँ।

उन्होंने कितना सहा होगा? एक कमरे में जीवन बिता देना और फिर भी अपने पर्व पर वही उत्साह उमंग अर्जित करना, कोई दूसरा समाज होता तो कब का टूट जाता!! मैं जितना इस घटना को याद करता हूँ उतना ही रोता हूँ। संस्कृति के आदान प्रदान में मानव जीवन में हम सबसे ऐसी कई भूलें हुईं होंगी, पर मैं उस छोटे भाई के प्रसाद को ठुकरा कर कैसे सुखी रह सकता हूँ? मुझे आज भी वे काली दुर्बल उंगलियां याद हैं। हरवर्ष, छठ के अवसर पर वे मुझे अवसाद से भर देती हैं। जी करता है, यदि पुनः वे मेरे सामने आएं तो उन्हें आँखों से लगाकर चूम लूँ।

उन माई के वे मैथिली में गुनगुनाते पदों के लिए कान तरस जाते हैं। उस फौजी भाई की वह गम्भीर उदासी और धीरज को प्रणाम करने का मन करता है।
और वह बच्ची, जो उस दिन तितली जैसे कपड़े पहने, पैरों पर महावर रचाये हमें बुलाने आयी थी, उसके पदचिह्नों की छाप मिल जाये तो मैं उसे अपने पूजालय में रखकर उम्र भर आराधना करूँगा।
मुझसे महापाप हुआ है।
यह अंतर्मन का घाव मुझे कभी सोने नहीं देता!
आज 25 बरस बाद अब वे जवान होंगे, मैं उनमें से किसी का नाम नहीं जानता लेकिन वे इस पोस्ट को पढ़ रहे हों तो #कुमार_एस को क्षमा करें।

*कुमार एस जी की पोस्ट से साभार

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