मुंबई विश्व विद्यालय, श्री भागवत परिवार व गोरेगाँव स्पोर्ट्स क्लब द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का समापन गोरेगाँव स्पोर्ट्स क्लब के प्राँगण में हुआ। इस कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण था, श्री वीरेन्द्र याज्ञिक जी के जीवन के 70 वसंत पूर्ण होने पर उनके अभिनंदन का।
इस अवसर पर प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल श्री राम नाईक ने कहा कि राम उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र आने वाले पहले अतिथि थे। वे लंबे समय तक पंचवटी में ठहरे थे। यह सुखद संयोग है कि इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का उद्घाटन महाराष्ट्र के माननीय राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी ने किया और समापन उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल द्वारा सम्पन्न हो रहा है।
श्री राम नाईक ने कहा कि याज्ञिकजी जिस मंच पर होते हैं और बोल रहे होते हैं तो श्रोताओं में बैठे बच्चों से लेकर युवा, महिला और पुरूषों को सबको लगता है कि वे बोलते ही रहें। चाहे जैसा कार्यक्रम हो या चाहे जो प्रसंग हो, याज्ञिकजी जब मंच से बोलते हैं तो ऐसा लगता है मानों शब्दों की पवित्र गंगा बह रही है। गीता, वेद, पुराण और भागवत के कठिन से कठिन उध्दरणों को वो जिस सहज-सरल सैली में प्रस्तुत करते हैं उसे बार बार सुनने की इच्छा होती है। उनके श्रीमुख से संस्कृत श्लोंकों का रसमयी शुध्द उच्चारण सुनकर मन तरंगित हो जाता है।
श्री राम नाईक ने याज्ञिक जी की प्रज्ञा का उदाहरण देते हुए कहा कि एक कार्यक्रम में उन्होंने रामचरित मानस का ये दोहा सुनाया था जिसमें माँ कौशल्या सीता को आशीर्वाद देती है – उन्होंने इसे जिस तरह से सुनाया और जिस रोचकता व विद्वता से इसकी व्याख्या की, वो मुझे आज भी याद है।
ये दोहा था- अचल रहे अहिवात तुम्हारा, जब लगि रंग जमुन जल धारा
इसका भाव था सीताजी जब श्री राम के साथ वनवास जा रही होती है तो माँ कैकयी उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहती है जब तक गंगाजी और यमुनाजी में जल की धारा बहेगी, तब तक तुम्हारा सुहाग अचल रहेगा।
इस अवसर पर श्री भागवत परिवार के अध्यक्ष श्री एसपी गोयल ने कहा कि याज्ञिकजी का आभा मंडल ऐसा है कि हर कोई उनके व्यक्तित्व में खो जाता है। मेरा ये अनुभव है कि उनकी उपस्थिति मात्र से हमारे अंदर एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार हो जाता है। यही वजह है कि हम अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन जैसा आयोजन सफलता पूर्वक कर पाए।
इस अवसर पर गोरेगाँव स्पोर्ट्स क्लब के पदाधिकारियों ने श्रीयाज्ञिक जी, श्री राम नाईक व अन्य अतिथियों का स्वागत किया।
अपने अभिनंदन के प्रत्युत्तर में श्री वीरेन्द्र याज्ञिक ने कहा कि मेरा पूरा जीवन मेरे माता-पिता और मेरे दादाजी के संस्कारों की पूँजी है। मेरे अनुज अजय याज्ञिक भी आज उनके आशीर्वाद से ही पूरी दुनिया में सुंदर कांड का पाठ कर रहे हैं। मैं 1984 में मुंबई आया। आजमेरा जीवन रामायण के अनुसार कहा जाए तो उत्तर कांड में आ गया है। मुझे अपने परिवार से, समाज से, मित्रों से और मुंबई शहर के जाने अनजाने हजारों लोगों से वो सब-कुछ मिला जिसे पाने की मैने कल्पना भी नहीं की थी। आपने आज मेरे सत्तरवें जन्म दिन पर मेरा अभिनंदन कर मुझे स्मरण दिलाया है कि अपना बाकी जीवन राम को समर्पित कर दो।
उन्होंने कहा कि मैने जब यूपीएससी में नौकरी शुरु की थी तब जाने माने साहित्यकार और बहुभाषाविद प्रभाकर माचवे मेरे अधिकारी थे। वे जब सत्तर साल के हुए तो उन्होंने एक लाईऩ मुझे सुनाई थी- माचवे तुम हो गए सत्तरमियाँ दुकान उठालो अपनी, उठा लो काग़ज़ पत्तर।
मैं भी बस इसी भाव से जीना चाहता हूँ कि अब दुकान उठाने का समय आ गया है। याज्ञिक जी ने भी सुंदर कविता ‘जीवन के सप्त स्वर’ के माध्यम से अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा-
इस पर याज्ञिक जी ने इऩ शब्दों में अपने अभिनंदन और इस प्रश्न का उत्तर दिया
याज्ञिकजी तुम हो गए सत्तर
मिया दुकान उठाओ अपनी
और समेटो कागज पत्तर
कैसे जिया है जीवन तुमने
देते जाओ इसका उत्तर
दादाजी की पावन छाया,
मात-पिता की निर्मल काया
ये शरीर था उनसे पाया,
उनके पुण्य प्रताप का प्रतिफल
बीता जीवन निष्कंटक निर्झर
श्री हनुमंत कृपा से अब तक,
जो भी चाहा वो ही पाया
जिसकी नहीं थी पात्रता मेरी,
भगवत कृपा से वह भी पाया
जितना शेष है जीवन मेरा,
राम कार्य में लगे निरंतर
परिवार जनों पर सदा था निर्भर
मित्रों के कंधों पर चढ़कर
संत चरण की शुभ निश्रा में,
विद्वतजनों की सतसंगति से
चलता रहा ये जीवन का सफर
याज्ञिक जी तुम हो गए सत्तर
गुण अपने में कोई नहीं थे,
अवगुण भी कोई कम नहीं थे
सब कमियों के बावजूद भी
मिली प्रशंसा झोली भर भरकर।
याज्ञिकजी तुम हो गए सत्तर
कैसे चुके ये ऋण समाज का
तात-मात और बंधु भ्रात का
गुरूजनों का देश काल का
समय उम्र का बीत रहा है
और ये शरीर मेरा है नश्वर
याज्ञिकजी तुम हो गए सत्तर
जितना भी जीवन ये शेष है
अपनी ये कामना विशेष है
पूर्ण समर्पित तन मन से
अब सेवा धर्म का पालन हो निरंतर
याज्ञिकजी तुम हो गए सत्तर
मियाँ दुकान उठा लो अपनी,
और समेटो कागज पत्तर
अवसर पर याज्ञिक जी के चित्रों की गैलरी का भी उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम का संचालन सुरेन्द्र विकल ने किया और मुकुल अग्रवाल ने आभार ज्ञापित किया।
इस अवसर पर गोरेगांव स्पोर्ट्स क्लब के सदस्यों द्वारा रामलीला प्रस्तुत की गयी जिसमें तकनीक का अद्भुत प्रयोग दिखाई पड़ा। इस मौके पर देश-विदेश से आए हुए विद्वान, श्री भागवत परिवार के पदाधिकारी और गोरेगांव स्पोर्ट्स क्लब के सदस्यों के अलावा हजारों की संख्या में दर्शक उपस्थित थे।
रामलीला में तकनीक, ध्वनि और प्रकाश के साथ ही गोरेगाँव स्पोर्ट्स क्लब के सदस्यों ने नयनाभिराम और भावुक कर देने वाले अभिनय से उपस्थित दर्शकों को अंतर्मन से भिगो दिया। रामलीला में लव-कुश द्वारा श्री राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को रोकने, राम विवाह, राम द्वारा राक्षसों का वध, सीता हरण, हनुमान द्वारा लंका दहन, लंका विजय और राम के अयोध्या लौटने के दृश्यों ने रामकथा का पूरा मर्म समझा दिया। मंच सज्जा आकर्षक थी और कहीं से भी उसमें अतिरेक नहीं था।
लव-कुश की भूमिका में किशोर कलाकारों का आत्मविश्वास और संवाद की शुध्दता ने रामलीला के प्रारंभ में ही दर्शकों पर अपना जादू चला दिया। इसके बाद के हर प्रसंग में राम-सीता और लक्ष्मण से लेकर रावण और हनुमान की भूमिका कर रहे पात्रों ने पूरी दक्षता से अपनी भूमिका के साथ न्याय किया। संगीत और पार्श्व ध्वनि का सामंजस्य भी पात्रों के भावभंगिमा और संवादों की प्रस्तुति को रंजक बना रहा था। गैरपेशेवर कलाकारों द्वारा कुछ ही दिनों की तैयारी में रामचरित मानस के जटिल प्रसंगो को इतनी कुशलता से प्रस्तुत करना उपस्थित श्रोताओं के लिए भी आल्हादकारी अनुभव था। इस मंचन की सबसे बड़ी विशेषता और सफलता ये थी कि मंच और प्रेक्षकों के बीच पूरे ढाई घंटे तक सीधा संप्रेषण बना रहा। दर्शकों में शामिल युवाओं, बच्चों, महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों ने रामलीला के इन प्रसंगों का पूरे मन से आनंद लिया।