आम व्यक्ति के विश्वास से परे है, उसकी कल्पना से भी परे। आम आदमी विश्वास ही नहीं कर सकता है कि एक साधारण आर्टिकल लिखने में एक लेखक को दस घंटे लग सकते हैं। पर मुझे एक आर्टिकल लिखने मे दस घंटे लग गये। विषय था ‘‘ दीनदयाल उपाध्याय के सपनों का भारत ‘‘। दो हजार शब्दों का यह आर्टिकल तैयार करने में मुझे बड़ी परेशानी हुई, कई बार मुझे फिर से लिखना पड़ा, मैं जो लिख रहा था उस पर मुझे विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि यह आर्टिकल मेरा चाकचौबंद है और पाठकों का आकर्षित और चमत्कृत करने वाला है। अंत मे मैं इस आर्टिकल को पूरा करने में सफल हुआ। मन की संतुष्टि हुई। दस घंटे की मेहनत का सुखद और बेजाड़ प्रतिफल निकला। मैं बिना रूके दस घंटो तक लैपटॉप पर बैठा रहा। यह मेरा एक रिकार्ड है। सामान्य आर्टिकल लिखने में मुझे दो घंटे से अधिक समय नहीं लगते हैं।
वास्तविक लेखन करना आसान नहीं होता है। लेखन का कार्य एक कठिन और वर्षो-वर्षो के अनुभव का प्रतिफल होता है। बिना अनुभव का आप बेजोड़ कल्पना नही कर सकते हैं, विषय को पकड़ नहीं सकते हैं, विषय के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं। आपको भारत की पुरातन संस्कृति का इतिहास का ज्ञान होना ही चाहिए,स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास की जानकारी होनी चाहिए, आपको बाल गंगा धर तिलक और महात्मा गांधी के विचारों की जानकारी होनी चाहिए, आपको सरदार भगत सिह और नेताजी सुभाषचन्द बोस, के साथ ही साथ देश की गरीबी, भूखमरी और आयातित संस्कृति के खतरे और उनकी खूंखार मानसिकता की जानकारी होनी ही चाहिए।
कॉपी अधिकार हनन करने वाले लेखन की बात मैं नहीं कर रहा हूं। मैं वास्तविक लेखन की बात कर रहा हूं। कॉपी अधिकार हनन करने वाले लेखक बहुत मिल जायेंग,ेजिन्हें आप सामने बैठा दीजिये तो अपने लेखन को ही दोबारा नहीं लिख पायेंगे और न ही उस विषय पर दस-पन्द्रह मिनट का विचार व्यक्त कर सकते हैं। देश में ऐसे कॉपी अधिकार हनन करने वाले लेखकों की भरमार और उनका लेखन राजनीति को भी प्रभावित करता है। पर आम आदमी लेखक की मेहनत की कल्पना भी नहीं कर सकता है। लेखक की मेहनत और त्याग का आम आदमी, सरकार और समाज सम्मान भी करना नहीं जानता। अगर लेखन करना इतना आसान होता तो फिर सभी लेखक बन जाते।
लेखन का सम्मान जरूरी है, लेखन का सम्मान मूल्य भी जरूरी है।
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