असम की बीरुवाला राभा को मिला वन इंडिया अवार्ड
मुम्बई में हुआ सिंधु और ब्रह्मपुत्र का अनोखा मिलन
मुंबई आयोजनों और समारोहों का शहर है, यहाँ हर रोज कॉर्पोरेट से लेकर ग्लैमर और मनोरंजन के कार्यक्रमों का आयोजन होतारहता है, लेकिन कुछ आयोजन ऐसे होते हैं जो यादगार और प्रेरणादायक कार्यक्रम के रुप में श्रोताओं के दिलो दिमाग में पैठ बना लेते हैं। वन इंडिया द्वारा आयोजित कार्यक्रम भी कुछ ऐसा ही आयोजन था, जिसमें असम की बीरुवाला राभा को पुरस्कृत व सम्मानित किया गया था जिन्होंने अपने दम पर समाज में एक ऐसा काम कर दिखाया जो बड़े बड़े एनजीओ और सरकारी विभाग लाखों करोडों रुपये खर्च करने और काम करने वालों की फौज होने के बावजूद नहीं कर पाते हैं।
माय होम इंडिया का सातवां वन इंडिया अवार्ड 2016 असम में डायन प्रथा के खिलाफ लड़ने वाली डॉक्टर बीरुवाला राभा को दिया गया है। मुंबई में सैंकड़ों लोगों की उपस्थिति में यह सम्मान हजारों अनाथ बच्चों को अपनाने वाली प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता माँ सिंधु ताई के हाथों दिया गया। इस सम्मान के तहत बीरुवाला को एक लाख रुपये का चेक और प्रशस्ति पत्र सौंपा गया।
ऐसे समय में जब भारतीय महिलाएं अंतरिक्ष तक जा पहुंची हैं। आज भी देश के कई राज्यों में डायन प्रथा जड़ फैलाये बैठी है। असम के ग्वालपाड़ा से आने वाली अड़सठ साल की डॉ. बिरुबाला राभा इसके खिलाफ अलख जगा रही हैं। असम में डायन प्रथा के खिलाफ लड़ते हुए अब तक वे साठ से ज्यादा औरतों की जान बचा चुकी हैं। उनकी इसी अदम्य साहस को सलाम करते हुए सिंधु ताई ने उनके काम की सराहना की और कहा स्वयं सेवी संस्था “माय होम इंडिया” के ज़रिये इसके संस्थापक सुनील देवधर बहुत अनोखा काम कर रहे हैं। डॉ. बाला ने डायन कुप्रथा के पीछे तीन प्रमुख वजह गिनायीं: शिक्षा की कमी, गरीबी और जर्जर कानून व्यवस्था।
बीरुबाला ने लोगों को संबोधित करते हुए डायन प्रथा को जड़ से मिटाने की अपील की। इसके लिए उन्होंने देशभर में शिक्षा को लेकर जागरुकता फैलाना तथा नया कानून लाकर ऐसी कूप्रथाओं को खत्म करने की बात कही। उन्होंने अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि असम में लोग गरीब परिवारों की जमीन-जायदाद, जाति-दुश्मनी और संपत्तियों को हड़पने के लिए औरतों को डायन बताकर उन्हें समाज निकाला दे देते हैं। और फिर उनकी संपत्तियों पर कब्जा कर लेते हैं। गौरतलब है कि डायन प्रथा के तहत अब तक 1700 औरतों को डायन बता कर मौत के घाट उतारा जा चुका है।
इस कार्यक्रम में डॉ. बाला को असम के नव निर्वाचित मुख्यमंत्री श्री सर्वानंद सोनोवाल के कर कमलों द्वारा सम्मानित किया जाना था। लेकिन दिल्ली में विशेष बैठक में व्यस्त होने की वजह से व्यक्तिगत तौर पर वे नहीं आ सके। हालांकि उन्होंने वीडियो सन्देश के ज़रिये डॉ. बाला को देश की बेटी बताते हुए उनके कार्यों की सराहना की और माय होम इंडिया स्वयं सेवी संस्था के जरिए देश के सभी हिस्सों से कूप्रथा को मिटाने की अपील की।
सिंधु ताई ने जब अपनी दुःख भरी दास्तान शेरो शायरी और ठहाकों के साथ सुनाई तो श्रोताओँ ने तालियों की गड़गड़ाहट ने पूरे माहौल को भावुकता व रोमाँच से सराबोर कर दिया।
दूध में पके जो चावल तो उसे खीर कहते हैं
इश्क़ में जो खाए ठोकर तो उसे तकदीर कहते हैं।
मेरे जनाजे को देखने सारा जहाँ निकला
मगर वो नहीं निकला जिसके लिए जनाजा निकला
जब उसीने आकर मेरी कब्र पर मुस्करा दिया
बिज़ली कड़क कर गिरी और कफ़न जला दिया
इन शेरो शायरी के साथ सिंधु ताई ने बताया कि उनके पति ने गर्भावस्था में उनको आधी रात को घर से बाहर निकाल दिया था। मैने अपनी बेटी को बेहोशी में गौशाला में गायों के बीच जन्म दिया। मैने स्टेशनों पर भीख माँगकर और श्मशान में रात गुज़ारकर अपना कठिन समय बिताया। उन्होंने कहा कि आज मेरा वही पति मेरे उन बच्चों के साथ रहता है जिनको मैं पाल रही हूँ। जब उसने मुझे घर से निकाला तो मैने फटी साड़ी पहन रखी थी। और किस्मत का खेल देखिये उन्हीं ससुराल वालों और पति ने एक दिन मेरा सम्मान किया तो मेरे पति ने फटी धोती पहन रखी थी। सिंधु ताई ने कहा कि अगर मेरा पति और मेरे ससुराल वाले मुझसे घर से नहीं निकालते तो मैं उस मुकाम पर नहीं पहुँचती जहाँ आज पहुँची हूँ। आज मेरे सैकड़ों बच्चे हैं कोई पीएचडी कर रहा है, कोई डॉक्टर है कोई वकील है तो कोई विश्वविद्यालय में पढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि मैने अपने पति को सम्मान के साथ अपने उन बच्चों के साथ रखा है जिन्हें मैं पाल रही हूँ। मैने उन बच्चों को बताया है कि अगर मेरा पति मुझे घर से नहीं निकालता तो मैं तुमक माँ के रूप में कभी नहीं मिल पाती, इसलिए इनको सम्मान दो और प्यार से अपनाओ।उन्होंने कहा कि मेरा नाम चिंदी था लेकिन वीर सावरकर से प्रेरित होकर मैने अपना नाम सिंधु रख लिया क्योंकि उनको सिंधु शब्द बहुत प्रिय था। इस अवसर पर सिंधु ताई ने अपने उस बेटे से भी परिचय करवाया जो उनको श्मशान में लावारिस हालत में मिला था और जल्दी ही उसकी शादी भी होने वाली है।
इस अवसर पर “माय होम इंडिया” के संस्थापक सुनील देवधर ने कहा “आज सिंधु (सिंधु ताई सकपाल) और ब्रम्हपुत्र (डॉ. बाला) का अनोखा मिलन हुआ है। पूर्वोत्तर के बिना भारत अधूरा है। वन इंडिया अवार्ड के माध्यम से हमारी कोशिश है कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों में सेवा कार्य कर रहे गुमनाम हस्तियों का परिचय देश के सामने लाया जाए।” उन्होंने देश विदेश में सम्मानित हो चुकीं बीरुबाला राभा और सिंधु ताई के महान कार्यों के लिए सरकार से उन्हें पद्म श्री अवार्ड देने की अपील की।
“माय होम इंडिया” के इस समारोह में बीरुबाला मिशन के संयोजक डॉक्टर नाट्यबीर दास, माय होम इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हरिश शेट्टी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पूणम मेहता, मोहित कंबोज, डॉक्टर सुब्मन्यम भारती कुनाले की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। कार्यक्रम में उत्तर पूर्व राज्यों समेत देश के कई हिस्सों से अन्य गणमान्य अतिथि शामिल भी हुए।
माय होम इंडिया सामाजिक कूप्रथा के खिलाफ लड़ने वाली ऐसी अदम्य साहसी डॉक्टर बीरुवाला राभा को यह सम्मान देते हुए गौरवांवित महसूस कर रहा है।