विशाखापत्तनम। विशाखापटनम में लंबे समय से सक्रिय सृजन की विविध विधाओं की ई साहित्य चर्चा का आयोजन आज किया गया। आरंभ में कार्यक्रम के संयोजक निशिकांत अग्रवाल ने उपस्थित सभी का स्वागत किया और कहा पिछले अठारह वर्षों से अधिक समय से कार्यरत सृजन की यह 132 वीं बैठक है। संस्था के सक्रिय साहित्यकार पदाधिकारियों के रूप में अपनी सेवायें दे रहे हैं। ई साहित्य चर्चा का संचालन सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने किया ।
सबसे पहले श्रीमती मधुबाला कुशवाहा ने “नई पीढ़ी और समाज के निर्माण में महिलाओं का योगदान” विषय पर लेख प्रस्तुत किया। पुराणों की नारियों से लेकर आज की महिलाओं के मार्गदर्शन और अपने बाद नई पीढ़ी को लक्ष्यों तक पहुँचने में दी जाने वाली प्रेरणा पर अपनी बात सशक्त रूप से रखी। बी एस मूर्ति ने एक परित्यक्त वृद्ध की कथा से सराबोर कविता सुनाई “अंतिम निर्णय”, जिसमें आज के संतान द्वारा माता-पिता के प्रति की जा रही दुर्व्यवहार की बात थी। “चुनाव और तनाव” कविता में वर्तमान परिवेश में मानव की दुस्थिति का बखान किया। जय प्रकाश झा ने “निराला की साहित्य साधना” को देखने एक एक अलग नजरिया प्रस्तुत किया, जिसमें वाद से परे निराला की कविता में निहित सुंदर भावों का विश्लेषण दो कविताओं के उदाहरण के साथ सुंदर ढंग से किया। यू ट्यूब किस्सागोई स्तम्भ के लिए प्रधानमंत्री से प्रशंसा पाने वाले निशिकांत अग्रवाल ने पाठशाला में प्रार्थना के बाद और पाठ्य पुस्तकों में दी जाती प्रतिज्ञा के रचयिता, अज्ञात व्यक्ति “श्री पी वेंकट सुब्बाराव” के बारे में नई और रोचक जानकारी दी।
श्रीमती सीमा वर्मा ने एक रूमानी कविता “प्यार” सुनाई जिसमें प्रिय के साथ मधुर पालों को प्रकृति में गुजारने के चाह रखती नारी की संवेदानाओं की कुशल प्रस्तुति थी।
श्रीमती के लता तेजेश्वर रेणुका ने अपने बालुका, पृथ्वी, समुद्र होने की स्थिति और उससे जुड़ी प्रकृति के साथ अन्याय करते मानवों के विषय में प्रभावपूर्ण “संस्मरण” सुनाया। सृजन के वरिष्ठ सदस्य रामप्रसाद यादव ने प्रेममयी कविता सुनाई – “है नहीं मंजूर अब” – प्रेम के सुंदर बिंबों और सार्थक प्रतीकों की कविता ने मन मोह लिया।
डॉ टी महादेवराव ने अपनी व्यंग्य रचना “प्रेतात्मा की कथा” में कांक्रीट जंगल बनने की धुन में पुराने खंडहर और पेड़ों की कमी को भूतों को बिम्ब बनाकर प्रस्तुत किया, जिसे श्रोताओं ने सराहा।
एस वी आर नायडू ने हास्य कविता प्रस्तुत की “ऐसी अपनी वाइफ हो”, जिसमें आधुनिक समय में एक कुंवारा क्या चाहेगा, इसे अपने ढंग से हास्यपूर्ण शैली में सुनाया गया। अपने व्यंग्य “सर्दियां हाय ये सर्दियाँ” में नीरव कुमार वर्मा ने ठण्ड के मौसम में शादियों से बुजुर्गों पर पड़ने वाले प्रभाव को अपनी प्रभावी हास्य शैली में पढ़ा।
अंत में सीमा वर्मा ने उपस्थित सभी का आभार माना और सभी को रचना सृजन के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कहा इस तरह मिलजुल कर भले ही आभासी मंच हो हम साहित्य सृजन की ओर अग्रसर हो सभी हमारी प्रतिभा का और सर्जना का सही अर्थ सामने आएगा। इस कार्यक्रम का संयोजन निशिकांत अग्रवाल का था।
संस्था के सदस्य लिंगम चिरंजीव राव ने इस आयोजन के लिए सृजन संस्था व हार्दिक बधाई देते हुए सफल आयोजन के सिए सबको धन्यवाद दिया।
(लेखक साहित्य सृजन के सचिव हैं)