सन् 2014 में नई सरकार के चुनाव के साथ ही, भारत के विकास पर विश्व की पैनी नज़र है। इस सरकार से बहुत अधिक अपेक्षाएँ हैं। देखा जा रहा है की अब भारत की तुलना विश्व के अन्य बड़े देशों जैसे; अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ, कनाडा आदि से की जा रही है। ये भी देखा जा रहा है की लोगों ने बेहतर रणनीति बनाने के लिए विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना भारत की अर्थव्यवस्था से करना प्रारंभ कर दिया है। यहाँ कुछ ऐसे मुख्य बिंदु प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिनका ध्यान आप इस तरह की तुलना करने के दौरान रख सकते हैं।
- कर-निर्धारण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के अनुसार कर द्वारा भारत का राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का 19.8%4 है। यह चीन जैसे अन्य विकासशील बाज़ारों से सकल घरेलू उत्पाद के औसत 27%4 से काफी कम है। विशेष रूप से कहा जाए तो, जब देश अधिक धनवान होते हैं तब कर से प्राप्त राजस्व में अत्यधिक वृद्धि होती है। अमेरिका के लिए यह 31.5%4 और ब्रिटेन में 37.6%4 है। रूस सकल घरेलू उत्पाद का 34%4 राजस्व कर से प्राप्त करता है जबकि ब्राज़ील लगभग 38%4 प्राप्त करता है। भारत अपना ध्यान अधिक से अधिक लोगों को कर के दायरे में लाने में केंद्रित कर रहा है। भारत का ध्यान वस्तु एवं सेवा कर (वसेक) या जीएसटी जैसे प्रभावी प्रक्रिया के कार्यान्वयन पर भी केंद्रित है।
- रक्षा व्यय: रक्षा व्यय धन की वह राशि होती है जिसे सरकार एक वर्ष में अपनी सेना पर खर्च करती है। विश्व बैंक सांख्यिकी यह बताती है कि भारत ने सन् 2012-13 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.4%1 रक्षा खर्चों के लिए आवंटित किया था। इसमें रक्षा मंत्रालय, अन्य सरकारी एजेंसियों, सभी रक्षा परियोजनाओं, और सैन्य तथा अंतरिक्ष गतिविधियों पर किए गए खर्च शामिल हैं। अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि भारतीय प्रतिरक्षा व्यय विश्व में 9वें स्थान पर आता है। देश की रक्षा तैयारियों को बढ़ावा देने की बात ध्यान में रखते हुए, भारत ने मुख्य रक्षा परियोजनाओं पर महँगे खर्च किए हैं। अपने उन संघर्षों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका सकल घरेलू उत्पाद का 3.8%1 प्रतिरक्षा पर खर्च करता, जिनमें वह शामिल है। चीन ने 2.1%1आवंटित किया जबकि रूस ने सैन्य खर्च के रूप में सकल घरेलू उत्पाद का 4.2%1 अलग रखा।
- आधारभूत ढांचागत व्यय: आर्थिक विकास के लिए आधारभूत ढांचागत विकास एक मुख्य सहायक होता है। सड़क, जल और वायु मार्ग को समाविष्ट करने वाला लॉजिस्टिक आधारभूत ढाँचा रीढ़ की एक ऐसी हड्डी होता है जिसके सहारे देश आगे बढ़ता है। विश्व बैंक का एक तुलनात्मक डेटा यह बताता है कि भारत में कुल 40 लाख 60 हज़ार किलोमीटर लम्बी सड़कों का 53.8%1भाग की पक्का है। अमेरिका और चीन में यह आँकड़ा 60%1 से भी ऊपर है। यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी 72.6%1 सड़कें पक्की हैं। 1हालाँकि, इस संख्या को बढ़ाने के लिए सरकार नीतियाँ बना रही है। इससे युवाओं में रोज़गार को भी बढ़ावा मिलेगा।
- समाज कल्याण व्यय: भारत अधिकतर उद्योग और व्यापारों के लिए आर्थिक सहायता देने में सहज होता है। लेकिन विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के साथ तुलना किए जाने पर यह पता चलता है कि समाज कल्याण व्यय में भारत बुरी तरह से पिछड़ा हुआ है। महा भुखमरी, बाल श्रम, अगम्य स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय आदि कुछ ऐसे कारक हैं जिनकी तुलना विश्व के शीर्ष देशों से किया जाना भारत नज़रअंदाज करता है। भारत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8%1 समाज कल्याण पर खर्च करता है। यह औद्योगीकृत देशों के औसत खर्च 14%1 की तुलना में बहुत कम है, जबकि दक्षिण आफ्रीका और ब्राज़ील दोनों भारत के खर्च का लगभग दुगुना खर्च करते हैं। विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रति व्यक्ति किया जाने वाला खर्च भारत के लिए केवल 61 डॉलर रहा। चीन में यह 335 डॉलर और अमेरिका तथा अन्य धनी देशों में यह 8,9001 डॉलर है।
- वित्तीय घाटा: वित्तीय घाटा पैसे की उस कमी को कहते हैं जिसका सामना सरकार को आय के सभी साधनों को ध्यान में रखते हुए अपने सभी खर्चों के लेखांकन के बाद करना होता है। रिपोर्ट यह बताती हैं कि भारत का वित्तीय घाटा पूरे साल के बजट अनुमान को पार कर चुका है। सन् 2013 के अंत में 95.2%2 की तुलना में 2014 के अंत में वित्तीय घाटा 2014-15 के अनुमान का 100.2%2 था। हालाँकि, वर्तमान सरकार वित्तीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.1%2 तक सीमित रखने का अपना प्रयास जारी रख रही है। यह पिछल 7 सालों में सबसे निचले स्तर पर होगा। इसकी सहायता के लिए भी सरकार बहुत से कदम उठा रही है।
- चालू खाते का घाटा : मूल रूप से समझें तो, जब किसी देश द्वारा आयात किए गए सामान और सेवाओं की मात्रा उसके द्वारा निर्यात किए गए सामान और सेवाओं से अधिक होती है तब, यह चालू खाते का घाटा कहलाता है। भारत में चालू खाते का घाटा अधिकाधिक रूप से कच्चे तेल की वैश्विक कीमत पर निर्भर होता है। मुख्य रूप से, अमेरिका द्वारा शेल गैस के भारी उत्पादन और इराक, इरान, सउदी अरब और रूस द्वारा आपूर्ति में की जाने वाली वृद्धि के कारण, विश्व में तेल की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। रिपोर्ट यह बताती हैं कि वित्तीय वर्ष 2015 में भारत के लिए चालू खाते का घाटा गिरकर 1.4%3 पर आ सकता है। यही रिपोर्ट यह भी बताती हैं कि आगामी तिमाही में, सात साल के बाद पहली बार भारत चालू खाते में अधिकता का स्वाद भी चख सकता है।
स्रोत — कोटक सिक्युरिटीज़
प्रेषक – प्रवीण कुमार Praveen <cs.praveenjain@gmail.com>