विश्व बिरादरी के बीच अलग-थलग पड़ चुका पाकिस्तान अब भी कश्मीर का राग अलापने से बाज नहीं आ रहा। ये हालत तब है, जब इस्लामी देशों के सम्मेलन आईओसी में पाकिस्तान को इस बार भी बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी। सऊदी अरब के मक्का में आईओसी का 14वां सम्मेलन था, जिसके दो सत्र थे। पहले सत्र में इस्लामी देशों के विदेश मंत्रियों ने आपसी संबंधों के बारे में अपना नज़रिया रखा, जिसमें पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कश्मीर के मुद्दे पर भी प्रमुखता से चर्चा की,मगर इसमें उन्के भाषण को खास तवज्जो नहीं दी गई।
अगले सत्र में सम्मेलन को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने संबोधित किया, जिसमें उन्होंने फिलिस्तीन में इज़रायली ज़्यादतियों के साथ-साथ कश्मीर का बेसुरा राग छेड़ दिया, मगर इसका नतीजा भी सिफर रहा। इमरान के भाषण को सुना तो गया, लेकिन इसके बाद जो प्रस्ताव पारित हुआ, उसमें कश्मीर का कोई ज़िक्र नहीं था। साफ है कि इस्लामी देशों ने कश्मीर पर इमरान की बात को कोई तवज्जो नहीं दी। इस सम्मेलन के बाद बार-बार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का राग अलापने वाले पाकिस्तान की घनघोर बेइज्जती हुई है।
अंतराष्ट्रीय मंच पर हुई इस बेइज्जती के चलते पाकिस्तान में इमरान की भारी आलोचना हो रही है मीडिया में इस बात की चर्चा गर्म है। पाकिस्तानी मीडिया गहरे सदमे में है कि इस्लामी सहयोग संगठन का हिस्सा होने के बावजूद पाकिस्तान की ऐसी भद्द क्यों पिट रही है। पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार और जियो टीवी के संपादक हामिद मीर ने तो ट्वीट किया, जिसका मज़मून था कि मक्का में पाकिस्तान की शिकस्त। उन्होंने तो यहां तक लिखा कि इतनी बेइज्जती को देखकर मैं चुपचाप सम्मेलन से निकल गया।
इस सम्मेलन में भारतीय पत्रकारों को भी कवरेज के लिए बुलाया गया, जिसके चलते भी पाकिस्तान काफी खफा है। लंदन में रह रहीं पाकिस्तान की महिला एक्टिविस्ट शमाँ जुनेजो ने तो इसे इमरान और पाकिस्तान की विदेश नीति की विफलता करार दिया है। असल में इस्लामी देशों के सहयोग संगठन की स्थापना 25 सितंबर 1969 में मोरक्कों में हुई थी। आपको बता दें कि इस्लामिक सहयोग संगठन का मूल मुद्देश्य फिलिस्तीन की आज़ादी और इस्लामी देशों के बीच परस्पर सहयोग करना था, लेकिन दुनिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव और अपने नफे-नुकसान को साधने के चक्कर में ये संगठन अपने मूल उद्देश्य से भटक गया।
आज हालत ये है कि अगर टर्की और ईरान को छोड़ दें तो बाकी इस्लामी देश अमेरिका के पिठ्ठू बने हुए हैं और सऊदी अरब इन पिट्ठुओं में सबसे ऊपर है, मगर पाकिस्तान को असली दिक्कत भारत से इसलिए है कि पिछले 1 और 2 मार्च को जेद्दा में हुए इस्लामी सहयोग संगठन की बैठक में अरब देशों की ओर से भारत को भी शामिल होने का निमंत्रण मिला था। इस सम्मेलन की टाइमिंग ऐसी थी कि पाकिस्तान इससे बौखला गया। क्योंकि 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में पाकिस्तानपरस्त आतंकी तंजीम जैश-ए-मोहम्मद ने आत्मघाती हमले को अंजाम दिया था। इसलिए पाकिस्तान नहीं चाहता था कि भारत को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया जाए मगर हुआ एकदम उल्टा।
इस सम्मेलन में भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बहुत ही सारगर्भित भाषण दिया और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की कड़ी निंदा की, जिससे पाकिस्तान बुरी तरह चिढ़ गया। हालत यहां तक पहुंच गई थी कि पाकिस्तान ने सुषमा जी को आमंत्रित करने का सख्त विरोध किया और यहां तक कह दिया कि वे सम्मेलन में शामिल नहीं होगा। हालांकि, इसके बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इसमें शिरकत की, लेकिन उन्होंने सुषमा स्वराज के भाषण का बायकॉट किया। सम्मेलन में सुषमा जी की शिरकत को पाकिस्तान ने अपना अपमान माना।
इस्लामी देशों के सम्मेलन में भारत को निमंत्रण मिलना मोदी सरकार की सशक्त विदेश नीति की कामयाबी है। इसी का असर है कि खुद को इस्लामी बिरादरी का ठेकेदार मानने वाला पाकिस्तान भारत से चिढ़ा हुआ है। इस्लामी देशों के संगठन की इस बेरुखी को पाकिस्तान अभी भूल नहीं पाया था कि एक बार फिर उसे करारी शिकस्त मिली है। पाकिस्तान में इमरान की सख्त आलोचना हो रही है, इसके बावजूद इमरान सऊदी अरब को अपना दोस्त सिर्फ इसलिए मानते हैं क्योंकि ये देश पाकिस्तान की जब-तब थोड़ी बहुत मदद करता रहा है।
याद रहे कि पिछले दिनों सऊदी अरब पहुंचते ही इमरान जब वहां के किंग से मिले तो उन्होंने उनका अपमान भी किया। असल में मक्का में ओआईसी के सम्मेलन में सऊदी अरब के किंग से मुलाक़ात के दौरान इमरान ख़ान का एक विडियो सामने आया, जिसमें वो रेड कार्पेट पर चलते हुए सऊदी अरब के बादशाह सलमान तक पहुंचते हैं और उनसे हाथ मिलाने के बाद कुछ बात करते हैं। हालांकि, जो विडियो फुटेज सामने आया है, उसमें पाकिस्तानी पीएम किंग से सीधे बात न कर ट्रांसलेटर से बात कर रहे हैं। पता चला है कि इसके बाद सऊदी किंग काफी नाराज हैं। इमरान ख़ान हाथ तो किंग सलमान से मिला रहे हैं, लेकिन बात ट्रांसलेटर से कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर शेयर किए गए विडियो में इमरान ख़ान किंग सलमान की तरफ़ देख भी नहीं रहे हैं। यहां तक कि इमरान ख़ान ने किंग सलमान को प्रतिक्रिया में कुछ कहने का भी वक़्त नहीं दिया और वहां से अचानक निकल गए। सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि इमरान ख़ान ने किंग सलमान का सरासर अपमान किया है और उन्हें राजनयिक शिष्टाचार भी नहीं आता। कई लोग तो सलाह दे रहे हैं कि पाकिस्तान के नेताओं को राजनयिक व्यवहार सीखने की ज़रूरत है। इस घटना से ये माना जा रहा है कि अब सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच दूरियां बढ़ सकती हैं।
असल में सऊदी अरब एक कारोबारी देश है। उसने अगले डेढ़ साल तक पाकिस्तान को कच्चा तेल उधार देने का वादा किया है। पाकिस्तान को अपने मित्र देशों से मदद की जरूरत है, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था का पूरी तरह जनाजा निकल चुका है। पाकिस्तान को डर है कि इस्लामी देशों से रिश्ते अगर खराब हुए तो उसे भारी नुकसान भुगतना पड़ेगा। वर्तमान में ईरान से उसके रिश्ते बहुत नाज़ुक दौर में हैं और ईरान तो पाकिस्तान का बिरादर मुल्क है। पाकिस्तान से उसकी सीमा सटी हुई है। इमरान घरेलू मोर्चे पर भी बुरी तरह घिरे हुए हैं।
पाकिस्तान की सियासी जमात मुस्लिम लीग (नून) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी इमरान के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। कराची, बलूचिस्तान और उत्तरी वजीरिस्तान के कबाइली इलाकों में पाकिस्तान सरकार के खिलाफ आंदोलन हो रहे हैं। पश्तूनों पर पाकिस्तानी फौज जुल्म ढा रही है। पिछले दिनों पाकिस्तानी फौज की फायरिंग में 20 पश्तून आंदोलनकारियों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। भारत की सख्त कूटनीति के कारण कश्मीर पर भी पाकिस्तान को लगातार पटखनी मिल रही है। जल्द ही पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में सालाना बजट पास किया जाएगा, जिसके बाद उम्मीद है कि महंगाई और बढ़ेगी और फिर वहां की अवाम सड़कों पर उतरेगी। पाकिस्तान में सिविल वॉर के हालात बन रहे हैं। ऐसे में क्या इतिहास खुद को दोहराएगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई कोई भी सरकार 5 साल पूरे नहीं नहीं कर सकी है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
साभार- https://www.samachar4media.com/ से