Wednesday, December 25, 2024
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पाञ्चजन्य और ऑर्गेनाईज़र ने 70 साल पूरे किए

पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर, दोनों ने 70 साल पूरे कर लिए हैं। इस मौके पर देश की राजधानी दिल्ली में दोनों के विशेष संस्करण का लोकार्पण किया गया। इस मौके पर संघ परिवार के दिग्ग्जों के बीच सूचना-प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य के साथ इस विशेष संस्करण का लोकार्पण किया।

अंग्रेजी का ‘ऑर्गनाइजर’ 1947 में शुरू हुआ था और हिंदी का ‘पाञ्चजन्य’ 1948 में, लेकिन दोनों के ही 70 साल का उत्सव एक साथ मनाया गया और िसका आय़ोजन किया गया, नेहरू मेमोरियल सभागार, तीनमूर्ति भवन में।

ऑर्गनाइजर के अब तक कई बड़े चेहरे संपादक रह चुके हैं, जिनमें ए.आर. नायर, के.आर. मलकानी, एल.के. आडवानी, वी.पी. भाटिया, शेषाद्री चारी और आर. बालाशंकर जैसे दिग्गज शामिल हैं। अभी प्रफुल्ल केतकर इसके संपादक हैं। जबकि पांचजन्य को मकर संक्रांति के दिन दीन दयाल उपाध्याय ने शुरू किया था और उसका पहला संपादक अटल बिहारी वाजपेयी को बनाया था। तरुण विजय के बाद आजकल इसके संपादक हितेश शंकर हैं। हालांकि दोनों के समूह संपादक की जिम्मेदारी आजकल जगदीश उपासने संभाल रहे हैं, जो ‘इंडिया टुडे’ में सालों तक काम कर चुके हैं।

इस अवसर पर मनमोहन वैद्य ने कहा कि पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर दोनों ही पाटों में भारत की पहचान को स्वर देने का काम किया है, इनके प्रकाशन का नाम भी भारत प्रकाशन है। संघ की भारतीयता के प्रति आग्रह और राष्ट्रवादी सोच इन दोनों पत्रों से मिलती है, इसके चलते इनको संघ का मुख पत्र कहा जाने लगा। जिस तरह संघ आध्यात्मिकता के रास्ते देह में समृद्धि लाना चाहता है, ये दोनों पत्र भी हमेशा आध्यात्मिकता के विचारों को बढ़ाते चले आ रहे हैं।

इस मौके पर स्मृति ईरानी ने कहा कि किसी ने 70 साल में सोचा भी नहीं होगा की एक दिन नेहरू मेमोरियल में ‘पाञ्चजन्य’ और ‘ऑर्गनाइजर’ का 70 वां विशेषांको का विमोचन करने वाला कार्यक्रम आयोजित होगा। ये दोनों पत्र बधाई के पात्र हैं कि कितनी विपरीत परिस्थितियों में भी विज्ञापनों की लालसा छोड़कर राष्ट्रवाद के रास्ते इतने साल से चलते आ रहे हैं। ईरानी ने इन दोनों पत्रों के संपादकों को सुझाव भी दिया कि प्रांतीय भाषाओँ में भी पांचजन्य और ऑर्गनाइजर को निकाला जाना चाहिए। इस मौके पर दोनों पत्रों के कुछ पुराने कर्मचारियों को भी सम्मानित किया गया। संघ से जुड़े कई प्रकाशन समूहों के लोग यहां इस मौके पर मौजूद थे।

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