Friday, November 15, 2024
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पानीपत फिल्म का विरोध, कौन थे सूरजमल जाट और क्या थी उनकी रणनीति

पानीपत का नाम जब जेहन में आता है तो जंग की ऐसी तस्वीर उभर कर सामने आती है जिसने हिंदुस्तान की तारीख और तवारीख को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। आलमपनाहों और सुलतानों के जंग के जुनून और सरहदों के विस्तार की महत्वाकांक्षाओं ने हिंदुस्तान की सरजमी को खून से लाल किया है। एक बार फिर पानीपत को लेकर विवाद ने सर उठाया है, बात सदियों पुरानी है, लेकिन इस बार तलवारें रुपहले परदे से निकलकर बाहर आई है। फिल्म पानीपत में महाराज सूरजमल जाट पर फिल्माए गए दृश्यों को लेकर आपत्ति जताई जा रही है आखिर क्या हुआ था 1761 में मराठा सरदारों और अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली के बीच और सूरजमल जाट का क्या रोल था उस जंग में।

पानीपत की जंग से चार साल पीछे जाते हैं तो मराठा और सूरजमल जाट के बीच चौथ वसूली की जंग का मंजर सामने आता है। कुंभेरी के इस युद्ध में एक तरफ सूबेदार मल्हार राव होलकर अपने पुत्र खण्डेराव के साथ खड़े थे तो दूसरी ओर सूरजमल जाट थे। मराठा एक करोड़ रुपए की चौथ वसूली पर अड़े हुए थे तो सूरजमल जाट चालीख रुपए देना चाहते थे। इसको लेकर युद्ध हुआ और मल्हार राव का इकलौता पुत्र खण्डेराव इसमें वीरगति को प्राप्त हो गया। मल्हार राव शोक ओर क्रोध में सूरजमल जाट का वजूद मिटाने का संकल्प ले चुके थे तभी मराठा नाना साहेब पेशवा के भाई रघुनाथ राव ने सूरजमल जाट से समझौता कर लिया और मल्हार राव के दिल में प्रतिशोध की आग धधकती रह गई।

पानीपत के युद्ध के समय महाराजा सूरजमल जाट मराठा खेमे में आ गए थे, क्योंकि अब्दाली ने जाटों के इलाकों मथुरा, वृंदावन में अपने पिछले आक्रमण के समय भारी लूट मचाई थी। महाराजा सूरजमल जाट एक वीर योद्धा और रणनीति के माहिर खिलाड़ी थे। मराठा सेना के साथ चल रहे तीर्थयात्रियों के काफिले को लेकर भी उम्होंने मराठा सेनापति सदाशिव राव को आगाह किया था, कि जंग में ये लोग मुसीबत बन सकते हैं।

जंग के पहले जब एक जाजम पर बैठकर मोलभाव और वादे-इरादे पर मशविरा किया गया तो भाऊ सदाशिवराव ने सूरजमल जाट पर चौथ की बकाया आधी रकम माफ कर दी साथ ही आने वाले चार साल तक चौथ वसूली न करने का वादा भी किया। जाट राजा ने कहा कि आगरा का किला हमारे पास है उसको हमारे पास ही रहने दिया जाए। तब भाऊसाहब ने कहा कि अभी जरूरत हिंदुस्तान पर आए खतरे से निपटने की है आगरा का फैसला बाद मे भी किया जा सकता है। महाराजा सूरजमल जाट ने पानीपत के युद्ध से पहले मराठा सेना के साथ दिल्ली को फतह करने में अहम योगदान दिया था, इसलिए वह चाहते थे कि दिल्ली के अपदस्त वजीर इमाद उल मुल्क गाजीउद्दीन को दिल्ली का वजीर बना दिया जाए। भाऊसाहब ने कहा कि जब तक अब्दाली पर फतह हासिल नहीं की जाती तब तक दिल्ली का वजीर नियुक्त करने का क्या फायदा।

यहीं से जाट राजा नाराज नजर हो गए और इन मतभेदों के चलते आधी रात को मराठा खेमे से महाराज सूरजमल जाट रुखसत हो गए और उनके साथ में दिल्ली के तख्त का ख्वाब पाले गाजीउद्दीन भी मराठा खेमा छोड़कर चला गया। हकीकत में महाराज सूरजमल को मराठों के विरुद्ध भड़काने का काम गाजीउद्दीन ने ही किया था। गाजीउद्दीन गाजीउद्दीन बाद में अहमद शाह अब्दाली के खेमें में चला गया और जंग के बाद दिल्ली के वजीर का पद हासिल कर लिया।

पानीपत से अब्दाली के हाथों करारी शिकस्त खाकर जब मराठा क्षत्रप दर- दर की ठोकरे खा रहे थे। उस वकत एक बार फिर महाराज सूरजमल जाट मराठों के रहनुमा बनकर सामने आए और भरतपुर के आसपास मुनादी पिटा दी, ’ जो भी मराठा पानीपत से आए उनको कोई तकलीफ ना हो। भूखों के खाना दिया जाए, वस्त्रहीन को पहनने के कपड़े दिए जाएं, घायलों की सेवा की जाए, ऐसी महाराज की आज्ञा है।‘ महाराज की आज्ञा पाते ही भरतपुर के लोग मराठों की सेवा में जी जान से जुट गए।

तभी सोने-चांदी की जरी के पहनावे में एक युवक भरतपुर की सड़कों पर घोड़े पर सवार तकलीफों से भरा हुआ जा रहा था, उसी वक्त एक मराठा सैनिक ने उसको पहचान लिया। वह बाजीराव और मस्तानी का बेटा शमशेर था। महाराज सूरजमल को जैसे ही यह खबर मिली उन्होने तुरंत शमशेर को महल में बुलवा लिया और स्वयं द्वार पर उसकी अगवानी की। तुरंत शाही महल में शमशेर का ईलाज शुरू हुआ। महाराज ने कहा आपसी मतभेद की वजह से हम पानीपत की जंग में मराठों का साथ नहीं दे पाए अब इस मराठा योद्धा को बचाना ही होगी। शमशेर उस वक्त तेज बुखार से तप रहा था। राजवैध की तमाम कोशिशों के बावजूद यह घायल योद्धा इस दुनिया से रुखसत हो गया। शोकमग्न महाराज ने आदेश दिया की भरतपुर में शमशेर को सुपुर्दे खाक कर एक भव्य कब्र बनाई जाए।

इस तरह मराठाओं के अटूट जुनून और अफगान हमलावर अहमद शाह अब्दाली की महत्वाकांक्षाओं के अनन्त विस्तार नें हिंदुस्तान की तकदीर और तदबीर का फैसला कर दिया। इतिहास के इस अंधेरे-उजाले सफर में विवादों के ऐसे साए भी कभी-कभार बुलंद हो जाते हैं। इतिहास से मिले जख्मों पर मलहम तो कभी का लग गया, लेकिन पानीपत फिल्म से उठे विवाद ने घावों को कुरेदकर एक बार फिर हरा कर दिया।

साभार- https://www.naidunia.com/ से

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