नई दिल्ली । स्टॉक मार्केट जब औंधे मुंह गिरता है तो निवेशक रक्षात्मक तरीके से इस बाजार में उतरते हैं और शेयर बाजार के कई नियम तो कहते हैं कि इन हालातों में उन कंपनियों का रुख करना चाहिए जो रोजाना इस्तेमाल में की जाने वाली वस्तुएं बनाती हैं क्योंकि इकॉनमी कितनी भी धीमे क्यों न हो लोग दांत साफ करना और कपड़े धोना नहीं छोड़ेंगे।
लेकिन इस बार यह सलाह किसी के काम नहीं आ सकती क्योंकि पतंजलि और इसके निर्माण के केंद्र बिंदु रहे बाबा रामदेव ने इस कंपनी को स्टॉक मार्केट में लिस्टेड नहीं कराया हुआ है। पतंजलि रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली चीजों में नूडल्स से लेकर शैंपू तक बनाती है।
कन्जयूमर गुड इंडस्ट्री के लिए बाबा रामदेव एक ‘विघटनकारी बल’ के रूप में उभरकर आए हैं और इसका जवाब आंकड़े देते हैं। इस वित्त वर्ष में अब तक पतंजलि ने 5 हजार करोड़ रुपये का रेवेन्यू कमाया है जो कॉलगेट, ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन या इमामी से कहीं ज्यादा है। आईआईएफल का अनुमान है कि 2020 तक यह रेवेन्यू 20 हजार करोड़ रुपये होगा जबकि 1888 में बनी कन्जयूमर गुड्स निर्माता की बड़ी कंपनियों में से एक हिंदुस्तान यूनीलिवर ने इसका दो तिहाई रेवेन्यू पिछले साल हासिल किया है।
हालांकि बाबा रामदेव के प्रॉडक्ट सभी कन्जयूमर गुड्स बनाने वाली कंपनियों को खत्म कर देंगे ऐसा सच नहीं है लेकिन यह देश की और मल्टिनैशनल कंपनियों को हानि जरूर पहुंचाएंगे।
पतंजलि किसी मल्टिनैशनल कंपनी के साथ जुड़ी नहीं है और न ही उसके पास बड़ी एफएमसीजी कंपनियों की तरह किसी बड़े मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट के प्रफेशनल्स हैं लेकिन यह कंपनी अपने दम पर खड़ी है क्योंकि उसका मानना है कि वह अपने ज्ञान के बल पर आगे बढ़ेंगे।
रामदेव ने किशोर बियानी के बिग बाजार के साथ जरूर करार किया है जो अपने 10 हजार डिस्ट्रिब्यूटर्स से बिग बाजार के प्रॉडक्ट बेचेगी लेकिन इसके मुकाबले गली-मोहल्लों में मौजूद लोकल शॉपकीपर्स ने पतंजलि के प्रॉडक्ट को पहचान दिलाई है।
साभार- इकॉनामिक टाईम्स से