कोटा जिला आज चम्बल के योगदान से विद्युत उत्पादन का हब बन गया। कोटा शहर से 60 किलोमीटर की परिधि में अरबों करोड़ों रूपये की लागत वाली अणु, पानी, कोयला एवं गैस पर आधारित विद्युत उत्पादन की परियोजनाएं इस भू-भाग की विशेषतायें बन गई हैं।
कोटा में चम्बल नदी के पश्चिम में सुपर थर्मल पावर परियोजना, राणा प्रताप सागर एवं कोटा डेम पर पन बिजलघर, रावत भाटा में परमाणु बिजलीघर तथा अंता में गैस आधारित नेशनल थर्मल पावर प्रोजेक्ट विद्युत उत्पादन कर रहे हैं। इन परियोजनाओं से वर्तमान में कुल 3511.3 मेगावाट विद्युत का उत्पादन किया जा रहा है।
चम्बल नदी घाटी परियोजना के अन्तर्गत योजना के प्रथम चरण में गांधी सागर बांध (मध्य प्रदेश) पर 23-23 मेगावाट उत्पादन क्षमता की चार इकाइंया स्थापित की गई। दूसरे चरण में रावतभाटा (चित्तौड़गढ़, जिला) के राणा प्रताप सागर बांध पर 43-43 मेगावाट क्षमता की चार इकाइयां लगाई गई। इनसे 1968-1969 में विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया गया। तीसरे चरण में जवाहर सागर बांध (बूंदी जिला) पर 33-33 मेगावाट क्षमता की तीन पन विद्युतगृह इकाइयां स्थापित की गई।
परमाणु बिजलीघर
चम्बल नदी घाटी परियोजना ने सिंचाई एंव पेयजल सुविधाओं के विकास साथ-साथ विद्युत उत्पादन के द्वार भी खोले। कोटा से करीब 65 कि.मी. दूर (चित्तौड़गढ़ जिला) रावतभाटा में में स्थापित राजस्थान परमाणु बिजलीघर ने देश व्यापी पहचान बनाई है। परमाणु विद्युत उत्पादन में रावतभाटा भारत का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादन केन्द्र बन गया है। वर्ष 1963 में कनाड़ा के सहयोग से 110-110 कुल 220 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता की दो इकाइयां प्रारंभ की गई। इनमें से एक इकाई ने 16 दिसम्बर 1973 एवं दूसरी इकाई ने 1 अप्रेल 1981 में वाणिज्यिक विद्युत उत्पादन शुरू किया।
भारतीय आण्विक विद्युत विस्तार के तहत 570 मीलियन डालर की लागत से स्थापित की गई 220 मेगावट क्षमता की तीसरी इकाई को 24 दिसम्बर 1999 को तथा 220 मेगावाट क्षमता को चौथी इकाई को 1 जून 2000 को क्रान्तिक किया गया जिन्होंने क्रमशः 1 जून 2000 तथा 23 दिसम्बर 2000 से वाणिज्यिक विद्युत प्रारंभ किया। अगले चरण में 220 मेगावाट क्षमता की पांचवीं इकाई तथा 220 मेगावाट क्षमता की छटीं इकाई स्थापित की गई। पांचवीं इकाई ने 4 फरवरी 2010 से एवं छटी इकाई ने 31 मार्च 2010 से वाणिज्यिक विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया।
परमाणु बिजलीघर की 7 वीं एवं 8 वीं यूनिट का कार्य वर्ष 2011 से प्रारम्भ किया गया एवं 123.2 बिलियन राशि की इस परियोजना का कार्य युद्धस्तर पर जारी है। न्यूक्लियर शहर रावतभाटा वर्ष आने वाले समय में 2 करोड़ लोगों की जरूरत की बिजली देने लगेगा एवं 20 हजार मिलियन यूनिट का उत्पादन रावतभाटा से होने लगेगा। राजस्थान परमाणु बिजलीघर के स्थल निदेशक विजयकुमार जैन की माने तो भविष्य में रावतभाटा में राजस्थान परमाणु बिजलीघर की 9वीं और 10वीं इकाई की भी संभावना है। यह 7 वीं, 8 वीं इकाई के पूर्ण होने के बाद ही तय हो पाएगा। हमारे पास जगह और संसाधनों की कमी नहीं हैं।
भारी पानी सयंत्र(भारी जल बोर्ड के अन्तर्गत) रावतभाटा में स्थित परमाणु ऊर्जा विभाग, स्वदेशी का निर्माण होता है और वह द्विताप एच2ओ-एच2एस विनिमय प्रक्रिया पर आधारित है। यह संयंत्र राजस्थान परमाणु ऊर्जा संयंत्र से जुड़ा है। भारी जल संयंत्र को बिजली और भाप की आपूर्ति के लिए आरएपीपी के साथ एकीकृत किया गया है। पास के राणा प्रताप सागर झील से पानी, निलंबित और घुली हुई अशुद्धियों की शुद्धता, प्रक्रिया को डी2ओ के साथ दूर करता है।
यूरेनियम फ्यूल बंडल कॉम्पलेक्स प्रोजेक्ट
रावतभाटा में देश के दूसरे यूरेनियम फ्यूल बंडल कॉम्पलेक्स प्रोजेक्ट की नींव का पहला पत्थर 9 सितंबर 2017 को परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष डॉ. शेखर बसु ने रखा। 2400 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में 2021 के बाद प्रतिवर्ष 500 टन यूरेनियम फ्यूल बंडल बनेंगे। इससे राजस्थान परमाणु बिजलीघर की 7वीं 8वीं इकाई, काकरापार गुजरात की 7वीं 8वीं इकाई, उत्तरी भारत में भविष्य में लगने वाली सभी 700-700 मेगावाट के परमाणु बिजलीघरों को यूरेनियम फ्यूल बंडल की आपूर्ति रावतभाटा से की जाएगी। जादू गौडा और देश की अन्य खानों से यूरेनियम यल्लोकेक के रूप में आएगा और यहां पर यूरेनियम फ्यूल बंडल बनाया जाएगा। वर्तमान में हैदराबाद से फ्यूल बंडल मंगाए जाते हैं।
विद्युत उत्पादन के प्रयासों का सिलसिला अनवरत रूप से चलता रहा। कोटा बैराज के अप स्ट्रीप में चम्बल नदि के पश्चिम की ओर कोयले पर आधारित थर्मल पावर स्टेशन लगाने की योजना 1970 के दशक में बनाई गई। परियोजना के प्रथम चरण में 110-110 मेगावाट विद्युत उत्पादन की दो इकाइयों का निर्माण कार्य 17 जनवरी 1970 से प्रारंभ किया गया। पहली इकाई ने जनवरी 1983 एवं दूसरी इकाई ने जुलाई 1983 में विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया। दूसरे चरण में 210-210 मेगावाट की दो इकाइयां स्थापित की गई। इकाई-3 ने सितम्बर 1998 एवं इकाई-4 ने मई 1989 में विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया। चौथे चरण में 210 मेगावाट क्षमता की इकाई-5 एवं 195 मेगावाट क्षमता की छटी इकाई स्थापित की गई। इकाई-5 ने मार्च 1994 एवं इकाई-6 ने जुलाई 2003 में विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया। परियोजना के पांचवे चरण में 195 मेगावाट की 7 वीं इकाई ने मई 2009 में विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया। इस प्रकार वर्तमान में परियोजना की 7 इकाइयों से 1241 मेगावाट विद्युत उत्पादन कर यह सुपर पावर स्टेशन बन गया है।
कोटा से 50 कि.मी. दूर अंता (बारां जिला) में नेशनल थर्मलपावर कार्पोरेशन लि. की गैस पर आधारित कुल 419.3 मेगावाट विद्युत उत्पादन की चार इकाइयां स्थापित की गई हैं। इस परियोजना पर 418.97 करोड़ रूपये व्यय किया गया है। प्रथम इकाई 88.7 मेगावाट की जनवरी 1989 में तथा इतनी ही क्षमता की दूसरी इकाई मार्च 1989 में एवं तीसरी इकाई मई 1989 में प्रारंभ की गई। चौथी इकाई 153.2 मेगावाट क्षमता की मार्च 1990 में प्रारंभ हुई। ये इकाइयां आईबीजे एवं विश्व बैंक सहयोग से स्थापित की गई। परियोजना को गैस की आपूर्ति साउथ बेसिन गैस फील्ड से एच‐बी‐जे‐ पाइप लाइन द्वारा की जाती है। एम.टी.पी.सी. कोयले एवं गैस पर आधारित विधुत उत्पादन की सबसे बड़ी कम्पनी है।
इसके साथ ही यदि हम हाड़ोती के संदर्भ में देखे तो कोटा से 85 किलोमीटर दूर झालावाड़ शहर से 121 किलोमीटर पर चम्बल की सहायक नदी कालीसिंध नदी के किनारे राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि. द्वारा दो चरणों में 600-600 मेगावाट उत्पादन क्षमता की दो इकाइयां विद्युत उत्पादन कर रही हैं। प्रथम इकाई को मार्च 2014 में तथा दूसरी इकाई को जून 2014 में प्रारंभ किया गया। परियोजना को कालीसिंध बांध से जल की आपूर्ति तथा छत्तीसगढ़ राज्य से कोयले की आपूर्ति की जाती है।
बारां जिले में जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर छबड़ा के समीप चौकी मेड़तीपुरा में कालीसिंध के किनारे 2320 मेगावाट क्षमता का सुपर थर्मलपावर की स्थापना की गई। यहांँ प्रथम चरण 250-250 मेगावाट क्षमता की प्रथम इकाई ने अक्टूबर 2009 तथा दूसरी इकाई ने 2010 में विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया। दूसरे चरण में 250-250 मेगावाट की क्षमता वाली तीसरी इकाई ने दिसम्बर 2013 में तथा चौथी इकाई ने जुलाई 2014 में विद्युत उत्पादन प्रारंभ किया। तीसरे चरण में 660-660 मेगावाट क्षमता की पांचवी इकाई को अक्टूबर 2016 में सिन्क्रोनाइज किया गया एवं छटी इकाई से भी उत्पादन शुरू हो कर विद्युत उत्पादन क्षमता 2320 मेगावाट होने के बाद इस वर्ष यह राज्य का सबसे बड़ा व सबसे ज्यादा बिजली उत्पादन करने वाला थर्मल बन गया है।
बारां से करीब 40 किलोमीटर दूर कवाई में अडानी समूह का 1320 मेगावाट क्षमता की 660-660 मेगावाट की दो इकाइयां स्थापित की गई हैं। राजस्थान में एक ही स्थान पर विद्युत उत्पादन का सबसे बड़ा थर्मल प्रोजेक्ट है। यह परियोजना 812 हेक्टर क्षेत्रफल में स्थापित की गई है।
आजादी के 70 साल बाद
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कोटा जिले में विद्युत उपलब्धता का ऐसा दृश्य नहीं था जैसा आज आजादी के 70 साल बाद चम्बल के योगदान से नजर आता है। उस समय केवल एक कस्बे एवं एक गांव में बिजली थी जबकि वतर्मान में सभी शहरों एवम गांवो में विद्युत सुविधा उपलब्ध हैं। यह परिदृश्य जिले के विद्युत विकास की कहानी स्वयं कहता है। रियासत काल में कोटा शहर में एक मात्र स्टीम आधारित पावर हाऊस था जिसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 324 किलोवाट थी। वर्ष 1957 तक जिले में घरेलू उपयाग में 0.39 मिलियन विद्युत उपयोग में लाई जाती थी।
हाड़ोती में विद्युत विकास का वर्तमान परिदृश्य निश्चित ही आश्चर्यचकित कर देने वाला है।