गत् दो दशकों से देश में विकास कार्यों की मानो बाढ़ सी आई हुई है। देश में प्रतिदिन नई सडक़ों का निर्माण हो रहा है, नई रेल लाईनें बिछाई जा रही हैं, सेतु तथा ऊपरगामी पुल बनाए जा रहे हैं। उपमार्गों व भूमिगत मार्गों के निर्माण भी हो रहे हैं ।अनेकानेक नए सरकारी भवन निर्मित किए जा रहे हैं। कहा जा सकता है कि उदारीकरण के दौर की शुरुआत होने के बाद देश निश्चित रूप से बदलता हुआ दिखाई देने लगा है। इसमें भी कोई शक नहीं कि विकास संबंधी इन योजनाओं में जहां अधिकांश योजनाएं किसी प्रस्तावित योजना का पूर्व अध्ययन करने के बाद उचित तरीके से व उचित समय पर शुरु की जाती हैं वह सही ढंग से सही समय पर पूरी भी हो जाती हैं। परंतु यह भी एक कड़वा सच है कि अनेक योजनाएं ऐसी भी होती हैं जिन्हें शुरु करने से पहले या तो सही ढंग से उस योजना पर होमवर्क नहीं किया जाता या फिर गैरजि़म्मेदारी व लापरवाही के चलते ऐसी योजनाएं जनता को सुख देने के बजाए दु:ख-तकलीफ,मुसीबत तथा व्यवसायिक घाटे का सबब बन जाती हैं। कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि कोई बड़ी या मध्यम श्रेणी की विकास संबंधी योजना या निर्माण कार्य करोड़ों रुपये खर्च कर देने के बाद किसी न किसी कारणवश बीच अधर में ही लटका रह जाता है। ऐसी स्थिति जन-धन की बरबादी का प्रतीक साबित होती है।
इन दिनों ऐसी ही एक विकास संबंधी योजना अधर में लटकी हुई है। अंबाला शहर रेलवे स्टेशन के साथ लगता रेलवे फाटक रेलगाडिय़ों के अत्यधिक परिचालन के कारण अधिकांश समय बंद रहने की वजह से दिनभर इसके दोनों ओर जाम की स्थिति बनी रहती है। गत् पंद्रह वर्षों से इस बात की चर्चा ज़ोरों पर थी कि सरकार इस अति व्यस्त रेलवे फाटक के नीचे से एक भूमिगत मार्ग बनाने की योजना तैयार कर रही है। कई बार रेलवे के अधिकारियों तथा सडक़ निर्माण से संबंधी राज्य सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा इस योजना स्थल का निरीक्षण भी किया गया। आिखरकार एक लंबी प्रतीक्षा के बाद गत् 6 माह पूर्व इस योजना पर काम करने की शुरुआत हुई। सर्वप्रथम फाटक के निकट एक दिशा से रेहड़ी,सब्ज़ी व फल विक्रेताओं को हटाया गया। बिजली के खंभे हटाए गए तथा एक ओर से सडक़ खोदने का काम शुरु हो गया। शुरुआती एक सप्ताह तक काम पूरी तेज़ी से हुआ। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यह भूमिगत मार्ग दो महीनों के भीतर ही तैयार हो जाएगा। लगभग दो सप्ताह तक चले इस कार्य में सडक़ में गहरा गड्ढा खोद दिया गया और ज़रूरत से ज़्यादा चौड़ाई खोद डाली गई। इसके पश्चात गत् बीस दिन से अधिक समय से विकास संबंधी यह परियोजना ठप्प पड़ी हुई है।निर्माण कार्य में लगी मशीनें यहां से गायब हो गई हैं। चारों ओर धूल-मिट्टी उड़ रही है तथा मलवे का ढेर लगा हुआ है। आम लोगों को इस रास्ते से आने-जाने में पहले से अधिक परेशानियां उठानी पड़ रही हैं।
इस योजना के खटाई में पडऩे का निश्चित रूप से कोई न कोई कारण ज़रूर है। परंतु वह कारण जिसकी वजह से यह योजना अधर में लटकी हुई है वही इस बात का सुबूत है कि इस काम को शुरु करने से पूर्व योजना से संबंधित होमवर्क पूरी तरह से नहीं किया गया था। आज सडक़ निर्माण से संबंधित अधिकारी रेल विभाग को काम रोकने के लिए जि़म्मेदार ठहरा रहे हैं। जितने क्षेत्र में गड्ढा खोदा गया था और भूमिगत् मार्ग के निर्माण की शुरुआत की गई थी लगभग 10 फुट गहरे उस उस गड्ढे में पानी भरा हुआ है। पानी भरे होने के चलते गड्ढे के दोनों किनारों पर मिट्टी के कटाव की संभावना बनी हुई है। ज़ाहिर है मानसून सिर पर होने के कारण इस गड्ढे में और भी पानी भरेगा और यह ‘कृत्रिम तालाब’ जानलेवा भी साबित हो सकता है। मिट्टी का कटाव यदि और बढ़ा तो सडक़ के किनारे लगते मकान व दुकानें खतरे में पड़ सकती हैं। इस अनियोजित निर्माण कार्य की वजह से सैकड़ों दुकानदारों व रेहड़ी,ठेला वालों की रोज़ी-रोटी पर संकट छा गया है। परेशान व असहाय दुकानदार व आसपास के नागरिक अपनी फरियादें लेकर प्रशासनिक अधिकारियों के पास भटकते फिर रहे हैं परंतु राज्य सरकार व रेल विभाग के मध्य इस निर्माण को लेकर छिड़े किसी विवाद के चलते इस योजना के आगे बढऩे की फ़िलहाल कोई संभावना नज़र नहीं आती। यदि बरसात में यह गड्ढा पूरी तरह लबालब भर जाता है तो यह न केवल किसी बड़ी दुर्घटना का सबब बन सकता है बल्कि इसकी वजह से सरकार को जनता के खून-पसीने की कमाई के करोड़ों रुपये का चूना भी लग सकता है।
अंबाला-सहारनपुर रेल सेक्शन के मध्य इसी प्रकार के कई भूमिगत मार्ग पहले भी अनियोजित तरीके से बनाए गए हैं जिनमें जनता के करोड़ों रुपये तो ज़रूर खर्च हो गए परंतु आज भी इन भूमिगत मार्गों में ज़रा सी बारिश में इतना पानी भर जाता है कि इस मार्ग का प्रयोग करना संभव नहीं हो पाता और तेज़ बारिश के बाद तो इस भूमिगत मार्ग का रूप किसी नदी जैसा हो जाता है जिसमें पास-पड़ोस के बच्चे व पशु भी तैरते हुए नज़र आ जाते हैं। आिखर ऐसे अनियोजित निर्माण से क्या फायदा जो सही तरीके से जनता को फायदा व राहत न पहुंचा सके? इस प्रकार की गैर जि़म्मेदारी तथा बिना तैयारी के किसी काम में हाथ डाल देने की प्रवृति से साफ ज़ाहिर होता है कि सरकारी अधिकारियों तथा योजना से संबंधित जि़म्मेदार लोगों की दिलचस्पी किसी काम को निर्धारित समय पर सही ढंग से पूरी करने के बजाए इस बात पर होती है कि योजना को लटका कर रखा जाए,इसपर सरकारी पैसों का बेतहाशा दुरुपयोग किया जाए तथा जनता को सुख देने के बजाए उसे तकलीफ व नुकसान पहुंचाया जाए। अन्यथा किसी ऐसी सार्वजनिक प्रयोग वाली योजना के खटाई में पडऩे का मतलब ही क्या है? क्यों ऐसी योजनाओं को शुरु करने से पहले कार्य की समयावधि तथा मौसम आदि पर ध्यान नहीं दिया जाता? आज जितनी भी निर्माण संबंधी योजनाएं देश में चल रही हैं निश्चित रूप से बारिश में उनकी गति कम हो जाती है। ऐसे में किसी योजना की शुरुआत ही बारिश के मौसम में या उसके आसपास करने का औचित्य ही क्या है?
हमारे देश में हो रहे निर्माण कार्यों में लगे अधिकारी तथा जि़म्मेदार लोग कितने चुस्त,चौकस व कुशल हैं इसका प्रमाण 31 मार्च 2016 को उस समय मिला था जब कोलकता में निर्माणाधीन विवेकानंद फ्लाईओवर ध्वस्त हो गया था जिसमें पचास से अधिक लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी। उसके बाद अभी कुछ दिन पूर्व ही 16 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में भी एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर की भारी-भरकम विशाल बीम उस समय पुल से नीचे गिर पड़ी जबकि नीचे की तरफ भारी जाम लगा हुआ था। इस दुर्घटना में भी 18 लोग अपनी जान गंवा बैठे। आए दिन लापरवाही की ऐसी अनेक घटनाएं हमारे देश में कहीं न कहीं होती रहती हैं। इस प्रकार की घटनाएं न केवल जनता के मेहनत के पैसों की बरबादी का सबब बनती हैं बल्कि इससे देश की छवि भी धूमिल होती है। कहां तो हमारे देश का नेतृत्व हमें यह समझाने की कोशिश करता है कि देश तरक्की कर रहा है,इसकी गिनती विश्व के संपन्न,शक्तिशाली तथा समृद्ध देशों में होने लगी है। हम चंद्रयान बनाते हैं और अंतरिक्ष विज्ञान में हमने बड़े तीर मारे हैं। परंतु जब हमें अंबाला शहर के मध्य में अकारण या सरकार के अनियोजित निर्माण कार्य के चलते सडक़ के बीच तालाब बना दिखाई दे तो निश्चित रूप से ऐसा ही प्रतीत होता है गोया नाचते हुए मोर ने अपने पांव देख लिए हों।
निर्मल रानी