Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeचर्चा संगोष्ठीकवि हलधर नाग ने राम-काव्य को भाषा की बेड़ियों से मुक्त किया...

कवि हलधर नाग ने राम-काव्य को भाषा की बेड़ियों से मुक्त किया है : प्रो. गुरमीत सिंह

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में हलधर नाग के राम-काव्यों पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा “हलधर नाग के राम-काव्य : लोकचेतना, संस्कृति और पर्यावरण” विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी (ऑनलाइन माध्यम) का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गुरमीत सिंह ने कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए प्रख्यात विमर्शकार दिनेश कुमार माली द्वारा अनुसर्जित पुस्तक ‘रामायण-प्रसंगों पर हलधर नाग के काव्य एवं युगीन विमर्श’ का भी विमोचन किया। कुलपति प्रो. गुरमीत सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में लोककवि एवं पद्मश्री पुरस्कृत हलधर नाग के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए उनकी रचनाओं में सन्निहित स्वर्णिम इतिहास की व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का अनूठा महाकाव्य रामायण इस देश की संस्कृति में इतना रच-बस गया है कि कल्पांत तक जनमानस इससे जुड़ा रहेगा। कवि हलधर नाग ने संबलपुरी कोसली भाषा में रामकाव्य लिखकर उड़िया भाषा को नई ऊंचाई तक पहुँचाया और अब अनुवाद के माध्यम से राम-काव्य के लोक प्रतिष्ठाता कवि हलधर नाग भाषा की बेड़ियों से मुक्त हो रहे हैं।

संगोष्ठी के संयोजक एवं पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सी. जय शंकर बाबु ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि कवि हलधर नाग की सर्जना के अभिन्न अंग के रूप में रामायण केंद्रित रचनाओं को भी हम देख सकते हैं। उनके तीन काव्य रामायण पर केंद्रित हैं- ‘आछिया’ (अछूत), ‘तारा-मंदोदरी’, ‘महासती उर्मिला’। इनके अलावा लोकभाषा अवधी में लोकप्रिय रामायण रामचरितमानस के सृजक संत तुलसीदास जी की जीवनी पर केंद्रित काव्य रचना ‘रसिया कवि’ की सर्जना की है । कविवर हलधर के इन काव्यों की सर्जना, उसमें उनकी वैचारिक आयामों के महत्व के परिप्रेक्ष्य में उनके काव्यों का अध्ययन, अनुशीलन, आलोचनात्मक विश्लेषण एवं तुलना की बड़ी प्रासंगिकता है। हलधर नाग के रामायण-प्रसंगों पर आधारित काव्यों के आलोक में उन काव्यों में लोक-चेतना, समाज, संस्कृति और पर्यावरण विषयों पर चिंतन-अनुचिंतन इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में होगा।

डॉ. कृष्णा आर्य ने स्वरचित गीत के माध्यम से लोक कविरत्न हलधर नाग का परिचय दिया। तत्पश्चात कवि हलधर नाग ने अपनी मातृभाषा कोसली में अपने भाषण में भारतभूमि की प्रशंसा करते हुए बताया कि इस भूमि की ही महत्ता है कि ऋषि मुनियों ने यहाँ के वन-प्रांतर और पर्वतों में तपस्या की, अफ्रीका या फ्रांस में नहीं। ईश्वर ने अपने अवतरण के लिए इस देश को चुना। यह इस देश की महिमा है। वक्तव्य के अंत में उन्होंने रामायणकालीन प्रसंगों पर आधारित ‘सुनो सुनो रामायण’ नामक गीत गाकर संगोष्ठी में जुड़े सभी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। अशोक पूजाहारी ने उनके अभिभाषण का आशु अनुवाद प्रस्तुत किया।

मुख्य अतिथि, महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड संबलपुर, उड़ीसा के पूर्व अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक श्री भोलानाथ शुक्ला ने भारतीय गौरव एवं उच्च आदर्श की परंपरा में हलधर साहित्य के योगदान को रेखांकित किया और बतलाया कि कवि हलधर नाग के साहित्य सृजन के द्वारा न केवल इस देश में बल्कि अन्य देशों में भी राम संस्कृति के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। डॉ. लक्ष्मी नारायण पाणिग्रही ने अपने बीज व्यक्तव्य में उड़िया संस्कृति की अस्मिता और भाषा को अपने काव्य के माध्यम से अक्षुण्ण रखने में प्रयासरत लोककवि हलधर नाग की भूरी-भूरी प्रसंशा की।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग की प्रो. नंदिनी साहू ने भी कवि हलधर नाग के काव्य के सरस हिंदी अनुवाद के प्रकाशन पर हर्ष जताया। मानविकी विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. क्लेमेंट लुर्द्स सगायराज ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से लोक संस्कृति के बारे में बात करते हुए कवि हलधर नाग द्वारा रचित काव्य की वर्तमान प्रासंगिकता को रेखांकित किया। अनुसर्जक और विमर्शकार श्री दिनेश कुमार माली ने कवि हलधर नाग की विलक्षण प्रतिभा तथा उनके साहित्य के मूल तत्व ‘परंपरा और आधुनिकता के मेल’ की विस्तृत व्याख्या की एवं कवि हलधर नाग की लेखनी से ज्यादा से ज्यादा लोग परिचित हो इसके लिए उनके अन्य काव्य का भी विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करने की आवश्यकता पर बल दिया।

द्वितीय सत्र की शुरुआत इंस्टीट्यूट फ़ॉर एक्सीलेंस इन हायर एजुकेशन, भोपाल के पूर्व प्रोफेसर डॉ. आनंद कुमार सिंह के व्याख्यान से हुई। उन्होंने बताया कि मध्य भारत का एक बड़ा हिस्सा ‘राम वन पथ गम’ का मार्ग रहा है। वहां की लोक संस्कृति में राम इस कदर घुल-मिल गए हैं कि अब इसे पृथक नहीं किया जा सकता। कवि हलधर नाग इस लोक संस्कृति का चित्रण करके इन लोक परंपराओं को अपने काव्य के माध्यम से सहेजने का जो कार्य कर रहे हैं, वह अद्वितीय है। अन्य वक्ताओं में ओड़िया भाषा के प्रमुख नाटककार डॉ. द्वारिका प्रसाद नायक एवं हल्द्वानी महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रभा पंत शामिल रहीं।

तृतीय सत्र में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर की हिंदी एवं तमिल विभागाध्यक्ष डॉ. संध्या सिंह, ऑस्ट्रेलिया से जुड़े साहित्यकार डॉ. हरिहर झा एवं त्रिपुरा की डॉ. बुल्टी दास ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए। चतुर्थ सत्र हिंदी के आलोचक श्री रामप्रकाश कुशवाहा, गवर्नमेंट ऑटोनॉमस कॉलेज अंगुल के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. शांतनु सर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के फैकल्टी डॉ. सुजीत कुमार प्रूसेठ एवं सेवानिवृत्त डिफेंस अधिकारी श्री सुरेंद्र नाथ के व्याख्यानों के साथ प्रथम दिवस की संगोष्ठी का समापन हुआ।

संगोष्ठी के द्वितीय दिवस और पंचम सत्र के व्याख्यान के लिए लेखिका डॉ. विमला भंडारी, साहित्यकार डॉ. सुधीर सक्सेना, लेडी डोक कॉलेज मदुरै की संकाय प्रमुख डॉ. एस. प्रीति लता, बीजेबी ऑटोनॉमस कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. चितरंजन मिश्रा, सामाजिक कार्यकर्ता श्री सुशांत कुमार मिश्रा, श्री डी. डी. अरसू सरकारी महाविद्यालय कर्नाटक की सहायक प्राध्यापिका करुणालक्ष्मी के. एस. एवं जम्मू से एडवोकेट डॉ. सुमेर खजूरिया शामिल हुए। छठें सत्र के वक्ताओं में उत्तरप्रदेश की श्रीमती अर्चना उपाध्याय, राजकीय मॉडल डिग्री कॉलेज बुलंदशहर के सहायक प्राध्यापक डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह, उड़ीसा के साहित्यकार श्री उत्पन्न कुमार भोई, द अमेरिकन कॉलेज मदुरै हिंदी विभाग आचार्या डॉ. अश्विनी भवानी एवं संबलपुरी भाषा के लेखक श्री अनिल कुमार दास शामिल रहे। सातवें सत्र के प्रमुख वक्ताओं में नारनौल की शिक्षिका डॉ. कृष्णा कुमारी आर्य, विवेकानंद महाविद्यालय सिकंदराबाद की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. सी. कामेश्वरी, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान धारवाड़ की अध्यक्ष प्रो. अमर ज्योति, अलायंस विश्वविद्यालय, बैंगलोर से डॉ. अनुपमा तिवारी, दादासाहेब धनवटे नगर महाविद्यालय नागपुर की शिक्षिका डॉ. नीलम हेमंत वीरानी एवं आंचलिक कॉलेज बरगढ़ के राजनीति शास्त्र के व्याख्याता अशोक कुमार पूजाहारी शामिल रहें।

संगोष्ठी के अंतिम सत्र में अमन ऋषि साहू, राजीब कुमार बेज, अनामिका, एस. वैष्णवी सोनिया आदि ने अपने शोध-पत्र का वाचन किया। इस संगोष्ठी में देश के पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों के शिक्षकों, शोधार्थियों एवं छात्रों ने सहभागिता की। इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में कवि हलधर नाग के योगदान और उनकी रामायण आधारित लंबी कविता की व्यापक समीक्षा की गई।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार