भारत वर्ष के प्रायः हर क्षेत्र में मुख्य रूप से दो वर्गों का बर्चस्व रहा है। एक को शासक और दूसरे को शासित वर्ग कहा जा सकता है। शासक बाहुबली वर्ग के बारे में लोगों की आम जन अवधारणा में कोई विशेष परिवर्तन अभी तक नही दिखता है। राजशाही तो संविधान और कानून के आधार पर समाप्त प्राय है पर अनधिकृत तरीके अपनाकर उनके प्रभाव का असर आज भी शिक्षा उद्योग ,विद्यालय उद्योग, खनन उद्योग,बस टैक्सी संचालन वा बस टैक्सी स्टैंड संचालनआदि का वैध या अवैध संचालन आदि में एकल या संगठित समूह के रूपों में देखा जा सकता है। दूसरे अर्थों में इन्हे बाहुबली या माफिया भी कह सकते हैं। इस समूह में संलग्न लोग कट्टर या उदारवादी दोनों होते हैं। ये अपने नाम और प्रभाव को बढ़ाने के लिए धार्मिक, सामाजिक,शिक्षा, चिकित्सा और राजनीतिक संगठनों और उनसे जुड़े लोगों को आर्थिक मदद देने के लिए, दिल खोलकर दान और मदद भी देते हैं।
माफिया समूह ऐसा वृक्ष होता है,जिसकी जड़ें, मजबूत, गहरी और बहुत दूर तक फैली होती हैं। यह माफिया नामक वृक्ष धार्मिक,सामाजिक,सांस्कृतिक, संगठनो में सक्रिय लोगों के करकमलों द्वारा सींचा जाता है। राजनीति इस वृक्ष का संरक्षण करती है। हर एक क्षेत्र में माफिया नाम का समूह कार्यरत होता है। शासन के अंतर्गत प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ बनाए रखने के लिए बनाए गए नीति नियमों की त्रुटियों का लाभ उठाना साहस पूर्ण कार्य है।इन नीति नियमो की त्रुटियों के कारण अपने अवैध कार्यो को वैध कर लेना कोई साधारण काम नहीं हैं, इसके लिए तेजतर्रार दिमाग और तदनुरूप उद्यम किया जाना चाहिए।
सामाजिक स्तर पर यह माफिया भिन्न भिन्न आकार प्रकार में पाया जाता है। सड़क छाप से लेकर उच्चस्तर तक। धार्मिक क्षेत्र में सक्रिय माफिया समूह अतिधार्मिक लोगों के लिए बहुत सहयोगी होता है। इस माफिया समूह के कारण इन आस्थावान लोगों को किसी भी देवालय में दर्शनार्थ लंबी कतार में खड़े नहीं होना पड़ता है। इन आस्थावान लोगो को वी. वी.आई. पी.,स्तर का दर्शन लाभ प्राप्त होता है।
भू माफ़िया समूह की कार्य कुशलता की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। कारण यह समूह, कोई भी, कैसी भी,कितनी भी, कानूनी पेंचीदा समस्याओं में उलझी जमीनों का सौदा निर्भयता पूर्वक कर लेने में निपुण होता है। एक माफिया समूह, धार्मिक सामाजिक, सांस्कृतिक, समारोह के लिए हाथों में रसीद कट्टे लेकर चंदे के स्वरूप में भीख मांगते हुए प्रायः देखा जाता है। इस माफिया का अघोषित व्यवसाय यही होता है। यह समूह बारह महीने सक्रिय होता है। एक समूह आए दिन किसी न किसी बहाने भंडारे नामक अन्न दान का धार्मिक आयोजन करता रहता है। इस माफिया समूह को साईबाबा जय गुरुदेव आशाराम राम पाल , राधा मां और राम रहीम जैसे संत सहज, सरल और आसानी से मिल जाते हैं।
वर्षभर में जितने भी भंडारे होते है,उनमें नब्बे फी सदी भंडारे साईं बाबा के नाम पर ही होते हैं।इस माफिया को मन या बेमन से सहयोग करने वाले व्यापारी होते हैं।यह व्यापारी बगैर आना कानी किए मुक्तहस्त से अपना दान रूपी सहयोग प्रदान करते हैं।यह सहयोग करना इनकी बाध्यता भी होती है अपने व्यापार की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए।
एक महत्वपूर्ण माफिया है,खनन माफिया,यह माफिया, माफी अर्थात क्षमा का अधिकारी है।यह माफिया सरिताओं में खनन कर नदियों के गहरी करण में व्यवस्था के लिए सहयोगी होता है।इस माफिया के सराहनीय कार्य के लिए इसकी प्रशंसा करनी चाहिए।
माफिया समूह की जड़े कितनी भी मजबूत हो कितनी भी फैली हो इसकी उम्र अनिश्चित होती है।साँप सीडी के खेल की तरह।जबतक भाग्य साथ देता है तबतक इस समूह के लोगों के पांसे पक्ष में पड़ते हैं,तबतक खेल में सीढ़ी- दर- सीढ़ी ही आते रहती है,लेकिन आख़री पायदान पर पहुँचने के मात्र दो कदम की दूरी पर अर्थात इठयावन पर साँप आ जाता है जो सीधे नीचे ले आता है। नीचे अर्थात जमीन आकर सब कुछ नेस्तनासबूत कर देता है। दर्शन शास्त्र कहता है, पाप का घड़ा एक न एक दिन फूटता ही है।