कर्नाटक में विधानसभा चुनाव 12 मई को होने हैं। ऐसे में वहां चुनावी सरगर्मी भी तेज हो गई है। देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों के दिग्गज नेताओं ने भी वहां अपना सिंहासन लगा दिया है। एक ओर जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी चुनाव में जीत के लिए रणनीति बना रहे हैं।
विधानसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक पहुंच रहे इन दोनों दिग्गज नेताओं में एक खास बात है उनका मंदिर, मस्जिद और चर्च का दौरा। कर्नाटक दौरे के दूसरे दिन बुधवार को राहुल गांधी ने जहां सिद्धगंगा मठ में मत्था टेका वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बादामी में शिवयोगी मंदिर पहुंचे।
बता दें कि दोनों ही पार्टियों के लिए कर्नाटक चुनाव काफी अहम है। एक ओर जीत की सीढ़ियां चढ़ रही भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ एक बार फिर यहां जीत का परचम लहराना चाहती है वहीं कांग्रेस भी कर्नाटक को जीत कर अपनी लाज बचाना चाहती है। बता दें कि कर्नाटक में 13% मुस्लिम, 85% हिंदू वोटर हैं। राज्य में 224 में से करीब 200 सीटों पर हिंदू वोटर निर्णायक भूमिका में हैं।
मठों और मंदिरों का राज्य की राजनीति में दखल
कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले यहां मंदिर और मठों में नेताओं की भीड़ लगी है। राज्य के 30 जिलों में 600 से ज्यादा मठ हैं। राज्य में लिंगायत समुदाय के 400 मठ, वोकालिगा समुदाय के 150 मठ और कुरबा समुदाय के 80 से ज्यादा मठ हैं। इन तीन समुदायों के राज्य में करीब 38% वोटर हैं और वे किसी भी पार्टी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसीलिए चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस इन्हें साधने में लगी हैं। राहुल गांधी अब तक 15 बार और अमित शाह 5 से ज्यादा बार मंदिर और मठ जा चुके हैं। कर्नाटक की राजनीति में मठों का दबदबा 1983 से बढ़ा है।
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को लेकर काफी विवाद चल रहा है। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने लिंगायतों को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव पास कर भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। वहीं बड़ा चुनावी दांव खेला है। बता दें कि राज्य में 17 से 18 फीसदी आबादी लिंगायत समुदाय की है। इनका 100 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। 224 में से 52 विधायक इसी समुदाय से हैं। इन्हें भाजपा का वोटबैंक माना जाता है।
राज्य में वोकालिगा की आबादी 12 फीसदी है। इनका 80 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा इसी समुदाय से हैं। उनकी पार्टी जेडीएस का इन पर काफी प्रभाव है। इस समुदाय से राज्य में 6 सीएम हुए हैं। अमित शाह, अनंत कुमार, सदानंद गौड़ा वोकालिगा के चुनचुनगिरी मठ भी जा चुके हैं।
कर्नाटक में मठों का वर्चस्व 80 दशक में शुरू हुआ। जब मठों ने आधुनिक तौर-तरीकों को अपनाने के साथ सामाजिक और शैक्षणिक कार्य शुरू किए।
1. 1983 में पहली बार लिंगायत मठों ने जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े का समर्थन किया। हालांकि जनता दल स्थायी सरकार देने में नाकाम रही।
2. 1987 में लिंगायत मठों ने कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल को सपोर्ट किया, पर वीरेंद्र को राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर ही सीएम पद से हटा दिया।
3. 2008 में लिंगायत मठों ने भाजपा के येदियुरप्पा को सपोर्ट किया। उनके सीएम पद से हटने के बाद 2013 के चुनावों में भाजपा को हार मिली।
कुरबा मठों ने 2013 के विधानसभा चुनाव में अपने समुदाय के सिद्दारमैया को समर्थन दिया था। तीसरा प्रमुख मठ कुरबा समुदाय का है और इसकी आबादी 8 फीसदी है। इसका मुख्य मठ श्रीगैरे, दावणगेरे में है। सीएम सिद्दारमैया इसी समुदाय से हैं। उनके वोट बैंक अहिंदा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, दलित) को तोड़ने की कवायद में अमित शाह चित्रदुर्ग में दलित मठ शरना मधरा गुरु पीठ गए थे।
साभार- अमर उजाला से