दो बार मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री एवँ केंद्र में कई विभागों में मंत्री व केंद्रीय गृह मंत्री रहे स्व. प्रकाश चन्द्र सेठी अगर आज जीवित होते तो उनके चमचे, प्रशंसक, चापलूस, उनके दम पर राजनीति करने वाले छुटभैयs नेताओँ से लेकर तथाकथित बड़े कद के नेता शान से 19 अक्टूबर को उनका सौंवा जन्म दिन मना रहे होते, पूरे शहर में उनके पोस्टर लगे होते और उनके घर के बाहर देसी विदेशी गाड़ियों में झकास खादी, ससफारी सूट पहने धूर्त नेताओँ और कॉर्पोरेटियों की लाईन लगी होती….लेकिन दुर्भाग्य है इस शहर का राष्ट्रीय राजनीति में उज्जैन को पहचाने देने वाले प्रकाश चन्द्र सेठी के जन्म दिन की जानकारी तक यहाँ के लोगों को नहीं है।
उज्जैन में विधायक सांसद और मंत्री बनकर संकरे रास्तों पर चौड़े होकर घूमने वाले राजनीतिज्ञों को इस बात का एहसास कर लेना चाहिए कि जब देश के शीर्ष पद पर पहुँची शख्सियत को उनके ही लोगों ने भुला दिया तो छुटभैया राजनीति करने वालों का क्या हश्र होगा?
उज्जैन की राजनीति से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और फिर केंद्रीय गृह मंत्री के पद तक पहुँचने वाले प्रकाश चंद्न सेठी एक ऐसे अबूझ व्यक्तित्व थे कि उनको समझ पाना किसी के बूते की बात नहीं थी। दिलीप कुमार जैसे दिखने वाले और भारतीय राजनीति के सबसे स्मार्ट सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी प्रकाश चंद्र सेठी ने अपने दम पर, अपने मन की राजनीति की। राजनीति में नीचे से ऊपर तक पहुँचे मगर उन पर कभी किसी तरह के भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे।
1954 में उज्जैन नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले प्रकाश चंद्र सेठी की किस्मत का दरवाजा तब खुला जब स्व. पं. जवाहरलाल नेहरू ने स्व. घनश्याम दास बिड़ला से मध्य प्रदेश से राज्य सभा में भेजने के लिए किसी तेजतर्राट नेता का नाम मांगा। स्व. घनश्याम दास बिड़ला उज्जैन के बिनोद मिल के मालिक लक्ष्मीचंद सेठी के मित्र थे, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की ये बात लक्ष्मीचंद सेठी को बताई तो सेठी जी ने अपने समाज के और उनके ही गाँव राजस्थान के झालरापाटन से उज्जैन आए प्रकाश चंद सेठी का नाम सुझा दिया, और इस तरह सीधे राज्यसभा से प्रकाश चंद्र सेठी ने काँग्रेस की केंद्रीय राजनीति में प्रवेश किया। नेहरूजी ने सेठीजी को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर उन्हें राज्य मंत्री बनाया।
इसके बाद वे देश के गृहमंत्री के पद तक पहुँचे। केंद्र की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने, हिंदी और अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोलने और कांग्रेस की राजनीति में सभी गुटों और विपक्षी पार्टियों के बड़े नेताओँ के चहेते रहे प्रकाश चन्द्र सेठी का राजनीतिक ग्राफ तेजी से बढ़ता गया और एक दिन इन्दिरा गाँधी ने उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्य मंत्री बनाकर भोपाल भेज दिया। स्वर्गी प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी के उनकी पारिवारिक निकटता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राहुल और प्रियंका की डिलीवरी के समय सेठीजी की पत्नी श्रीमती कमला सेठी पूरे 40 दिन तक सोनिया गाँधी के साथ रही और दोनों बच्चों की मालिश से लेकर दवाई देने और सोनिया गाँधी के खानपान की पूरी जिम्मेदारी श्रीमती सेठी की ही होती थी।
सेठीजी को लेकर मध्य प्रदेश और दिल्ली की राजनीति में ऐसे तो कई किस्से हैं। मगर दो किस्से ऐसे हैं जिनसे उनके काम करने का अंदाज लगाया जा सकता है।
तब दिल्ली में सेठीजी एक सांसद की हैसियत से रह रहे थे, और उस समय एक शहर से दूसरे शहर में फोन लगाने के लिए ट्रंककाल बुक करना होता था। सेठीजी ने दिल्ली से मंदसौर अपने मित्र व वकील भँवरलाल नाहटा से बात करने के लिए ट्रंककाल बुक किया और कई घंटे तक जब ट्रंक काल नहीं लगा तो सेठीजी पिस्तौल लेकर टेलीफोन एक्सचेंज में पहुँच गए और गोलियाँ चला दी। ये मामला कई दिनों तक दिल्ली की राजनीति में सुर्खियों में रहा।
दूसरा मजेदार किस्सा है कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आज़ाद की शादी का। सेठीजी गुलाम नबी आजाद की शादी में शामिल होने दिल्ली आए थे। अचानक उन्हें किसी काम से दिल्ली में रात रुकना पड़ा तो उन्होंने अपना पायजामा मंगवाने के लिए दिल्ली से सरकारी हवाई जहाज भोपाल भेज दिया।
एक किस्सा तो मेरे सामने का ही है। वर्ष 1991 में मैं सेठीजी के कुछ मित्रों के साथ उनके फ्रीगंज स्थित घर पर बैठा था। तब घर में एक ही टेलीफोन होता था और लाल रंग का वो टेलीफोन लकड़ी के एक स्टैंड में रखकर पूरे घर में जिसका भी फोन आता था उसके पास रख दिया जाता था। अचानक फोन की घंटी बजी फोन दिल्ली से था। सेठीजी ने पूछा किसका फोन है, उधर से जवाब आया कोई नरसिंह राव जी बात करना चाहते हैं। सेठीजी ने फोन हाथ में लेकर कहा कहा, नरसिंह रावजी क्या काम है…उधर से प्रधान मंत्री नरसिंह राव ने कहा कि आपको किसी राज्य में राज्यपाल बनाने की इच्छा है, आप कहाँ के राज्यपाल बनना चाहते हैं? सेठी जी ने अपने तुनुक मिजाजी अंदाज़ में कहा, मुझे कोई राज्यपाल वाज्यपाल नहीं बनना आप तो मेरी पेंशन अटकी हुई है उसे निकलवा दो ताकि मेरा खर्च चले।
किस्सा ये है कि सेठीजी जब दिल्ली की राजनीति में सक्रिय थे तो आंध्न प्रदेश में कांग्रेस के पर्यवेक्षक बनकर गए थे और नरसिंह राव को मुख्यमंत्री बनने में मदद की थी। लेकिन जब सेठीजी भूतपूर्व गृहमंत्री होकर वापस उज्जैन लौट आए तो उनका सारा खर्च सांसद के रूप में मिलने वाली पेंशन से ही चलता था। उनके पास एक पुरानी फियाट कार थी उसी से वे इन्दौर जाते थे। पूर्व गृहमंत्री होने के नाते उनकी सुरक्षा के लिए जो जवान लगे थे वो उस कार को धक्का देकर स्टार्ट करवाते थे।
1992 में जब नरसिंह राव प्रधान मंत्री के रूप में गंभीर बाँध का उद्घाटन करने उज्जैन आए तो हैलीपेड पर सेठीजी को देखकर उन्होंने वही बात दोहराई कि मैं आपको कोई बड़ी जिम्मेदारी देना चाहता हूँ, इस पर सेठीजी ने अपने खास अंदाज़ में कहा कि अब मैं सब छोड़ आया हूँ अब मुझे किसी चीज की कोई चाहत नहीं।
सेठीजी अपनी जिद के पक्के थे। कोई बात अगर उनको जंच जाती थी तो वो उसको करके ही छोड़ते थे। तब मध्य प्रदेश में डाकुओँ का भारी आतंक था। उस समय विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण डाकुओँ से आत्मसमर्पण करवाने की मुहिम में लगे थे। इधर सेठीजी डाकुओं से उनकी ही भाषा में निपटना चाहते थे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी कि वे चंबल के डाकुओं पर बम डालकर उनका सफाया कर देंगे। इसके लिए वे बकायदा वायुसेना के अधिकारियों से मुलाकात करने भी चले गए। उनकी इस धमकी का डाकुओँ पर ऐसा असर हुआ कि 500 डाकुओं ने आत्मसमर्पण करने में ही अपनी भलाई समझी।
सेठीजी कैसी शख्सियत थे इसका अँदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे सरकारी बाबुओं पर बहुत कम भरोसा करते थे। वे खुद टाईपिंग जानते थे और अगर किसी को कोई सिफारिशी पत्र देना हो और कोई जरुरी आदेश निकालना हो तो वो खुद ही पत्र टाईप करके उस पर सील ठप्पे लगा देते थे।
सेठीजी बोलने में भी मुँहफट थे। माधव कॉलेज के एक कार्यक्रम में डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन ने जब प्रकाश चन्द्र सेठी की तारीफ में कहा कि ये मेरे सबसे होनहार छात्र थे तो सेठीजी ने अपने भाषण में कहा कि मैं होनहार छात्र था मगर डॉ. सुमन जिस प्रकाश चन्द्र सेठी के बारे में कह रहे हैं वो कोई और रहा होगा, क्योंकि मैं सुमनजी क छात्र कभी नहीं रहा।
सेठीजी के प्रशसंक व उनके साथ रहे उज्जैन के श्री मनोहर बोथरा का कहना है कि स्वर्गीय श्री प्रकाश चंद सेठी ने कांग्रेस संगठन मैं भी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष की भूमिका भी बड़ी बेख़ूबी के साथ निभाई। सेठी जी श्रीमती इन्दिरा गांधी के विश्वास पात्र व्यक्तियों में से थे। आदरणीय इन्दिरा जी – ने श्री सेठी जी के विश्वास और सम्बंध को इतना निभाया की अपने दौरे के समय जहाँ जहाँ सेठीजी की पाँचो बेटियों से मिलने भी गई।
श्री प्रकाश चंद्र सेठी दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। चतुर्थ विधान सभा (1967-1972) में 29 जनवरी 1967 से 22 मार्च1972 तक तथा पाँचवीं विधानसभा में 23 मार्च 1972 से 23 दिसंबर1975 तक।
स्वर्गीय प्रकाश चन्द्र सेठी 1939 में उज्जैन के माधव महाविद्यालय के स्नेह सम्मेलन के एवं माधव क्लब के सचिव रहे। सन् 1942 में सेठीजी ने स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये महाविद्यालयीन शिक्षा का बहिष्कार कर दिया। वे सन् 1942 में तथा सन् 1949 से 1952 तक मध्यभारत में इंटक के उपाध्यक्ष भी रहे। सन् 1951 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बने।
सन् 1951, 1954 तथा 1957 में उज्जैन जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सन् 1953 से 1957 तक मध्य भारत प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य रहे। सन् 1954-1955 में मध्य भारत कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने। 1956 से 1959 तक मध्य भारत ग्राम तथा खादी मंडल तथा प्रादेशिक परिवहन समिति के सदस्य रहे। सन् 1957 से 1959 तक उज्जैन जिला सहकारी बैंक के संचालक रहे।
सन् 1953 बिहार में तथा सन् 1959 केरल में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की ओर से चुनाव प्रचार के प्रभारी रहे।
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के द्वारा सन् 1955-1956 में कर्नाटक, महाराष्ट्र, बंबई और गुजरात के लिये क्षेत्रीय प्रतिनिधि नियुक्त हुए। दिसम्बर 1966 में बिहार में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के पर्यवेक्षक रहे। फरवरी, 1967 में लोक सभा के लिये निर्वाचित हुए। जून 1962 से मार्च, 1967 तक केन्द्रीय उप मंत्री रहे। 13 मार्च, 1967 से राज्यमंत्री, 26 अप्रैल, 1968 से 23 फरवरी, 1969 तक इस्पात, खान और धातु मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभारी मंत्री रहे तथा 14 फरवरी, 1969 को वित्त मंत्रालय में राजस्व तथा व्यय मंत्री रहे।
1982 से 84 तक सेठीजी देश के गृहमंत्री रहे। 31 अक्टूबर 1984 को जब प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी की हत्या हुई तब सेठीजी को लेकर एक किस्सा राजनीतिक गलियारों में आज भी प्रचलित है कि जब इन्दिराजी का शव अस्पताल में रखा था और सेठीजी अस्पताल पहुँचे तो उन्होंने ये सवाल पूछ कर सबको हैरान कर दिया था-इन्दिराजी मर गई क्या? कहा जाता है कि इस सवाल को लेकर ही राजीव गाँधी ने प्रधान मंत्री बनते ही सेठीजी से दूरी बना ली थी और दिल्ली में सेठीजी का राजनीतिक ग्राफ एकदम नीचे चला आया।
सेठी जी ने सन् 1958 में अफगानिस्तान, सन् 1960 में अमेरिका, कनाड़ा, इंग्लैंड, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलेंड, मिस्त्र की और सन् 1962 में चेकोस्लोवाकिया तथा ऑस्ट्रिया की यात्राएँ की। सितम्बर, 1969 में बारबाडोस (वेस्टइंडीज) के राष्ट्र मंडलीय वित्त मंत्री सम्मेलन में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व किया। अक्टूबर, 1969 में कोलम्ब योजना सम्मेलन के प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया. एशियाई विकास बैंक मनीला और अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण तथा विकास बैंक में भारत के गवर्नर मनोनीत हुए. 27 जून, 1970 को प्रतिरक्षा उत्पाादन मंत्री बने. तदुपरांत पेट्रोलियम तथा रसायन राज्य मंत्री रहे. दिनांक 29 जनवरी, 1972 के आम चुनाव में विधान सभा के लिये निर्वाचित होकर पुन: सदन के नेता निर्वाचित हुए।
21 फरवरी 1996 को इन्दौर में सेठीजी का देहावसान हो गया.