पुणे। दो इतिहास प्रेमियों ने पुणे जिले के पास अंबाले गांव के पास एक गुमनाम किला खोज निकाला है। इस किले को धवलगढ़ के नाम से जाना जाता है। इसका उल्लेख सबसे पहले 1940 में इतिहासकार कृष्ण वामन पुरंदरे ने अपनी संदर्भ पुस्तक में किया था। महाराष्ट्र सरकार की ओर से इसे कभी गजेटियर में शामिल नहीं किया गया।
पेशे से चार्टड अकाउंटेंट ओंकार ओक और पुरातत्व शोधकर्ता सचिन जोशी ने हाल ही में इस पुराने किले का भ्रमण किया था। उन्होंने स्थल का सर्वे भी किया। इसके बाद दोनों ने किले पर अपने रिसर्च पेपर भारत इतिहास संशोधक मंडल को प्रस्तुत किये। यह संस्थान इतिहास पर शोध करने वालों को संसाधन और प्रशिक्षण की सुविधा देता है। दोनों अब इस किले को राज्य सरकार द्वारा पहचान दिलाये जाने के कार्य में जुट गए हैं।
ओक ने बताया कि इस साल फरवरी में ट्रेकिंग करते समय उन्होंने इस किले को खोजा। उन्होंने जोशी को इसके फोटो दिखाये। दोनों ने मौके पर जाना तय किया। यहां आकर इन्होंने एक सर्वे किया। किले के पास इन्हें पुरानी ईंटें, चूडि़यां, बर्तन और लोहे का सामान मिला। आश्चर्य की बात है कि गांव वालों तक को इसका पता नहीं था। मंदिर के अलावा दोनों को एक टूटा दरवाजा, जलाशय, तोप, टॉवर आदि मिले हैं। दोनों ने इसका नाप ले लिया है।
बताया जाता है कि 1674 में मराठा साम्राज्य में इस किले का निर्माण किया गया था। इसमें छत्रपति शिवाजी ने सहयोग किया था। यह 1818 में बनकर पूरा हुआ।
साभार- https://naidunia.jagran.com/ से मीडिया की दुनिया से
पुणे के दो छात्रों ने खोज निकाला गुमनाम पुराना किला
मीडिया डेस्क
पुणे। दो इतिहास प्रेमियों ने पुणे जिले के पास अंबाले गांव के पास एक गुमनाम किला खोज निकाला है। इस किले को धवलगढ़ के नाम से जाना जाता है। इसका उल्लेख सबसे पहले 1940 में इतिहासकार कृष्ण वामन पुरंदरे ने अपनी संदर्भ पुस्तक में किया था। महाराष्ट्र सरकार की ओर से इसे कभी गजेटियर में शामिल नहीं किया गया।
पेशे से चार्टड अकाउंटेंट ओंकार ओक और पुरातत्व शोधकर्ता सचिन जोशी ने हाल ही में इस पुराने किले का भ्रमण किया था। उन्होंने स्थल का सर्वे भी किया। इसके बाद दोनों ने किले पर अपने रिसर्च पेपर भारत इतिहास संशोधक मंडल को प्रस्तुत किये। यह संस्थान इतिहास पर शोध करने वालों को संसाधन और प्रशिक्षण की सुविधा देता है। दोनों अब इस किले को राज्य सरकार द्वारा पहचान दिलाये जाने के कार्य में जुट गए हैं।
ओक ने बताया कि इस साल फरवरी में ट्रेकिंग करते समय उन्होंने इस किले को खोजा। उन्होंने जोशी को इसके फोटो दिखाये। दोनों ने मौके पर जाना तय किया। यहां आकर इन्होंने एक सर्वे किया। किले के पास इन्हें पुरानी ईंटें, चूडि़यां, बर्तन और लोहे का सामान मिला। आश्चर्य की बात है कि गांव वालों तक को इसका पता नहीं था। मंदिर के अलावा दोनों को एक टूटा दरवाजा, जलाशय, तोप, टॉवर आदि मिले हैं। दोनों ने इसका नाप ले लिया है।
बताया जाता है कि 1674 में मराठा साम्राज्य में इस किले का निर्माण किया गया था। इसमें छत्रपति शिवाजी ने सहयोग किया था। यह 1818 में बनकर पूरा हुआ।
साभार- https://naidunia.jagran.com/ से