बिहार के मुजफ्फरपुर का रहने वाले 20 साल का यह लड़का बीते साल से कोटा में इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा है। उसका कहना है कि पढ़ते-पढ़ते उसका दिमाग ठप पड़ चुका था। इसके अलावा, घर से पड़ रहे दबाव की वजह से उसने नशे का रास्ता अपनाया। नाम न छापे जाने की शर्त पर उसने बताया, ”हम इसे बाबाजी की बूटी कहते हैं। मेरे सीनियर्स ने मुझे इस बारे में बताया। इससे मुझे काफी राहत मिलती है। मुझे अपनी पढ़ाई पर फोकस करने में ज्यादा मदद मिलती है।” अपहरण की फर्जी कहानी बता परीक्षा देने से बच रहे बच्चे कोटा के कोचिंग सेंटरों में पढ़ रहे 24 बच्चे इस साल आत्महत्या कर चुके हैं। हालांकि, इससे ज्यादा चिंता का विषय यह है कि अच्छे नंबर लाने के प्रेशर और नाकामी के डर ने सैकड़ों छात्रों को नशे, छोटे मोटे अपराध और गुटबाजी के चक्कर में फंसने को मजबूर कर दिया है।
यहां बिहार टाइगर्स और हरियाणा फोर्स जैसे गैंग बन गए हैं। असिस्टेंट कमांडेंट भगवत सिंह हिंगड जवाहर नगर पुलिस स्टेशन के इन्चार्ज रह चुके हैं। इस पुलिस स्टेशन के इलाके में ही अधिकतर कोचिंग सेंटर पड़ते हैं। हिंगड ने बताया, ”कुछ छात्र इतने दबाव में थे कि उन्होंने ऐन परीक्षा से पहले अपने अपहरण की फर्जी कहानी गढ़ी। आखिरी दो सालों में ऐसे चार या पांच मामले सामने आ चुके हैं। इन सभी मामलों में छात्रों ने बाद में बताया कि अगर वे फेल हो जाते तो उन्हें अपने घरवालों और अध्यापकों के गुस्से का शिकार होना पड़ता।” हिंगड ने बताया, ”कई छात्र यहां छोटे मोटे झगड़ों के बाद गैंग बना लेते हैं। अधिकतर मामले गरीब पृष्टभूमि से आने वाले बच्चों से जुड़ा हुआ है, जो गैंग बनाकर मोबाइल या साइकिल चोरी जैसे अपराधों को अंजाम देते हैं। हम इस तरह के मामलों को बिना आधिकारिक शिकायत दर्ज किए हल करने की कोशिश करते हैं ताकि इन युवाओं का भविष्य बच सके।” पान की दुकानों पर मिल रहा ड्रग्स छात्रों के मुताबिक, गलत राह पर बढ़ने वाले बच्चों का पहला मुकाम ड्रग्स है।
20 साल के इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे एक स्टूडेंट ने बताया, ”अधिकतर पान की दुकानों पर भांग और स्मैक आसानी से उपलब्ध है। इनकी सप्लाई कोचिंग की तैयारी कर रहे वे स्टूडेंट करते हैं, जो सालों पहले 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोटा आए थे।” यूपी के मुरादाबाद से ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में दाखिले की तैयारी के लिए आए रोहन त्रिपाठी ने बताया, ”हम छोटे राज्यों और कस्बों से हैं। हम दिल्ली और मुंबई से आए बच्चों से मेलजोल नहीं बढ़ाते क्योंकि वे बहुत एटीट्यूट दिखाते हैं। हमारे सीनियरों ने बिहार टाइगर और हरियाणा फोर्स जैसे ग्रुप बनाए हैं ताकि मुश्किल के वक्त में वे हमारी मदद कर सकें। लेकिन आप उन बड़े भाइयों की मदद लेंगे तो वे उम्मीद रखेंगे कि उनकी लड़ाइयों में भी हम शामिल हों। इसलिए मैं दूरी बनाकर रखने की कोशिश करता हूं। ” चुकानी पड़ती है बड़ी कीमत कोटा में द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में अधिकतर छात्रों ने बताया कि वे इस बात से बहुत भार महसूस करते हैं कि उनके माता-पिता ने उन पर काफी पैसे खर्च किए हैं।
मध्य प्रदेश के रहने वाले 16 साल के प्रतीक मोटवानी ने कहा, ”मेरे घरवाले कभी सीधे तौर पर पैसे का जिक्र तो नहीं करते लेकिन वे अक्सर कहते हैं, बेटा! एक बार में निकालना (प्रवेश परीक्षा पास करना) है।” वहीं, पुलिसवालों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कोटा का अमानवीय माहौल भी समस्या को और बढ़ा रहा है। यहां सुबह से लेकर शाम तक छात्रों से हर तरह की सुविधाओं के लिए पैसे ऐंठे जाते हैं। छात्रों का कहना है कि दो साल के कोचिंग कोर्स के लिए ट्यूशन फीस 1 लाख रुपए है और ये तो महज एक शुरुआती कीमत है। प्रतीक ने बताया, ”आपको एक छोटे से कमरे के लिए महीने के 3 हजार रुपए खर्च करने होते हैं। अगर फ्लैट हो तो भाड़ा 25 हजार रुपए महीने तक चला जाता है। यहां कई तरह के व्यंजन परोसेने वाली टिफिन सर्विसेज भी हैं। वहीं, कुछ ऐसे मेस भी हैं जो पानी जैसी पतली दाल परोसते हैं। मेस सर्विस वाले बस आपका पैसा चाहते हैं। खाना बेहद खराब होता है। अधिकतर वक्त तो मैं बाहर सड़क पर खाना खाता हूं।” मनोरंजन के महंगे साधन पढ़ाई के भार से दबे इन स्टूडेंट्स के लिए मनोरंजन के भी बेहद सीमित साधन हैं। और तो और, ये बेहद मंहगे भी हैं।
बिहार के मोतिहारी से आए अभिलाष शर्मा ने बताया, ”कोचिंग सेंटरों से सटी सड़कों पर कई साइबर कैफे और गेम जोन हैं, जो 2500 से 5000 रुपए महीना वसूलते हैं। छोटे कस्बों से आए बच्चों के लिए यह एक बड़ी रकम है। हमारे कई दोस्त ऐसी जगहों पर जाते हैं, लेकिन हम इसका खर्च नहीं उठा सकते।” अधिकतर प्राइवेट हॉस्टलों में इंटरनेट सर्विस न होने और साइबर कैफे में ऊंची कीमत वसूले जाने की वजह से बच्चों ने एक नया रास्ता निकाला है। द इंडियन एक्सप्रेस ने पाया कि जवाहर नगर इलाके में शाम 7 बजे के बाद जब कोचिंग सेंटर बंद हो जाते हैं, सैकड़ों स्टूडेंट्स यहां लगे रिलायंस के नए टावर के आसपास इकट्ठे हो गए। रिलायंस यहां अपनी 4 जी सर्विस जांचने के लिए फ्री मूवी डाउनलोड की सुविधा दे रही थी। शर्मा ने बताया कि मैं यहां हफ्ते में एक बार आता हूं ताकि मेरे दोस्त के फोन पर कुछ फ्री टीवी सीरियल्स डाउनलोड कर उन्हें बाद में देख सकूं। लड़के-लड़कियों के मिलने और वॉट्सऐप-फेसबुक के इस्तेमाल पर पाबंदी कोचिंग सेंटरों में मोबाइल फोन पर वॉट्सऐप और फेसबुक के इस्तेमाल की मनाही है।
इसके अलावा, यहां लड़के और लड़कियों का आपस में बातचीत करना भी सही नहीं माना जाता। यहां तक कि कोचिंग सेंटरों से इनके बाहर निकलने का रास्ता भी अलग-अलग है। एलन करियर इंस्टीट्यूट के एक स्टूडेंट ने बताया, ”अगर गार्ड ने किसी लड़के और लड़की को साथ में देख लिया तो उनके फोन ले लिए जाते हैं और उनकी काउंसिलिंग की जाती है।” कोचिंग सेंटर के तीन किमी के परिधि में सिर्फ एक ही जगह ऐसी है जहां लड़के और लड़की आपस में बातचीत कर सकते हैं। यह जगह है सिटी मॉल में मैकडोनल्ड्स का आउटलेट। कोटा के एकलौते मॉल में बना यह आउटलेट विभिन्न कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियों से गुलजार रहता है। इन बच्चों को इनके अलग-अलग यूनिफॉर्म की वजह से आसानी से पहचाना जा सकता है। हालांकि, जब उनसे बातचीत करने की कोशिश की गई तो वे बेहद सतर्क हो गए। उन्होंने कहा, ”आप हमारे नाम जानना क्यों चाहते हैं? क्या आप इंस्टीट्यूट से हो?” एक अन्य स्टूडेंट ने कहा, ”प्लीज हमारे बारे में किसी से कुछ मत बताना। हम वादा करते हैं कि हम शाम 8 बजे तक अपने हॉस्टल वापस लौट जाएंगे।”
साभार- http://indianexpress.com/ से