रेलवे की दिक्कतों का यूं तो कोई अंत नजर नहीं आता लेकिन अगर आप रेलगाडिय़ों की संख्या को तार्किक नहीं बनाते तब तक उनका कोई समाधान होता नहीं दिखता।
भारत में कितने रेलवे स्टेशन हैं? अनोखे ढंग से देखें तो बहुत होंगे, इसका जवाब सीधा नहीं है क्योंकि 'स्टेशन' की कोई सार्वभौमिक परिभाषा है ही नहीं। किसी हॉल्ट को कैसे गिना जाएगा, जो शायद व्यावसायिक कारणों से नहीं बल्कि परिचालन कारणों से अस्तित्व में हो? क्या परित्यक्त स्टेशनों की गिनती किसी के वश में है? जिस स्टेशन से दो अलग-अलग गेज वाली लाइनें गुजरती हैं, उसकी गिनती कहां करेंगे? और आपने महाराष्टï्र में श्रीरामपुर और बेलापुर स्टेशनों के नाम तो सुने होंगे? रेल लाइन के एक छोर वाला स्टेशन श्रीरामपुर है तो दूसरे छोर वाला बेलापुर।
फिर भी भारतीय रेलवे (आईआर) की वेबसाइट पर 7,112 'आधिकारिक' स्टेशनों का आंकड़ा दर्ज है, ऐसे में 8,000 से ज्यादा स्टेशनों का आंकड़ा गलत नहीं लगता। जरूरी नहीं कि सभी स्टेशनों का बराबर महत्त्व हो और उनका ए1 से लेकर एफ श्रेणी के बीच वर्गीकरण किया गया है। यह एक नियत परिभाषा है लेकिन हमें उसमें जाने की जरूरत नहीं। यह कहना उपयुक्त होगा कि ए1, ए और बी श्रेणी के स्टेशन अन्य की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। ए1 और ए श्रेणी के स्टेशनों की संख्या 407 तक जाती है। अगर हम स्टेशन विकास पर संसाधनों के खर्च की प्राथमिकता तय करें तो ये वास्तव में वे स्टेशन हैं, जिन पर हमें ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सीएसटी मुंबई, भारतीय रेलवे को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला स्टेशन है, जिसके बाद बारी आती है दादर रेलवे स्टेशन की।
चलिए एक ट्रैक के रूप में ऐसे रेलवे रूट (मार्ग) के बारे में सोचते हैं जो आपको एक्स स्थान से वाई स्थान तक ले जाता है। कुछ स्टेशन जंक्शन हैं, जहां एक स्टेशन से एक से ज्यादा मार्ग गुजरते हैं। जंक्शन कहलाए जाने की शर्त यही है कि एक स्टेशन से कम से कम तीन मार्ग गुजरने चाहिए। जंक्शन में स्विचिंग और सिग्नलिंग की अतिरिक्त समस्याएं भी होती हैं।
मोटे तौर पर तकरीबन 300 रेलवे जंक्शन हैं। किस जंक्शन से सबसे ज्यादा मार्ग गुजरते हैं? एक व्यस्त रेलवे स्टेशन को लेकर स्वाभाविक प्रतिक्रिया कारगर नहीं होगी। 'व्यस्त' या टर्मिनेटिंग स्टेशन जंक्शन श्रेणी में नहीं आते। वास्तव में मथुरा ऐसा जंक्शन है, जहां से सबसे अधिक मार्ग (6 ब्रॉड गेज और एक मीटर गेज) गुजरते हैं। सामान्य तौर पर 23 छोटे और सामान्य स्टेशनों के संकुलों पर एक जंक्शन होता है क्योंकि ऐसी स्थिति में ही एक मार्ग दूसरे मार्ग को काटेगा। नागपुर और अंजी स्टेशन अपवाद हैं, जहां दो स्टेशनों के बीच दूरी महज तीन किलोमीटर की है। सामान्य तौर पर दो स्टेशनों के बीच दूरी छह से आठ किलोमीटर और दो जंक्शनों के बीच दूरी 100 से 150 किलोमीटर की होती है।
अपनी बात को समझाने के लिए मैं एक साधारण मिसाल का इस्तेमाल करूंगा। जरा दो सामान्य स्टेशनों के बीच एक सिंगल लाइन ट्रैक के बारे में सोचिए। वहां एक समय में आने या जाने वाली दिशा में कोई एक रेलगाड़ी ही लाइन पर हो सकती है।
दो स्टेशनों के बीच इस एकल लाइन वाले साधारण से दृष्टïांत को तकनीकी शब्दावली में ब्लॉक स्टेशन कहा जाता है। वहां सिग्लन परिचालन और निर्णय लेने, चालक के दृष्टिïकोण और प्रतिक्रिया और ब्लॉक स्टेशन से रेलगाड़ी को हरी झंडी मिलने, सभी में वक्त खर्च होगा। चलिए मान लीजिए इस पूरी कवायद में 10 मिनट ही लगते हैं। फिर इस रेलगाड़ी के लिए तार्किक गति क्या होगी? याद रखिए कि यह कोई शताब्दी या राजधानी नहीं है। यह दोनों स्टेशनों पर रुकती है।
इसका जवाब यही होगा कि 30 किलोमीटर प्रति घंटे से ऊपर की कोई रफ्तार असंभव है। अगर साधारण गणना के लिहाज से हम दो स्टेशनों के बीच की दूरी को 10 किलोमीटर लें तो प्रति रेलगाड़ी (इसमें 10 मिनट और जोड़ लीजिए) आधा घंटा लगेगा। इस प्रकार हर घंटे दो रेलगाडिय़ां चल सकती हैं और रोजाना 48 रेलगाडिय़ां, यह तब हो सकता है, जब इसमें रेल लाइन के रखरखाव को न जोड़ा जाए। इस ब्लॉक श्रेणी की यही क्षमता है। मैं हाल में एक सांसद महोदय से मिला, जो ज्यादा स्टॉप, ज्यादा रेलगाडिय़ां और समय को लेकर ज्यादा पाबंदी चाहते थे। यह तार्किक रूप से असंभव है। भारतीय रेलवे के 1,219 ब्लॉक स्टेशनों में से 233 अपनी सौ फीसदी या 120 फीसदी क्षमता, 193 स्टेशन 120 से 150 फीसदी क्षमता और 66 स्टेशन 150 फीसदी क्षमता से भी अधिक पर परिचालन कर रहे हैं।
यह खासतौर से ऊंचे घनत्व वाले नेटवर्क, मेट्रो शहरों के बीच बेहद गंभीर है। अगर आप जोधपुर और जैसलमेर के बीच अधिक और तेज गति वाली रेलगाडिय़ां चाहते हैं तो यह कभी समस्या नहीं बनने वाली और आज भी इसमें कोई दिक्कत नहीं। मगर ऐसे मार्ग पर लोग अधिक रेलगाडिय़ां भी नहीं चाहते। कुछ अव्यवहार्य मार्गों का अनसुलझा मुद्दा भी है। कुछ मार्गों पर चुनिंदा रेलगाडिय़ां ही हैं। लेडो और टूंडला जैसी जगहें भी हैं। दिल्ली में ही दिल्ली रिंग रेलवे पर स्टेशन मौजूद हैं।
मगर ऊंचे घनत्व वाले नेटवर्क पर विकल्प सीमित ही हैं। उनमें से कुछ विकल्प हैं:
1. सिग्नलिंग सहित क्षमता सुधारने के लिए तकनीक का उपयोग कीजिए (ब्लॉक को श्रेणियों में विभक्त कर ऑटोमेटिक सिग्नलिंग से क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।)
2. जंक्शनों के बीच गाडिय़ों को रोकना कम किया जाए ताकि सामान्य स्टेशनों से गुजरने के दौरान रेलगाड़ी अपनी गति को कायम रख सके।
3. तकरीबन 5,000 किलोमीटर की रेल लाइन की हालत संभवत: बेहद खराब है। प्रति किलोमीटर 10 रुपये के हिसाब से जरूरी 50,000 करोड़ रुपये जुटाइए। मगर चूंकि ये खराब लाइनें ऊंचे-घनत्व वाले नेटवर्कों पर हैं, इसलिए वे राष्ट्रीय प्राथमिकता परियोजनाओं वाली श्रेणी में शामिल नहीं हो पातीं और इस तरह उनके लिए सकल बजट सहायता (जीबीएस) उपलब्ध नहीं हो पाती है।
4. जब यह बात आती है कि संसाधनों को कैसे जुटाया जाए तो रेलगाडिय़ों की संख्या को तार्किक बनाया जाना चाहिए। मैंने कहा तार्किक, मैंने उन्हें बंद करने के लिए नहीं कहा। अगर ढुलाई रेलगाडिय़ों को छोड़ दें तो क्या रोजाना 13,000 यात्री गाडिय़ों की दरकार है। आखिर आठ-नौ डिब्बों वाली यात्री रेलगाडिय़ों को चलाने की क्या तुक है? मालढुलाई रेलगाडिय़ों के लिए ऐसे विलय और एकीकरण की प्रक्रिया पहले ही की जा चुकी है और कुछ डबल्ड रेलगाडियों में तो 120 से ज्यादा डिब्बे होते हैं।
अगर सभी रेलगाडिय़ों (राजधानी/ दुरंतो/मेल-एक्सप्रेस और सामान्य) में 24 डिब्बों का एकमान्य तरीका अपनाया जाए तो एकीकरण के कारण कोई अतिरिक्त कमी नहीं होगी। संभवत: इलाहाबाद-कानपुर-वाराणसी-मुगलसराय मार्ग के साथ शुरुआत की जा सकती है, जो क्षमता समस्या का सूचक है क्योंकि इस मार्ग से रोजाना 400 रेलगाडिय़ां गुजरती हैं।
मगर भारतीय रेलवे विकल्प 1 और 2 को आजमाने में हिचकता है और वह 50,000 करोड़ रुपये की गैर-जीबीएस रकम हासिल नहीं कर सकता।
साभार- बिज़नेस स्टैंडर्ड से