राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण विभाग (डीसीआर) और एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन, (एवीए जिसे बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के नाम से भी जाना जाता है, ने जयपुर में एक संयुक्त राज्यस्तरीय कार्यशाला में बाल विवाह और बाल यौन शोषण की रोकथाम के उपायों पर मंथन किया। बचपन बचाओ आंदोलन देश में बाल विवाह के खात्मे के लिए काम कर रहे बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) का गठबंधन सहयोगी है। सीएमएफआई 160 गैरसरकारी संगठनों का एक गठबंधन है जो देश में बाल विवाह की ऊंची दर वाले 300 जिलों में इसके खात्मे के लिए जमीनी अभियान चला रहा है।
कार्यशाला में राजस्थान से 2030 तक बाल विवाह के खात्मे और लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों, बाल विवाह के खिलाफ कानूनों को मजबूत करने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत नियमों की समीक्षा और बाल विवाह व यौन शोषण के शिकार बच्चों की सुरक्षा और उनके पुनर्वास के उपायों को मजबूती देने पर विचार किया गया। कार्यशाला में राजस्थान हाई कोर्ट के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) विजय कुमार व्यास, राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (आरएससीपीसीआर) की सदस्य संगीता गर्ग, राजस्थान राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण (आरएसएलएसए) की उप सचिव स्वाति राव और जयपुर उत्तर की डीएसपी आईपीएस अफसर राशी डोगरा और गैरसरकारी संगठनों के सदस्यों ने हिस्सा लिया।
आरएससीपीसीआर के पूर्व सदस्य एवं वर्तमान में गायत्री सेवा संस्थान के निदेशक डॉ. शैलेंद्र पंड्या और नानूलाल प्रजापति ने कार्यशाला के विभिन्न सत्रों का संचालन किया।
राजस्थान हाई कोर्ट के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) विजय कुमार व्यास ने कहा, “राजस्थान में अब बिना देर किए 25.4 प्रतिशत की बाल विवाह दर को शून्य पर लाने की जरूरत है। राजस्थान के संदर्भ में बाल विवाह पर काबू पाने के लिए जातियों की पंचायतों के मुखिया और धर्मगुरुओं से अपील करने की जरूरत है कि वे समाज में अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए लोगों से कहें कि बाल विवाह नहीं करें क्योंकि यह बच्चों के भविष्य के लिए नुकसानदेह है। साथ ही कानून का भी व्यापक प्रचार प्रसार हो ताकि लोगों में इसका भय व्याप्त हो। लोगों को पता होना चाहिए कि बाल विवाह कानूनन अपराध है।”
आईपीएस अफसर राशी डोगरा ने कहा, “बाल विवाह एक जघन्य अपराध है। लेकिन इसे रोकने में असली चुनौती यह है कि अक्सर ये अपराध करने वाले बच्चों के माता-पिता ही होते हैं और बच्चे विरोध नहीं कर पाते। एक बच्चे को बाल विवाह विवाह के नर्क में झोंकना उसके मूल अधिकारों का हनन है। बाल विवाह सिर्फ एक अपराध नहीं है। इसके साथ पीसीएमए, पॉक्सो और ट्रैफिकिंग के मामले भी जुड़ जाते हैं। पुलिस अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास कर रही है कि बाल विवाह के मामलों में एफआईआर दर्ज की जाए और पीड़ित बच्चों को न्याय मिले।”
बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने राजस्थान में बाल विवाह की ऊंची दर पर चिंता जताई, लेकिन साथ ही इसे रोकने की दिशा में राज्य सरकार के प्रयासों की प्रशंसा भी की। उन्होंने कहा, “उन्होंने कहा कि यह देखना सुखद है कि राजस्थान सरकार बाल विवाह की चुनौती को गंभीरता से लेते हुए इसे रोकने के लिए अपनी तरफ से पूरे प्रयास कर रही है। बाल विवाह की रोकथाम के लिए सरकार और नागरिक संगठनों के समन्वित प्रयासों का असर जमीन पर दिखने लगा है। समुचित प्रोत्साहनों, निगरानी और समन्वित प्रयासों से हम अवश्य इस चुनौती से पार पाने में सफल होंगे। इस तरह की कार्यशालाओं एवं परामर्श सत्रों से पता चलता है कि राज्य सरकार बाल विवाह मुक्त राजस्थान बनाने की अपनी प्रतिबद्धता के प्रति कितनी गंभीर है।”
बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) राज्य सरकारों के सहयोग व मार्गदर्शन से देश को 2030 तक बाल विवाह मुक्त बनाने के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहा है। पिछले वर्ष 16 अक्टूबर को राजस्थान सरकार के पंचायती राज विभाग, पुलिस और शिक्षा विभाग जैसे कई महकमों ने अधिसूचना जारी कर अपने कर्मचारियों व अधिकारियों से बाल विवाह मुक्त राजस्थान अभियान में शामिल होने व बाल विवाह के खिलाफ शपथ लेने का निर्देश जारी किया था।
बताते चलें कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-2021) के अनुसार देश में 20 से 24 साल की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष का होने से पूर्व ही हो गया था जबकि राजस्थान में 25.4 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पूर्व हो जाती है जो कि राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है।