वरिष्ठ पत्रकार और टीवी टुडे के सलाहकार संपादक राजदीप सरदेसाई का कहना है कि वर्ष 2014 के चुनावों में प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति का विश्लेषण करने के बजाय मीडिया उनके लिए चीयरलीडर्स के रूप में काम कर रही थी।
सरदेसाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आयोजित एक सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। सेमिनार में उन्होंने कहा कि चुनावों में नरेंद्र मोदी ने काफी चतुराई से मीडिया का इस्तेमाल किया क्योंकि वे जानते थे कि प्राइम टाइम में इसके द्वारा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बनाई जा सकती है।
सरदेसाई ने कहा, ‘मीडिया के बारे में भी यही सच है, खासकर टीवी ने भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नेतृत्व की क्षमता पर गंभीरता से सवाल उठाने की अपनी क्षमता कहीं खो दी थी। जिस मोदी के गुजरात मॉडल की लगातार चर्चा होती है, उसे वास्तव में धरातल पर कहीं जांचा ही नहीं गया था।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत में पहले मतदाता संसद सदस्य और विधान सभा सदस्यों का चुनाव करते थे लेकिन यह पहला मौका था जब हमने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए वोट दिया।
उन्होंने स्वीकार किया कि मोदी की बातों पर भरोसा करते हुए मीडिया मोदी प्रोपेगेंडा मशीन अर्थात मोदी के पक्ष में प्रचार करने वाली मशीन बनकर रह गई थी। सरदेसाई ने कहा, ‘भारत में 1952 और 1977 के चुनावों के बाद वर्ष 2014 का आम चुनाव कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण रहा। इन चुनावों में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा और भारतीय जनता पार्टी को शानदार जीत मिली। इन चुनावों में नए तरह का अभियान भी देखने को मिला जिसने राजनीति के सभी नियमों को ध्वस्त कर दिया।’
उन्होंने कहा कि राजनीतिक रूप से 2014 के चुनाव काफी अच्छे रहे। इन चुनावों में उन्होंने कई बड़ी न्यूज स्टोरी और सभी प्रमुख राजनेताओं के बीच से स्टोरी निकालीं। वर्ष 2012 की शुरुआत का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जब नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार गुजरात का चुनाव जीता था, तब पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और यूपीए सरकार घोटालों में फंसी थी। सरदेसाई ने उस समय की स्थिति बताते हुए कहा कि उस साल मोदी की जीत को यह बहाना मिल गया था। उन्होंने कहा, ‘यह एक बड़ा कारण था जिसने मोदी को यह सफलता दिलाने में मदद की और यह पहला मौका था जब चुनाव टेलिविजन स्क्रीन पर लड़े गए थे।’ उन्होंने कहा, ‘मीडिया ने मोदी के पक्ष में हवा नहीं बनाई बल्कि हवा के रुख को मोदी की ओर मोड़ दिया।’
उन्होंने कहा, ‘मोदी को सत्ता में लाने का एक और कारण यह भी रहा कि उन्होंने लोगों से अच्छे दिन ((good days)) लाने का वादा किया था जबकि मेरा मानना है क्या मोदी अपने कहे गए वादों को वास्तव में पूरा करेंगे।’ सरदेसाई ने कहा, ‘ मेरा मानना है कि 2014 के चुनाव परिणामों की पटकथा तो वर्ष 2011 में उसी समय लिख गई थी जब अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम शुरू की थी और मीडिया ने इसे जोरदार कवरेज दी थी।’
उन्होंने कहा, ‘मुझे याद है कि उस समय तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने एयरपोर्ट पर बाबा रामदेव को रिसीव करने (उनका स्वागत करने) के लिए मीडिया के साथ बैठक छोड़ दी थी।’ उस समय कांग्रेस जानती थी कि एंटी करप्शन मूवमेंट यूपीए सरकार को गिरा देगा। कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी को आदेश दिए थे कि वह बाबा रामदेव के साथ बैठक कर उन्हें प्रस्तावित उपवास से रोकने को कहें। सरदेसाई ने कहा, ‘पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चुप्पी साध ली थी और ऐसे में राजनीतिक शून्यता उत्पन्न हो गई थी।’
इसके साथ ही सरदेसाई ने कहा कि हालांकि भाजपा में भी एक तरह से राजनीतिक शून्यता आ गई थी। उस समय सबसे बड़ा सवाल था कि लालकृष्ण आडवाणी के बाद अगला नेता कौन होगा। उन्होंने कहा कि मोदी शायद इस स्थिति को 2007 में देख चुके थे और निर्णय ले चुके थे कि वे किसी दिन भाजपा में प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे।
सरदेसाई ने कहा कि मोदी को राहुल गांधी की अयोग्यता का भी काफी फायदा मिला। उन्होंने कहा, ‘राहुल गांधी पार्टी को कोई महत्वपूर्ण विजन देने में फेल रहे और उनके नेतृत्व में चुनावों में लगातार हार मिलना जारी रहा। ऐसे में राहुल गांधी अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे। इसके अलावा जमीन स्तर पर काम कर रहे पार्टी नेताओं से राहुल गांधी और उनकी टीम ने दूरी बना रखी थी।’ सरदेसाई ने कहा, ‘अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए UPA II के कार्यकाल में राहुल गांधी को मंत्री बनाया जाना चाहिए था और अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान उन्हें आंदोलनकारियों के बीच जाकर लोकपाल बिल लाने का वादा करना चाहिए था। कितना आश्चर्यजनक है कि जब निर्भया कांड समचे देश को अपनी गिरफ्त में ले चुका था, तब भी वहां पर राहुल गांधी नहीं थे।’
उन्होंने यह भी कहा कि मोदी युवाओं के कारण भी चुनाव जीते क्योंकि उन्हें 37 प्रतिशत वोट 18-33 आयुवर्ग के लोगों के मिले। सरदेसाई ने कहा कि यह बताना भी मुश्किल नहीं है कि मोदी भारत के बदलते स्वरूप को समझ चुके थे। वे युवाओं और मोबाइल सोसायटी का महत्व समझ चुके थे। इसके अलावा उन्होंने उत्साहपूर्वक, फोकस और बहुमूल्य अभियान चलाए। इसमें उनकी मदद मीडिया ने और सत्ताधारी सरकार की नाकामियों ने भी की। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हर साल करीब 1.2 मिलियन युवा जॉब मार्केट में प्रवेश कर रहे हैं और वह चाहते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर हो, जिससे उन्हें आसानी से अच्छी नौकरी मिल सके।
सरदेसाई ने मुसलिम मतदताओं से वोट बैंक न बनने की सलाह देते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियां उन्हें बहकाने का काम कर रही हैं। सरदेसाई ने एएमयू में उन्हें आमंत्रित करने के लिए शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि वह इस विश्वविद्यालय में दोबारा आना चाहेंगे। इस मौके पर सरदेसाई ने विद्यार्थियों और शिक्षकों के सवालों का जवाब भी दिया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ले. जनरल जमीर उद्दीन शाह ने कहा, सरदेसाई की किताब ‘2014: द इलेक्शन दैट चेंज्ड इंडिया ने मुझे आम चुनावों के बारे में समझने में काफी मदद की है। इससे मुझे समझ में आया है कि भाजपा के चुनावी अभियान ने कैसे युवाओं को अपने साथ जोड़े रखा।
इससे पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ब्रिगेडियर एस अहमद (सेवानिवृत्त) ने सरदेसाई के कॅरियर पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एएमयू में उनका आना काफी सम्मान की बात है और उनके भाषण से विद्यार्थियों को काफी सीखने को मिलेगा।
साभार समाचार4मीडिया से