ऐसे वक्त जब राजनीतिक दलों की फंडिंग को लेकर बवाल मचा हुआ है, एक नई किताब में दावा किया गया है कि राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए एक बेहद विवादित फैसला किया था।
किताब में कहा गया है कि राजीव गांधी चाहते थे कि सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति करने वालों से मिला कमिशन यानी दलाली इकट्ठी की जाए और इस फंड का इस्तेमाल 'कांग्रेस के उन खर्च के लिए किया जाए, जिनसे बचा नहीं जा सकता।'
हाल में रिलीज किताब 'अननोन फैसेट्स ऑफ राजीव गांधी, ज्योति बसु एंड इंद्रजीत गुप्ता' सीबीआई के पूर्व निदेशक डॉ. ए पी मुखर्जी ने लिखी है। उन्होंने यह दावा 1989 में राजीव के साथ हुई बातचीत पर आधारित है।
देश भर में जुटाया गया पैसा
संयोग से राजीव उस वक्त बोफोर्स तोप से जुड़े घोटाले में फंए गए और सत्ता से भी बेदखल हुए। मुखर्जी ने लिखा है, "राजीव गांधी को यह साफ पता था कि ज्यादातर सैन्य डीलरों की ओर से कमिशन नियमित रूप से दिया जाता है, जिसकी एकाउंटिंग ठीक से नहीं होती। वह चाहते थे कि इस तरह का पैसा एकत्र कर एकाउंटिंग की जाए।"
उन्होंने लिखा है, "इसके बाद देश भर में पार्टी के सभी नेताओं ने बड़े पैमाने पर पैसा एकत्र करना शुरू कर दिया।" मुखर्जी के मुताबिक राजीव को पता लगा था कि ज्यादातर सैन्य खरीदों में बड़े पैमाने पर कमिशन दिया जा रहा है। कई बार इनमें कुछ मंत्रियों, मध्यस्थों और नौकरशाहों की मिलीभगत शामिल रहती थी।
सीबीआई के पूर्व निदेशक के मुताबिक राजीव ने इस समस्या पर अपने करीबी लोगों और सलाहकारों के साथ विचार किया। इसमें यह सलाह दी गई कि मध्यस्थों को दिए जाने वाले कमिशन पर पाबंदी लगा दी जानी चाहिए, लेकिन सैन्य सामग्री के आपूर्तिकर्ता से मिलने वाली दलाली को पार्टी के लिए इस्तेमाल करने की सलाह दी गई।