Saturday, November 23, 2024
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रामराज्य के शिल्पी

आज लगता है जैसे पूरा देश राम-मय हो गया है। सब जगह राम मंदिर और उसमें रामलला की प्रतिष्ठा की बात हो रही है। जो कभी सपना था, वह अब सच्चाई बन चुका है। लेकिन क्या यह अंतिम लक्ष्य है? मेरा उत्तर है नहीं। भव्य राम मंदिर उस महायात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव भर है जिसका अंतिम लक्ष्य रामराज्य की स्थापना से कम कुछ और नहीं होना चाहिए।

प्रश्न उठता है कि रामराज्य अर्थात क्या? इसको इस तरह भी पूछा जा सकता है कि आखिर रामराज्य में ऐसी क्या विशेषता है जिसके कारण इसे हम अपना लक्ष्य बनाएं। इस प्रश्न का उत्तर #गोस्वामी_तुलसी_दास जी ने बहुत अच्छे से दिया है। राम राज्य की विशेषता बताते हुए वे कहते हैं, “नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना, नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।” इसके आगे वे कहते हैं, “दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा, सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।”

इन पंक्तियों को पढ़ते ही हमारे तार्किक मन में विचार आता है, कि क्या यह कभी संभव होगा? क्या हम #राम_राज्य के उदात्त लक्ष्य को सच में प्राप्त कर सकते हैं? क्या हमारा संविधान रामराज्य बनाने की अनुमति देता है? जैसे-जैसे हम तुलसीदास जी की पंक्तियां पढ़ेंगे, हमारे मन में सवालों और शंकाओं की एक के बाद एक लहर आती रहेगी।

इस सवालों और शंकाओं पर टिप्पणी करने की बजाए मैं एक बार फिर आपको राम जन्मभूमि आंदोलन के दौर में ले चलता हूं। आप को याद होगा कि जब राम मंदिर बनने की दूर-दूर तक संभावना नहीं थी, उस समय भी अयोध्या के #कारसेवक पुरम् में राम मंदिर के शिला स्तंभ तराशे जा रहे थे। प्रतिदिन सुबह-सुबह कारीगर अपनी छेनी हथौड़ी लेकर काम पर लग जाते थे। राम मंदिर कब बनेगा, कैसे बनेगा, बनेगा भी या नहीं बनेगा, ऐसे प्रश्नों से उनके हाथ शिथिल नहीं होते थे।

मैं जिन्हें नव-तीर्थ कहता हूं वे वास्तव में रामराज्य की देश भर में फैली कार्याशालाएं हैं और जिन्हें नव-देव कहता हूं, वे सही अर्थों में भावी रामराज्य के शिल्पी हैं। जब कोई नदियों को सदानीरा बनाने का प्रयास करता है, #गो_संवर्धन की बात करता है, शिक्षा, वानिकी, अग्निहोत्र और प्रकृति की बात करता है तब वास्तव में वह भविष्य के राम राज्य के शिलाखंड तैयार कर रहा होता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि जिस दिन पर्याप्त मात्रा में ऐसे शिलाखंड तैयार हो जाएंगे, उस दिन राम राज्य का सपना, सपना नहीं सच्चाई बन जाएगा।

हमारे आस-पास #रामराज्य के शिल्पी बिखरे पड़े हैं। हम सभी का कर्तव्य है कि हम ढूंढकर उन तक पहुंचे। उनके काम में हाथ बंटा सकें तो बहुत अच्छा, नहीं तो कम से कम उनके काम के बारे में जानें और उसकी अपने-अपने समूहों में चर्चा करें। हमारे एक साथी *विमल कुमार सिंह* ऐसे शिल्पियों का एक डाटाबेस तैयार कर रहे हैं। इस काम को करने के लिए उन्होंने अपनी एक छोटी सी टीम भी तैयार कर ली है। राम राज्य के शिल्पियों को ढूंढने और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होने के उनके प्रयास में हम सभी लगें, ऐसी मेरी इच्छा है।

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