Saturday, November 23, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोरामेश्वर शर्मा ’रामू भैया’ के सृजन में उभरते आध्यात्मिक संचेतना के स्वर

रामेश्वर शर्मा ’रामू भैया’ के सृजन में उभरते आध्यात्मिक संचेतना के स्वर

जियो तो ऐसे जियो
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा

बाल बुढ़ापा मध्य जवानी होती है,
जातक जीवन जटिल कहानी होती है।
अनसुलझे प्रश्नों की स्याही रातों में,
ज्योतिष से ही भोर सुहानी होती है।
सृष्टा ने जो रची आपकी जन्म कुंडली,
भूल भुलैया चौक भुलानी होती है।
द्वादश राशि ग्रहों और नक्षत्रों में,
ब्रह्मा विष्णु रूद्र भवानी होती है।
ऋषियों के इस दिव्य ज्ञान की रामू जी,
सारी दुनिया सदा दीवानी होती है।

ऐसी धीर गंभीर रचनाओं के सृजनकार 75 बसंत देख चुके सरस्वती-पुत्र रामेश्वर शर्मा “रामू भैया” साहित्य-साधना में विगत् छः दशकों से राजस्थानी तथा हिन्दी भाषा में निरंतर लेखन तथा प्रकाशन से जुड़े हुए हैं तथा उनके लेखन की प्रतिभा गद्य तथा पद्य दोनों ही विधाओं में समान रूप से आलोकित हुई है। इन्हें साहित्य एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में ’रामू भैया’ के नाम से संपूर्ण राजस्थान में जाना जाता है।

उक्ति है उम्र 55 की दिल बचपन का इन पर सटीक बैठती है। ये वास्तविक जीवन में सदैव हंसते-हंसाते रहने वाले हैं और हास्य व्यंग्य से माहोल को सरस बनाए रखने वाले बहुत ही विनम्र स्वभाव के धनी हैं। लोक दिखावे और प्रचार – प्रसार से दूर रहकर स्वांत सुखाय सृजन में लीन रहते हैं।

साहित्यकार होने का दंभ छू तक नहीं गया है। अपने मुंह मिया मिठ्ठू बनना इनकी आदत नही। कहने लगे आप अखबार में छाप दोगे, किताब में छाप दोगे इससे क्या हो जायेगा ? बहुत आग्रह करने पर बमुश्किल अपनी साहित्यिक यात्रा के बारे में जानकारी देने के लिए राजी हुए। इनके लेखन की धारा मूलत: सामयिक विषय और आध्यात्म है। दैनिक लिखना इनकी आदत बन चुकी है जिससे इनकी लेखन की क्षुधा शांत होती है। यूं ये कक्षा 9 से स्कूल की बाल सभाओं में लिख कर सुनाया करते थे। जैसे-जैसे लिखते रहे लेखन में परिपक्वता आती गई। समय के साथ-साथ बड़े साहित्यकारों के सानिध्य में लेखन में निखार आया। इनके सृजन का भी अनूठा अंदाज है।

कहते हैं कि हर दिन सामयिक अथवा आध्यात्मिक विषय संबंधी अनेक चित्र सामने आते हैं, जो भी चित्र मन को भा जाता है उसी चित्र के आधार पर कलम चलने लगती है। चित्रों को आधार बना कर लिखने की इनके कौशल के एक बानगी देखिए “आषाढ़ी के आखर चूर्ण” में….
लो भैयाजी हुई अतीती,कृष्णपक्ष की बात आरम्भ होगई आज से,शुक्ल पक्ष की रात
शुक्ल-पक्ष की रात , उजाले का पखवाड़ा पंद्रहदिन का शेष बचा है,बरसाती आषाढ़ा
(2)
इन्द्रदेव के साथ आमजन,वाला यह संवाद
इसमें अंतर्निहित हमें, “चेतावनी” निर्विवाद
बुरी तरह से इन्द्रदेव ने,खा कर हम पर खार
बातचीत में किया बन्धुओ,जब्बर वाकप्रहार
– सारांश –
दो पेड़ों से साइन वाली, लिखकर मौलिक बात कार्टूनिस्ट ने पिघला दिये, ” पथरीले “जज़्बात

ये ऐसे साहित्यकार हैं जो सभी को बिना तेल में तले साहित्य में माघ के मंगोड़े और पौष के पकोड़े परोसने में सिद्धहस्त हैं। इनके ये मंगोडे आलू, प्याज और दाल के नहीं होते वरन आध्यात्म और साम्यिकता की चासनी में लिपटे होते हैं। पिछले पांच साल प्रतिदिन साहित्य के इन मगोड़ों को पाठकों को परोस रहे हैं। ऐसी ही एक रचना की बानगी देखिए ………..
माघ शुक्ल तिथि पंचमी, बुध की भोरसुहानी
मिस्टर नटखटलाल कुए पर, आया भरने पानी
आया भरने पानी, लेकर, रज्जु-डोलची संगा
उसके चरन-परस से पनघट,व्हेरहा तट श्रीगंगा
देखा जाये तो लगती यह, कान्हा की नादानी
बिना बड़े के साथ, आगया, भरने को यूँ पानी
भरने को यूँ पानी औचक, आजाये यदि तंगा
पग फिसले और हो जाये, पनघट पर ही पंगा
रामूभैया! जिसके पद से, प्रकटी गंगा महारानी
आज उसी को, यहाँ खींचना, पड़ा कुएँ से पानी

माघ के मगोड़े की तरह पौष के पकोड़े और हिंदी महीनों के नाम पर अन्य नाम रख कर कुंडलियां लिखते हैं। गज़ल, छंद, काव्य आदि विधाओं के साथ-साथ सामयिक विषयों पर लिखने में पारंगत हैं। आपने राजस्थानी भाषा में भी गजलें लिखी हैं। किसी व्यक्तित्व पर चालीसा लिखने में भी महारथ हांसिल है। राजस्थान के विद्वान साहित्यकार भगवती प्रसाद देवपुरा पर लिखी इनकी अद्भुत चालीसा एक कार्यक्रम में नाथद्वारा में मुझे भी सुनने को मिली।

राजस्थानी भाषा में गज़ल लिखने भी आपकी सानी नहीं है। इस पर कथाकार और समीक्षक विजय जोशी का अभिमत है “ऐसी 68 ग़ज़लों के संग्रह में अपने समय के सच के कितने ही आयाम हैं जो रचनाकार की अनुभूति के वे प्रमाण हैं जो उन्होंने देखे और महसूस करे। फिर चाहे वह सामाजिक सरोकार हो या पारिवारिक सन्दर्भ, मानवीय संवेदना के प्रसंग हो या आध्यात्मिक संचेतना के भाव सभी में ‘रामू भय्या’ ने अपनी दृष्टि और समझ से आस-पास के परिवेश को सहजता से उकेरा है।”

साहित्य सृजन :
कहते हैं…. ” साहित्य तो जीवन का आनंद है, इसी में स्वस्थ जीवन की ऊर्जा छिपी रहती है। उसी ऊर्जा को प्रज्वलित कर लेखक लिखता है और समाज को ’सत्य’ परिस्थिति का आभास कराता है, ’शिवम् की कल्पना को साकार कराता है तथा ’सुंदरम्’ से अभिमंडित कराता है।’’ साहित्य के क्षेत्र में आपने हिंदी भाषा में 10 कृतियां और राजस्थानी भाषा में 4 तथा
लगभग 53 कीर्ति कुसमावली चालीसा का लेखन और प्रकाशन कराया है।

साहित्यकार ओम प्रकाश शिव टिप्पणी करते हैं ” श्रोताओं तथा पाठकों के विशेष अनुरोध के कारण ही अब तक उनकी के 53 चालीसाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। केवल संत महात्मा या योगी ही नहीं अपितु देश के अनेक शूर-वीर बहादुरों तथा महापुरुषों की जीवन-गाथा से लेकर आधुनिक विषयों पर चालीसा लिखी हैं। गत् लोकसभा चुनाव के संदर्भ में लिखी गई उनकी ’चुनाव चालीसा’ को राष्ट्रीय ख्याती प्राप्त चैनलों द्वारा अनेक बार लोकहितार्थ प्रसारित भी किया गया। इनकी चालीसाओं में संक्षिप्तता, एकरूपता, संगीतात्मकता तथा माधुर्य भाव विशेष तौर पर दिखाई देता है।

आध्यात्मिक या जीवन-प्रधान चालीसा या समय विशेष पर आधारित चालीसा, सभी में इनकी विशेष लेखन-शैली प्रतिबिंबित होती है। काव्य शिल्प की दृष्टि से उनके पदों में तुकांत का मेल, आकर्षक बिंब-योजना तथा सहज-सरल शब्दों की संरचना के फलस्वरूप प्रत्येक ’चालीसा’ अपनी रस-धर्मिता से कर्णप्रिय तथा प्राणवान प्रतीत होता है।”

चालीसा के अतिरिक्त हिंदी साहित्य में आपकी प्रथम कृति “तेरे दुखड़े मेरे दुखड़े” काव्य संग्रह आई । इसके पश्चात समय-समय पर आपकी “रोकड खाते सावन के” (मुक्तक), “भादो के भगवान” (मुक्तक), पद्य कथा संग्रह “ज्योतिष के वातायान से”, “हरिद्वार से द्वार द्वार तक”,”कमसिन के मयखाने में”,”हम आबू की और चले”,”सतयुग की तैयारी कर” और “तेरा एक भरोसा राम” की कृतियों का प्रकाशन हुआ है। राजस्थानी साहित्य में आपकी कृतियां “म्हाँ सूँ असी बणी”, “चालाँ सूरज ले’र हाथ में”, “लाताँ लाताँ पींदा गळ ग्या” और “उल्टी बाताँ करै गोखड़ा” लोकप्रिय हुई हैं। इनकी कृतियां विविध सामाजिक व्यवस्थाओं पर आधारित हैं, जिनमें सामाजिक सदभावना का उल्लेख एवं विसंगतियों पर करारा प्रहार भी स्पष्ट दिखाई देता है। जीव जगत् के अनेक तथ्यों को बड़े ही सहज और सरल ढंग से अभिव्यक्त किया गया है। ईश्वर की निष्काम भक्ति और समर्पण की सहजता से अनुप्रेरित इन आध्यात्मिक गीतों से तन की शुद्धि, मन की निर्मलता का अहसास होता है।

विश्व रिकार्ड :
इनकी कविताओं का मुख्य स्वर सामाजिक जागरुकता, परस्पर सामंजस्य स्थापना तथा राष्ट्रीय भावना का प्रसार-प्रचार होने के कारण, इनका पद्य साहित्य लोक-साहित्य बनकर जन-जन की प्रेरणा का आधार बिंदु बन गया है। इनकी ’हरिद्वार से द्वार-द्वार’ नामक गीत-पुस्तिका का लोकार्पण सुप्रसिद्ध योग गुरु स्वामी रामदेवजी द्वारा हुआ, जिसका सीधा प्रसारण ’आस्था चैनल’ द्वारा विश्व के 159 से भी अधिक राष्ट्रों में देखा गया। इसी प्रकार ’वन्देमातरम्’ गीत के हिन्दी काव्यानुवाद का पन्द्रह भाषाओं में पन्द्रह लाख प्रतियों में प्रकाशन भी किया गया। यह अपने आपमें विश्व रिकार्ड है। ’वन्देमातरम्’ का यह काव्यानुवाद पाठकों को नई उर्जा से भर देता है।

रामू भैया के जीवन कि यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। उत्तर प्रदेश प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक कक्षाओं ’पांचवी से आठवी’ के पाठ्यक्रम हेतु इनकी की सहयोगी हिन्दी पुस्तकों में विशिष्ठ बाल-कविताएँ समाविष्ठ की गयी हैं। ज्योतिष साहित्य में भी आपकी खासी रुचि है। ज्योतिष विज्ञान पर लिखी इनकी गीतिकाएँ चर्चित रही हैं। इन्होंने अनेक काव्य-संग्रह तथा पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है जिसमें मासिक ब्रह्म ज्योति प्रमुख है।

सम्मान :
आपको देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा शताधिक सारस्वत सम्मान यथा ज्योतिष काव्य गज़ल के लिए स्वर्ण पदक,रजत पदक और समाज रत्न जैसे महत्वपूर्ण अलंकरणों से नवाजा जा चुका है, जो किसी भी साहित्यकार के लिए उसके जीवन की अमिट पूंजी हैं। आपको हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी, शिलाँग, मेघालय, हिन्दी साहित्य परिषद, गोहाटी, असम, अभिनव शब्द शिल्पी अलंकरण, भोपाल, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, साहित्य समिति, ग्वालियर, समानान्तर साहित्य संस्था, आगरा, भारतीय साहित्य संस्था, सिरूगुप्पा, बल्लारी, कर्नाटक, साहित्य परिवार, बैंगलोर, साहित्य समिति, चेन्नई, भारतीय वांगमय् पीठ, कोलकाता, हिन्दी भवन, दिल्ली, अखिल भारतीय ज्योतिष विज्ञान संगठन, भोपाल, श्री फलौदी एस्ट्रोलोजिकल रिसर्च सोसायटी कोटा, श्री भरतेन्दु समिति, कोटा आदि द्वारा सम्मानित किया गया है।

आपने स्वयं तो साहित्य जगत में नाम कमाया ही सही साथ ही कई नवोदित साहित्यकारों की प्रेरणा का स्रोत भी बने। आपके मार्ग दर्शन और प्रोत्साहन से आज अनेक साहित्यकार पुष्पित और पल्लवित हैं। आप हर संभव साहित्यकारों को प्रोत्साहन के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।

परिचय :
सृजन से आध्यात्मिक संचेतना की धारा बहाने वाले रामू भैया के नाम से विख्यात रामेश्वर शर्मा का जन्म 1 अक्टूबर 1950 को बूंदी जिले के लाखेरी में पिता प.भंवर लाल शर्मा और माता भूली बाई के परिवार में हुआ। आपने विज्ञान विषय में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी हैं। लम्बे समय तक उनके पिता बून्दी के विधायक तथा जिला प्रमुख रहे, जिसके कारण उनका परिवार राजनैतिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहता था। किन्तु ये बचपन से ही इन गतिविधियों से दूर साहित्य-सृजन में लग गए । शिक्षा ग्रहण के लिए कोटा आए तो वे यहीं के होकर रह गए। विगत् चार दशकों से इनकी रचनाएं, लेख, गीतिकाएं देश भर की पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होती हैं और आकाशवाणी केंद्र जयपुर, उदयपुर, कोटा से रचनाएँ निरंतर प्रसारित होते रही हैं। आप देश की अनेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हैं।
चलते – चलते……….
लगने लगती स्वतः फड़कने, राष्ट्रभुजाएँ प्यारी
देख-देख कर, राष्ट्र-सेविकाओं की यूँ तैयारी
आर्यपुत्रियों के पौरुष की,पग-पग मिले निशानी
चित्र आज का याद कराता,उनकी अमरकहानी
रामूभैया! शैशव से ही, राष्ट्रप्रेम की लेकर आग
घर घर राष्ट्रसेविका दीखे,गाती नूतन राघव राग।

संपर्क :
रामेश्वर शर्मा
109 , शास्त्री नगर , दादाबाड़ी ,
कोटा 324009 (राजस्थान)
मोबाइल : 90575 48158
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा

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